भ्रष्टाचार के आंदोलन के हमले के केन्द्र में कांग्रेस है और इस माहौल में यदि चुनाव होते हैं, तो इसका सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को ही होगा, क्योंकि वही कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी है, लेकिन जब उसके अपने अध्यक्ष पर ही भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा हो, तो फिर इस माहौल का लाभ उसे कैसे और कितना हासिल होगा?
लिहाजा गडकरी का इस तरह बचाव भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है। भ्रष्टाचार के आरापों के बाद गडकरी की हालत इतनी पतली हो गई है कि वे हिमाचल प्रदेश में अपने दूसरे चक्र का प्रचार नहीं कर पाए। वे गुजरात में भी प्रचार के लिए अब नहीं जा रहे हैं। इसी से अंदाज लगा सकते हैं कि पार्टी उनके बारे में किस तरह की राय रखती है? जो नेता जनता को संबोधित करते हुए अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने की हिम्मत नहीं जुटा सकता, वह अध्यक्ष पद पर बने रहने की कैसे सोच सकता है? और जो पार्टी अपने अध्यक्ष से चुनाव प्रचार नहीं करवा सकती, तो फिर उस व्यक्ति को अध्यक्ष पद पर कैसे बैठा देख सकती?
लेकिन फिर भी भाजपा अपने अध्यक्ष को क्लीन चिट दे रही है और कह रही है कि उन्होंने न तो कानूनी रूप से और न ही नैतिक रूप से कोई गलत काम किया है। सवाल उठता है कि यदि उन्होनंे कोई गलत काम नहीं किया है, तो फिर उन्हें हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव में प्रचार करने से क्यों रोक दिया गया? और खुद नितिन गडकरी ने आरोपों को करारा जवाब क्यों नहीं दिया? यह कहने से कि जांच के लिए तैयार हैं, राहत के पात्र नहीं बन जाते, जैसे राॅबर्ट भद्र यह कहकर अपने को पाकसाफ नहीं बता सकते कि उन्होंने जो भी अनियमितता की वह पारदर्शी तरीके से की। जांच का काम केन्द्र सरकार की एजेंसियों को करना है। केन्द्र सरकार पर कांग्रेस का कब्जा है और कांग्रेस क्यों चाहेगी कि वह जल्द से जल्द जांच पूरा होने दे? आखिर कांग्रेस को फायदा नितिन गडकरी को भाजपा अध्यक्ष पद पर बने रहने में है। इसलिए वह जांच को तेजी से आगे बढ़ने ही नहीं देगी। भाजपा के लोग भी इस बात को समझते हैं और जिस तरह के आरोप गडकरी पर लगे हैं, उसके बाद तो भाजपा पद से हटने के लिए किसी जांच की भी जरूरत नहीं रही। मामला पूरी तरह साफ है। उन्होंने मंत्री रहते हुए एक ठेकेदार को फायदा पहुंचाया था और उस ठेकेदार ने बाद में 164 करोड़ रुपये उनकी कंपनी को दे डाले। इसका खुद गडकरी ने खंडन नहीं किया है। वे सिर्फ यह कहते हैं कि जिस समय उनकी कंपनी को उस ठेकेदार ने वह राशि दी, उस समय वे मंत्री नहीं थे। पर रूपये के भुगतान का समय महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि भुगतान महत्वपूर्ण है और वह हुआ। इसके आधार पर तो उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए था, लेकिन केन्द्र सरकार ऐसा नहीं कर रही है, क्योकि कांग्रेस का राजनैतिक फायदा उस जांच में नहंी है। फर्जी कंपनियों द्वारा गडकरी की पूर्ति पावर को धन मिलने के मामले का भी वे खंडन नहीं कर रहे हैं, वे कह रहे हैं कि फर्जी कंपनियों के बारे में उन्हंे नहीं पता था और उन कंपनियों ने यदि कोई फर्जी पता अथवा निदेशक बना रखा था, तो इसके लिए वे जिम्मेदार नहीं। पर सवाल उठता है कि फर्जी निदेशकों में उनका ड्राइवर कहां से आ गया?
अरविंद केजरीवाल और अंजलि दमानिया ने भी गडकरी पर अजित पवार के साथ मिलीभगत होने के आरोप लगाकर साबित भी कर दिए थे। उस आरोप को यह कहकर वे टाल गए थे कि वह चिल्लर (छोटा) आरोप था और जो जमीन उनके एनजीओ को आबंटित की गई थी, उससे वे किसानों का ही कल्याण कर रहे हैं। पर आवेदन के चार दिनों के अंदर जमीन का आबंटन का क्या मतलब है? सुश्री दमानिया को उन्होंने कहा था कि वे 70 हजार करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले में कुछ नहीं बोलेंगे, क्योंकि वे उनका चार काम करते हैं। बाद में उन्होंने उस तरह की बात करने की बात मानने से ही इनकार कर दिया और फिर सबूत देकर अंजलि और अरविंद ने साबित कर दिया कि किस तरह का अहसान अजित पवार ने नितिन गडकरी के ऊपर किया था।
गडकरी यदि आज अपने पद पर हैं, तो इसका कारण यह है कि आरएसएस उनके साथ है। गडकरी का साथ देने से संघ की प्रतिष्ठा को भी ठेस लगी है, क्योंकि जिस तरह कांग्रेस राॅबर्ट भद्र को बचा रही है, उसी तरह से संघ गडकरी को बचा रहा है। सवाल उठता है कि आखिर संघ ऐसा कर क्यों रहा है? तो इसका एकमात्र कारण यह है कि वह भाजपा के ऊपर से अपना नियंत्रण खोना नहीं चाहता। गडकरी की सहायता से सघ ने आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरूण जेटली जैसे नेताओं को बौना बनाकर रखने में सफलता पाई है। उनका इस्तेमाल करके संघ आने वाले समय में प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाल रहे लालकृष्ण आडवाणी और नरेन्द्र मोदी को नियंत्रण में रखने की सोच रहा था। संघ न तो लालकृष्ण आडवाणी को पसंद करता है और न ही नरेन्द्र मोदी को। इसका कारण यह है कि ये दोनों मजबूत नेता हैं, जो संघ की प्रत्येक हां में हां नहीं मिला सकते। एनडीए की सरकार के कार्यकाल में संघ के नेताओं को इस बात का मलाल था कि अटल और आडवाणी उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देते। आडवाणी के खिलाफ संघ को गुस्सा इसी के कारण है। नरेन्द्र मोदी भी अपने हिसाब से राजनीति करते हैं और सरकार चलाते हैं और संघ को पता है कि यदि वे प्रधानमंत्री बने तो उनका भी संघ के प्रति वही रवैया रहेगा, जो अटल का रहा करता था।
यही कारण है कि नितिन गडकरी को अपने पद पर बनाए रखना संघ की मजबूरी है। वह लालकृष्ण आडवाणी को फिर से पार्टी पर हावी होने देना नहीं चाहता और वह नरेन्द्र मोदी को भी गुजरात तक ही सीमित रखना चाहता है। लेकिन इसे सुनिश्चित करने में संघ भाजपा का राजनैतिक नुकसान कर रही है। देखना दिलचस्प होगा कि संघ नितिन गडकरी को दुबारा अध्यक्ष बनवाता है अथवा किसी और नितिन गडकरी का दिसंबर के आखिरी सप्ताह में आविष्कार कर लेता है। (संवाद)
गडकरी पर गड़बड़झाला
आखिर संघ ने भाजपा अध्यक्ष को क्यों बचाया
उपेन्द्र प्रसाद - 2012-11-08 11:24
नितिन गडकरी राहत की सांस ले रहे होंगे कि पार्टी ने जांच के पहले ही उन्हें ’’क्लीन चिट’’ दे दी और वे अपने पद पर अभी भी बने हुए हैं, लेकिन इससे भाजपा को निश्चय ही भारी नुकसान हुआ है। जब एनडीए की सरकार थी, तो भाजपा के अध्यक्ष पर एक लाख रूपये रक्षा सौदे के एक नकली दलाल से लेने के कारण एक दिन के अंदर ही उन्हें पद से हटा दिया गया था। गडकरी पर जो आरोप लग रहे हैं, वह एक लाख रूपये की तथाकथित रिश्वत से भी ज्यादा भयानक है। उनपर लग रहे आरोपों का समय भी बेहद संवेदनशील है, क्योंकि आज देश भी के लोग भ्रष्टाचार के मसले पर आंदोलित हो रहे हैं और आज यह देश की राजनीति के सामने सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है।