गुटों में विभाजित भाजपा गडकरी के कारण अनावश्यक विवाद में नहीं फंसना चाहेगी, क्योंकि लोकसभा के आमचुनाव बहुत नजदीक आते जा रहे हैं। यदि गडकरी अपमानित होकर निकलते हैं, तो इससे संघ की हेठी होती है, क्योंकि उसने ही राष्ट्रीय स्तर पर अनजान एक भाजपाई को इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया था।

सवाल उठता है कि किस परिस्थित में और कब पार्टी गडकरी को अपना छोड़ने के लिए कहेगी? जब कोयला घोटाले पर भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक होकर इसका राजनैतिक लाभ उटाने की कोशिश कर रही थी, तब एकाएक माहौल उस समय बदल गया जब इसके अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पर ही फर्जी कंपनियों के भूतों का साया मडराने लगा। अब साफ हो गया है कि गडकरी की पूर्ति पवित्र नहीं है और इसके दामन पर धब्बा है।

हालांकि एस गुरूमूर्ति ने ने गडकरी को क्लीन चिट दी है और कहा है कि उन्होंने न तो कोई गैरकानूनी काम किया और न ही कोई अनैतिक काम किया है। लेकिन इसके बावजूद सच यह है कि उनका दूसरा कार्यकाल अब अनिश्चित हो गया है। उनकी अपनी निजी छवि इतनी खराब हो गई है कि उसे अब टीक किया ही नहीं जा सकता। उनके कारण कांग्रेस को फायदा हो रहा है, क्योंकि अब राॅबर्ट भद्र की जगह चर्चा में नितिन गडकरी आ गए हैं।

गडकरी के लिए समस्या तो पिछले कुछ समय से ही मंडरा रही थी। उनके काम करने के तरीके से बहुत लोग नाराज थे। कोयला घोटाले पर हंगामे के दौरान दिल्ली की राजनीति में लंबे समय तक उनकी अनुपस्थिति रही। उस समय वे अपने परिवार के साथ छुट्टियां मना रहे थे। भारतीय जनता पार्टी के दो नेता जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा उनके खिलाफ अभियान चला रहे थे। उन दोनों को पार्टी के अंदर हाशिए पर पहुंचा दिया गया है, पर इसके बावजूद उनका महत्व कम नहीं हुआ है। वे दोनों लालकृष्ण आडवाणी के पास एक पत्र लेकर पहुंचे। उसके बाद हंगामा शुरू हुआ। फिर तो गडकरी के खिलाफ एक के बाद एक कई आरोप लगने लगे और वे एक राजनैतिक बवंडर में फंस गए।

यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह का समर्थन पा रहे लालकृष्ण आडवाणी का विचार है कि गडकरी को हटाने में अब देर नहीं की जानी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही पार्टी इस समय एकाएक गडकरी को अध्यक्ष पद से हटा नहीं सकती, क्योंकि इसके कारण कांग्रेस को लगेगा की उसकी जीत हुई है और भाजपा मानती है कि गडकरी स्वच्छ नहीं हैं।

भाजपा के सूत्रों का कहना है कि गडकरी दिवाली के बाद घोषणा करेंगे कि अध्यक्ष के दूसरे कार्यकाल में के प्रति उनके मन में कोई लालसा नहीं है। उनकी वह घोषणा अध्यक्ष पद से उनके हटने की शुरुआत होगी। दिसंबर के अंतिम और जनवरी के शुरुआती दिनों में भारतीय जनता पार्टी अपने लिए एक नया अध्यक्ष चुन लेगी।

इस घटनाचक्र से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आहत है, पर उसके पास कोई और विकल्प नहीं है। संघ अध्यक्ष के रूप में गडकरी का दूसरा कार्यकाल चाहता था। इसका उसने इंतजाम भी कर रखा था। इसके लिए भाजपा के संविधान में भी संशोधन करा लिए गए थे। पर बाद में घटनाओं ने ऐसा मोड़ लेना शुरू कर दिया कि गडकरी अध्यक्ष के रूप में भाजपा के लिए हानिकारक हो गए।

जहां तक गडकरी के विकल्प का सवाल है, तो नरेन्द्र मोदी का नाम सबसे पहले आता है। पर यह इस पर निर्भर करेगा कि गुजरात का चुनाव परिणाम कैसा होता है। गुजरात की जीत के बाद ही नरेन्द्र मोदी की बात बन सकती है। अन्य उम्मीदवार सुषमा स्वराज और राजनाथ सिंह हैं। अरुण जेटली के अध्यक्ष बनने की संभावना को भी नहीं नकारा जा सकता। शांताकुमार के नाम की चर्चा भी हो रही है। यदि किसी पर बात नहीं बनी तो लालकृष्ण आडवाणी फिर से एक बाद पार्टी की बागडोर संभाल सकते हैं, पर इसकी संभावना बहुत कम है।

यह भाजपा के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसने एक निर्णायक समय में अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार दी है। नितिन गडकरी को नहीं हटाकर उसने घोटालो में फंसी कांग्रेस को एक नया जीवन दे दिया है। कांग्रेस अब आक्रामक हो गई है। यदि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत होती है, तो उसकी आक्रामकता को नई धार मिल जाएगी।(संवाद)