गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के सदस्यों ने गोरखालैंड राज्य की मांग करते हुए आज दार्जीलिंग हिल और दुआर्स के पांच स्थानों पर आमरण अनशन शुरू दिए हैं। महाराष्ट्, गुजरात तथा उत्तर प्रदेश में भी पृथक प्रदेश गठन करने की पुरानी मांग जोर पकड़ सकती है।
तेलंगाना मुद्दे पर आंध्र प्रदेश में राजनीतिक संकट आज उस समय अ©र गहरा गया जब अलग राज्य बनाए जाने के केंद्र के फैसले के खिलाफ गैर तेलंगाना क्षेत्रों के 12 अन्य विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। इनके साथ ही इस मामले पर इस्तीफा देने वाले विधायकों की कुल संख्या 117 तक पहुंच गई। तेलांगना की नई राजनधानी और उसके सीमांकन को लेकर भी तरह तरह की आशंका व्यक्त की जा रही है। तेलांगना की राजधानी हैदराबाद को ही बनाए जाने को ले कर भी विवाद है। भौगोलिक दृष्टिकोण के अनुसार तेलांगना के हिस्से में हैदराबाद भी पड़ता है। तेलांगना को लेकर कांग्रेस के विधायक इसलिए भी चिंतित है कि पृथक तेलांगना राज्य में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को टीआरएस पर निर्भर करना पड़ेगा। जबकि कांग्रेस विधायक अपने दम पर वहां सरकार बनाने के पक्षधर हैं।
केंद्र सरकार को सबसे ज्यादा इस बात की चिंता सता रही है कि पृथक तेलांगना राज्य के गठन के बाद अन्य प्रदेशों में भी पृथक राज्य बनाने की मांग जोर पकड़ सकती है। गोरखालैंड बनाने की मांग से शुरू हो गयी है। अब यह मांग उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र तथा गुजरात से उठ सकती है।
उत्तर प्रदेश से पूवांचल,रोहिलखंड,बुंदेलखंड,हरितप्रदेश और अवध नाम से पृथक राज्य बनाने की मांग बहुत पुरानी है। इनमें रोहिलखंड राज्य बनाने की मांग बहुत पुरानी है। उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री ने इस मांग को यह कह कर पूरा करने से इनकार कर दिया था कि वह भारत में दूसरा पाकिस्तान का निर्माण नहीं करना चाहते हैं। विदित हो कि इसके अतंर्गत मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र रामपुर,बरेली और पीलीभीत आते हैं। अवध और पूर्वांचल की मांग करने वालों की नजर में बनारस शहर पर नजर टीकी हुई है क्योंकि बनारस का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्व है। बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश का आर्थिक रूप से सबसे पिछड़ा क्षेत्र है जिसके विकास के लिए पृथक राज्य की मांग जा रही है। इसके निर्माण में मध्यप्रदेश भी टांग अड़ा रहा है क्योंकि बुंदेलखंड के अतंर्गत मध्यप्रदेश का भी हिस्सा आता है।
बात यही तक समाप्त नही हो जाती है। महाराष्ट्र में विदर्भ नाम से पृथक राज्य के निर्माण की मांग अर्से से की जा रही है। केंद्र में एनडीए की सरकार के कार्यकाल में इसके निर्माण की मांग उठी थी लेकिन शिवसेना के विरोध के कारण इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो सकी थी। भाजपा अभी भी विदर्भ के निर्माण को ले कर अपनी सहमति जता चुकी है। इसी प्रकार से गुजरात से सौराष्ट्र नामक अलग राज्य बनाने की मांग उस क्षेत्र की जनता ने की थी।#
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