2011 में अन्ना के आंदोलन को जबर्दस्त जनसमर्थन मिल रहा था। लेकिन एक साल के अंदर यह आंदोलन अपने रास्ते से हटने लगा। अब अन्ना टीम में विभाजन भी हो गया है। अन्ना के खासमखास अरविंद केजरीवाल अब उनसे अलग हो गए हैं और आगामी 26 नवंबर को एक राजनैतिक पार्टी के गठन की घोषणा करने जा रहे हैं। अन्ना दावा कर रहे हैं कि दोनों के रास्ते अलग हैं, लेकिन लक्ष्य एक ही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी देश की राजनैतिक व्यवस्था में कितनी पैठ बनाती है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि अन्ना की नई टीम उनके आंदोलन को किस हद तक आगे बढ़ाती है। वैसा उनका विभाजन दुर्भाग्यपूण है, क्योंकि विभाजन से आंदोलन कमजोर होता है।
इसमें कोई दो मत नहीं हो सकता कि पिछले साल के अगस्त आंदोलन के बाद अन्ना का आंदोलन कमजोर पड़ गया था। अगस्त महीने में अन्ना के अनशन के दौरान देश भर में जबर्दस्त जन उभार देखने को मिल रहा था। रामलीला मैदान में भी समर्थकों की भीड़ उमड़ रही थी। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से सारे देश में हलचल मची हुई थी। उस आंदोलन से लोगों में उम्मीद जाग गई थी। लेकिन आंदोलन की वह तीव्रता बरकरार नहीं रह पाई।
यह स्वीकार करने वाले अन्ना पहले व्यक्ति थे कि राजनीति ने उनके आंदोलन को विभाजित करना शुरू कर दिया है। यूपीए सरकार द्वारा इसे विभाजित करने की कोशिश पहले से ही हो रही थी, लेकिन वह कोशिश कामयाब नहीं हो रही थी, पर राजनीति में पड़कर यह आंदोलन खुद विभाजित हो गया। आंदोलनकारियों को भी यह पता चलने लगा कि आंदोलन को जिंदा रखने और मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते रहे के लिए लगातार सक्रिय रहना पड़ता है।
पिछले 19 सिंतंबर को अन्ना का आंदोलन विभाजित हो गया, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने चुनावी राजनीति में हिस्सा लेने का निर्णय किया। दोनों पक्षों के पास अपने अपने मजबूत तर्क हैं। अन्ना हजारे शुरू से ही पार्टी बनाने अथवा किसी पार्टी विशेष को चुनाव में समर्थन देने के खिलाफ थे। उन्हें लगता है कि राजनीति से लोगों के भविष्य को बेहतर नहीं बनाया जा सकता है। दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल को लगता है कि बिना पार्टी के गठन के लोगों को राजनैतिक विकल्प मिल नहीं सकता है।
अब अन्ना हजारे ने अपने आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए एक नई टीम का गठन का किया है, जिसमें 15 सदस्य हैं। उन्होंने दिल्ली में अपना एक कार्यालय भी खोला है, क्योंकि उन्हें लगता है कि दिल्ली में इस आंदोलन का कार्यालय होना जरूरी है और उनकी यहां उपस्थिति भी जरूरी है। अब अन्ना को अपने लक्ष्य के प्रति भी स्पष्ट होना पड़ेगा। उन्हें स्पष्ट करना होगा कि अपने लक्ष्य को वह किस तरह हासिल करेंगे।
केजरीवाल के पास तो दिल्ली में कार्यालय पहले से ही है, हालांकि उनकी राजनैतिक पार्टी का जन्म होना अभी बाकी है। राजनैतिक रूप से केजरीवाल ज्यादा सजग हैं और वे अपनी उपस्थिति का अहसास कराने के लिए एक के बाद एक खुलासे किए जा रहे हैं। उनकी नई पार्टी दिल्ली विधानसभा का अगला चुनाव लड़ेगी और बाद में लोकसभा का होनेवाला चुनाव भी लड़ेगी। पर उन्होंने अपनी राजनीति अभी तक स्पष्ट नहीं की है। वे वामपंथ में विश्वास रखते हैं या दक्षिणपंथ में अथवा वे मध्यमार्गी हैं- इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया है। उन्हें अभी यह बताना बाकी है कि उनकी आर्थिक और विदेश नीति कैसी होगी। सच कहा जाय, तो उन्होंने अभी तक अपनी राजनैतिक विश्वदृष्टि स्पष्ट नहीं की है। वह वर्तमान व्यवस्था के खिलाफ तो खूब बोल रहे हैं, जिस व्यवस्था की वह कल्पना कर रहे हैं, वह कैसी है, इसके बारे में उन्होंने अभी तक कुछ नहीं बताया है। किसी पुरानी व्यवस्था को ध्वस्त करना आसान है, पर नई व्यवस्था बनाना उतना ही कठिन। (संवाद)
अन्ना और केजरीवाल को अपनी विश्वदृष्टि स्पष्ट करनी चाहिए
विभाजन आंदोलन को कमजोर करेगा
कल्याणी शंकर - 2012-11-16 12:28
पिछले दो सालों से अन्ना के नेतृत्व मंे टीम अन्ना ने आंदोलन चलाकर भ्रष्टाचार के मसले को देश की राजनीति के केन्द्र में ला खड़ा किया है। पिछले साल उन्होंने लोकपाल की लड़ाई लड़ी, जिसमें वे आंशिक तौर पर सफल और आंशिक तौर पर विफल रहे। उनके आंदोलन के दबाव में संसद में लोकपाल का एक विधेयक पेश किया गया, जिसे लोकसभा ने तो पारित कर दिया है और वह अभी राज्य सभा में पारित होने का इंतजार कर रहा है, हालांकि उस विधेयक को टीम अन्ना का समर्थन हासिल नहीं है।