तापी ( तुर्कमेनिस्तान- अफगानिस्तान- पाकिस्तान- इंडिया) पाइपलाइन के जरिये भारत को तुर्कमेनिया से भारत को गैस मिलेगी। यह अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए भारत आएगी। लेकिन हम जानते हैं कि मध्य एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में काूनन व्यवस्था की स्थिति क्या है। वैसे माहौल में वह पाइपलाइन कितनी सुरक्षित होगी, इसके बारे में कोई भी अनुमान लगा सकता है।
तापी पाइपलाइन 1700 किलोमीटर लंबी है और इस पाइपलाइन से तीन देशों- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत को प्रति साल 30 अरब घन मीटर गैस की आपूर्ति होगी। इस परियोजना का अनुमानित खर्च 7 दशमलव 6 अरब डाॅलर है। अमेरिका इस परियोजना का समर्थन कर रहा है। उसके समर्थन का कारण यह है कि वह नहीं चाहता कि अफगानिस्तान, पाकिस्ताप और भारत अपनी गैस जरूरतों के लिए ईरान पर निर्भर रहें। उसे लगता है कि इस परियोजना के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते अच्छे होंगे।
लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान मे जो कुछ पिछले दिनों देखने को मिला, उससे इस क्षेत्र की चिंता बढ़ गई है। अमेरिका कह रहा है कि वह 2014 में अफगानिस्तान से अपनी सेना हटा लेगा। तालिबान यदि उस समय तक वहा एक शक्तिशाली ग्रुप बना रहता है, तो अमेरिका के हटने के बाद वहां भारी पैमाने पर गृहयुद्ध छिड़ जाएगा। फिर तो पाइपलाइन की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी और उससे गैस की आपूर्ति अनिश्चित हो जाएगी। आज के दिनों में भी कोई स्थिति बहुत अच्छी नहीं है और हमेशा गैस पाइप का संभावित इलाका अशांत रहता है। अशांति अफगानिस्तान वाले इलाके में ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान वाले इलाके में भी है। जाहिर है पाइपलाइन की सुरक्षा सभी सूरत में अनिश्चित रहेगी। कुछ समय पहले ही तालिबान समर्थक उग्रवादियों ने पाकिस्तान में एक पाइपलाइन को उड़ा दिया था। उसके कारण नाटों की सेनाओं को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
पश्चिम की ओर इस समस्या को देखते हुए भारत के लिए म्यान्मार से गैस खरीदना ज्यादा अच्छा है। म्यान्मार में भी ऊर्जा का बड़ा भंडार है और आने वाले दशकों तक भारत उसकी सहायता से अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति कर सकता है। बांग्लादेश से होते हुए म्यान्मार और भारत के बीच एक पाइपलाइन का प्रस्ताव सामने आया था। यह पाइपलाइन 900 किलोमीटर लंबी होती। इसका अनुमानित खर्च सिर्फ एक से डेढ़ अरब डाॅलर ही था। लेकिन इस प्रस्ताव पर काम नहीं हो सका, क्योंकि बांग्लादेश में इसको लेकर विरोध था।
इसका फायदा चीन ने उठाया। उसने बंगाल की खाड़ी से लगे इलाके से अपने कुनमिंग तक 900 किलोमीटर लंबा पाइपलाइन बना लिया, जिसकी सहायता से वह म्यान्मार से गैस की खरीद करेगा। भारत इस मामले में सिर्फ न केवल पिछड़ा, बल्कि भारत की कुछ कंपनियों ने चीनी पाइपलाइन बनाने में भूमिका भी निभाई।
अब बांग्लादेश को अपनी भूल का अहसास हो चुका है। उसे यह महसूस हो रहा है कि उस पाइपलाइन का विरोध करके उसने अपना भी नुकसान किया, क्योंकि उसे भी ऊर्जा की जरूरत है, जिसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है। अब बांग्लादेश तापी परियोजना को बांग्लादेश तक बढ़ाने की मांग कर रहा है।
म्यान्मार से गैस प्राप्त करने का एक रास्ता भारत के पास और था। वह था पूर्वोत्तर राज्यों से होकर म्यान्मा से गैस पाने का रास्ता। इसके लिए 1500 किलामीटर लंबर पाइपलाइन बनाना पड़ता। लेकिन इसके फायदे बहुत ज्यादा थे। इसके कारण पूर्वात्तर के राज्यों का विकास तेज होता और भारत के पिछड़े पूर्वी प्रदेशों का विकास भी होता। इसमें खर्च आता दो से ढाई अरब डाॅलर। फायदे का देखते हुए यह खर्च ज्यादा नहीं है। कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत को म्यान्मार से गैस पाने के इस विचार को फिर जिंदा करना चाहिए। अब बांग्लादेश भी पहले की तरह अडि़यल रुख नहीं अपनाएगा, क्योंकि खुद उसे ऊर्जा की किल्लत हो रही है। भारत पूर्वोत्तर राज्यों के रास्ते के बारे में भी विचार कर सकता है। दीर्घकाल के लिए यह भारत के लिए ज्यादा भरोसेमंद है। (संवाद)
ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत देखे पूरब की ओर
म्यान्मार और बांग्लादेश के साथ अच्छा संबंध ही इसका जवाब है
आशीष बिश्वास - 2012-11-17 10:17
कोलकाताः लंबी अवधि के लिए म्यान्मार भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए ज्यादा भरोसेमंद विकल्प है। पर पता नहीं क्यों हमारे नीति निर्माता इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उन्होंने एक महत्वाकांक्षी तापी परियोजना पर काम करना शुरू किया है, जिसका उपयोगिता और सफलता - दोनों ही संदिग्ध है।