यह सच है कि यदि सरकार इस मसले पर मतदान में हार भी जाती है, तो उसके अस्तित्व पर कोई खतरा नहीं है, लेकिन हारना उसके लिए निश्चय ही भारी पड़ेगा। हार के बाद उससे उम्मीद की जाएगी कि वह विदेशी किराना के मसले पर लिए गए निर्णय वापस ल ेले, हालांकि तकनीकी रूप से ऐसा करने के लिए वह बाध्य नहीं है। पर यदि सरकार ने अपने निर्णय वापस नहीं लिए, तो कहा जाएगा कि संसद के प्रति अपनी जवाबदेही का पालन वह नहीं कर रही है और संसद की इच्छा का निरादर करते हुए प्रशासनिक निर्णय ले रही है।

यही कारण है कि बहस के बाद होने वाले मतदान में यूपीए की जीत जरूरी है। अपनी जीत के प्रति वह आशान्वित नहीं थी, इसलिए वह बहस के बाद मतदान वाले नियम के तहत संसद में बहस नहीं कराना चाह रही थी। उसकी सहयोगी डीएमके और बाहर से समर्थन देने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का विदेशी किराना के खिलाफ विरोध जगजाहिर है। डीएमके ने तो विदेशी किराना के खिलाफ राष्ट्रव्यापी बंद का साथ भी दिया था। समाजवादी पार्टी और बसपा भी इस मसले पर झुकने को तैयार नहीं दिख रही है।

विपक्ष के दबाव के तहत यूपीए को मतदान के लिए राजी होने को बाध्य होना पड़ रहा है। यदि सरकार ने विपक्ष की बात नहीं मानी, तो डर था कि यह सत्र भी पिछले सत्र की तरह ही कहीं हंगामे की भेंट न चढ़ जाय। इसलिए संसद की कार्रवाई चलवाने के लिए केन्द्र सरकार को विपक्ष की मांग के आगे झुकना पड़ा है। लेकिन इसके साथ उसने सपा, बसपा और डीएमके को मनाने का अपना प्रयास भी जारी रखा। डीएमके ने तो खुलकर अब घोषणा कर दी है किवह विदशी किराना के मसले पर केन्द्र सरकार को गिरने नहीं देगी। बसपा के बारे में कहा जा रहा है कि वह इस शर्त पर विदेशी किराना का समर्थन करने के लिए तैयार हो गई है कि केन्द्र सरकार प्रोन्नति में आरक्षण वाला संविधान संशोधन विधेयक इसी सत्र में लाए। समाजवादी पार्टी के नेता मुकदमों में फंसे हुए हैं, इसलिए वे नहीं चाहते हुए भी केन्द्र सरकार के आगे झुकने को विवश हैं।

भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों को पता है कि केन्द्र सरकार को संसद में गिराया नहीं जा सकता, क्योंकि संकट के समय किसी तरह अपना बहुमत साबित करने की क्षमता केन्द्र के पास है। यही कारण है कि उन्होंने ममता बनर्जी द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। पेश करने के लिए जितने लोकसभा सांसदों की संख्या की जरूरत पड़ती है, उतनी संख्या ममता बनर्जी नहीं जुटा सकी और अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की उनकी कोशिश भी विफल हो गई। इसके बावजूद भाजपा और वामपंथी दल विदेशी किराना के मसले पर संसद में मतदान चाहते हैं। वे चाहते हैं कि सभी पार्टियां संसद में अपने अपने मत को जाहिर कर दें। खासकर विदेशी किराना का विरोध और केन्द्र सरकार का समर्थन कर रही पार्टियों को वह बेनकाब करना चाहते हैं। इसलिए वे मतदान पर अड़े हुए थे।

अब सरकार मतदान के लिए तैयार हो गई है और दोनों सदनों में किराना में विदेशी निवेश के मसले पर बहस के बाद मतदान होगा। यदि इसमें सरकार हार जाती है, तो उसे भारी फजीहत का सामना करना पड़ेगा, लेकिन लगता है कि उसने मतदान में जीत का प्रबंध कर लिया है। उसके बाद ही वह इसके लिए तैयार हुई है।

संसद का सत्र सुचारु रूप से चले, यह सरकार के लिए बहुत जरूरी है। अनेक महत्वपूर्ण कानून बनाए जाने हैं और उन्हें बनने के लिए संसद में शांति होनी ही चाहिए। विपक्ष के लिए भी संसद का चलना जरूरी था। अन्यथा यह संदेश जा रहा था कि विपक्ष की दिलचस्पी संसद चलाने में नहंी है, बल्कि संसदीय कामों में रोड़ा अटकाने में है। सभी को आने वाले कुछ महीनों में ही चुनाव भी लड़ने हैं, इसलिए सबको अपनी अपनी छवि की परवाह है।

यही केन्द्र सरकार विदेशी किराना के मसले पर संसद में हुए मतदान में जीत जाती है, तो इस मसले पर चल रहा विवाद समाप्त मान लिया जाएगा और सरकार कह सकेगी कि उसकी नीति को बहुमत का समर्थन हासिल है। इसके बाद सरकार कुछ अन्य विवादित कानूनों को भी पारित कराने की दिशा में आगे बढ़ सकती है। (संवाद)