यह आश्चर्य की बात है कि अलग तेलंगना राजय की मांग को स्वीकार करने के पहले केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार ने उसके सभी पहलुओं पर विचार तक नहीं किया। यह और भी आश्चर्यजनक इसलिए भी है, क्योंकि यह घोषणा केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने की।
अब अलग तेलंगाना राज्य के खिलाफ तटीय आंध्र और रायलसीमा में आंदोलन हो रहा है। देश के अनेक राज्यों को विभाजित कर नये प्रदेश गठित करने का आंदोलन हो सकता है। गोरखालैंड में तो आंदोलन शुरू भी हो गया है। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती प्रदेश के तीन टुकड़े करने का प्रस्ताव कर रही है।
हो रहे हंगामे को देखकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा करनी पड़ी है कि तेलंगाना राज्य का गठन किसी हड़बड़ी में नहीं किया जाना है। मुख्यमंत्री रोसैया कह रहे हैं कि नये राज्य के गठन के लिए राज्य विधानसभा में प्रस्ताव लाने की कोई समयसीमा नहीं तय है।
केन्द्र और राज्य की दोनों सरकार की नीति फिलहाल मामले को शांत होने देने की है। दोनों इंतजार कर रही है कि मामला कग शांत हो। पर सवाल उठता है कि सरकार कबतक इंतजार करेगी? उसे कभी न कभी तो निर्णय लेना ही पड़ेगा।
आधी रात को अलग तेलांगाना राज्य के गठन का वह निर्णय राज्य सरकार की उस रिपार्ट के बाद लिया गया, जिसमें चंद्रशेखर राव के गिरते स्वास्थ्य का जिक्र था। प्रधानमंत्री समस्या का जल्द समाधान चाहते थे। पर आश्चर्य की बात है कि किसी ने भी आंध्र प्रदेश के अन्य इलाकों में उस निर्णय की प्रतिक्रिया के बारे में पहले से नहीं सोचा और न ही इस पर विचार किया कि देश के अन्य हिस्सों में इस निर्णय का कैसा असर पड़ेगा।
लगता है कि कांग्रेस की असली चिंता राव की भूख हड़ताल थी। वह जल्द से जल्द भूख हड़ताल खत्म करवाना चाहती थी ताकि राव की जान बच सके और अनशन के कारण पैदा हो रही अशांति समाप्त हो सके। राव की भूख हड़ताल तो समाप्त हो गई। उनकी जान भी बच गई, लेकिन तेलगाना के गठन का असली सवाल बपनी जगह पर अभी भी मौजूद है।
तेलंगाना राज्य के गठन की घोषणा के बाद राज्य में कांग्रेस का बुरा हाल है। राज्य के गठन के मसले पर रायलसीमा और तटीय आंघ्र के कांग्रेसी खासे परेशान हैं। विधायक और सांाद इस्तीफा देने पर उतारु हैं। अब तक 150 विधायको ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। मुख्यमंत्री को समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें।
कांग्रेस ने अलग तेलंगाना राजय के मसले पर यूपीए के अन्य घटक दलों से भी सलाह मशवरा नहीं किया। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और एनसीपी के शरद पवार से बातचीत करने की जरूरत तक नहीं समझी गई, जबकि अलग राज्य के गठन के निर्णय से दोनों की राजनीति प्रभावित हा रही है। पश्चिम बंगाल में गोरखालैंड और महाराष्ट्र में विदर्भ की मांग से दोनों की राजनीति प्रभावित होगी। (संवाद)
भारत: आन्ध्र प्रदेश
तेलंगाना पर उलझन में है सरकार
केन्द्र को जल्द ही कोई निर्णय लेना होगा
कल्याणी शंकर - 2009-12-14 09:09
लगता है तेलंगाना मसले पर केन्द्र ने एक कदम आगे और दो कदम पीछे की रणनीति अपना रखी है। अलग राज्य के गठन परद सहमति जताकर अब वह चुप बैठ गई लगती हैए क्योंकि उसके उस निर्णय के बाद आंध्र प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश भर में तूफान मच गया है।