उन लोगों से बात करने से पता चला कि इस चुनाव में नरेन्द्र मोदी के प्रभाव में कमी दिखाई देगी। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी और भी अधिक शक्तिशाली होकर उभरेंगे, जबकि कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि उनकी सरकार इस बार नहीं बन पाएगी। पर ऐसा मानने वाले लोगो की संख्या ज्यादा नहीं थी।

मेरे साथ हुई बातचीत में सभी ने नरेन्द्र मोदी की ही चर्चा की। किसी ने भारतीय जनता पार्टी का नाम नहीं लिया। ऐसा लगा मानों वहां भारतीय जनता पार्टी का वजूद है ही नहीं और यदि कोई मायने रखता है, तो वह हैं नरेन्द्र मोदी। वहां लोग मोदी और अन्य के बीच लड़ाई देख रहे हैं। एक तरफ नरेन्द्र मोदी हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस और केशुभाई पटेल की नवगठित पार्टी।

प्रदेश के मतदाता मोदी के पक्ष और विपक्ष में बंटे हुए हैं। एक तरफ वे लोग हैं, जो मोदी को एक बहुत बड़ा जनादेश मिलता देखना चाहते हैं, तो दूसरी तरफ वे हैं, जो उन्हें पराजित होते देखना चाहते हैं। गुजरात में उनके समर्थक उन्हें हिटलर कहते हैं, तो उनके विरोधी उन्हें तानाशाह कहते हैं।

नरेन्द्र मोदी संसदीय प्रणाली के लोकतंत्र के तहत चुनाव लड़कर सत्ता में आए हैं। इस व्यवस्था में मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बराबर लोगों में पहला व्यक्ति होता है, लेकिन नरेन्द्र मोदी सिर्फ प्रथम नेता हैं और उनका कोई बराबरी नहीं कर सकता। 2007 से 2012 के बीच मोदी के अहंकार मे भारी वृद्धि हुई है और इसके कारण गैर भाजपा के लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि भाजपा और संघ परिवार के सदस्यों मंे भी मोदी को लेकर नाराजगी है।

अपने कार्यकाल मे मोदी ने गुजरात मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनेक प्रमुख लोखों को अप्रासंगिक बना दिया है। यह सबको पता है कि विश्व हिंदू परिषद और उसके नेता प्रवीण तोगडि़या गुजरात में सार्वजनिक सभा नहीं कर सकते हैं। आरएसएस से जुड़ा भारतीय किसान संघ का अहमदाबाद स्थित कार्यालय नरेन्द्र मोदी के कारण बंद होने को बाध्य हो गया। संघ के लोग इस बात से डर रहे हैं कि यदि भारतीय जनता पार्टी की जीत 2007 की अपेक्षा बेहतर हो गई, तो मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट होने की संभावना काफी बढ़ जाएगी।

संकेत मिल रहा है कि खुद मोदी को डर लग रहा है कि उनका प्रभाव घट रहा है। चुनाव की घोषणा के पहले नरेन्द्र मोदी संकेत दे रहे थे कि अधिकांश निर्वतमान विधायकों के टिकट काट दिए जाएंगे, लेकिन जब उम्मीदवारों की सूची सामने आई, तो दिखाई पड़ा कि बहुत ही कम विधायकों के टिकट काटे गए हैं। टिकट निधार्रण का जिम्मा नरेन्द्र मोदी ने अपने ही हाथ में ले रखा था। उन्होंने ही उम्मीदवार तय किए और उसकी सूची केन्द्रीय नेतृत्व के पास भेजी और केन्द्रीय नेतृत्व ने उसे स्वीकार करने की औपचारिकता भर निभाई। जाहिर है, किसी आशंका वश ही मोदी ने विधायकों के टिकट काटने से परहेज रखा।

नरेन्द्र मोदी की एक बड़ी चिंता केशूभाई पटेल द्वारा किया गया विद्रोह है। केशूभाई भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं। पार्टी के अंदर हो रही उपेक्षा के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी है। वे बहुत दिनों तक इंतजार करते रहे, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने उनकी उपेक्षा जारी रखी। अंत में उन्हें पार्टी से बाहर होना पड़ा और उन्होंने एक अलग पार्टी बना ली है, जिससे नरेन्द्र मोदी की जीत पर असर पड़ सकता है।

केशूभाई पटेल गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के प्रथम मुख्यमंत्री रहे हैं। प्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके पार्टी से बाहर जाकर चुनाव लड़ने से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों के मत कुछ न कुछ प्रभावित होंगे ही। यदि थोड़े थोड़े मत भी विघानसभाओं में भाजपा उम्मीदवारों के कटते हैं तो पार्टी अनेक क्षेत्रों में चुनाव हार सकती है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में अनेक सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों की विजय 5 हजार से कम मतों से ही हुई थी। (संवाद)