बहुजन समाज पार्टी लोकसभा में इसका समर्थन कर रही है, तो समाजवादी पार्टी इसका विरोध कर रही है। जिस रोज राज्यसभा में इससे संबंधित विधेयक को बहस के लिए स्वीकार किया गया, उस दिन राज्य के 18 लाख कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। दूसरी ओर दलित कर्मचारियों ने घोषणा की कि वे तय समय से 4 घंटे ज्यादा काम करेंगे ताकि लोगांे को 18 लाख कर्मचारियांे के काम पर न रहने के कारण परेशानी न हो।
बहुजन समाज पार्टी ने इस विधेयक के पीछे अपनी सारी ताकत लगा दी है, क्योंकि दलित उसका मुख्य राजनैतिक आधार है। मायावती चाहती है कि केन्द्र सरकार समाजवादी पार्टी पर भी दबाव डाले और उसे भी इस विधेयक के समर्थन में खड़ा करे। फिलहाल राज्यसभा से यह विधेयक पारित हो चुका है और लोकसभा में पारित होना बाकी है।
बसपा को लगता है कि यदि एक बार यह विधेयक संसद से पारित हो गया, तो देश भर में उसे एक व्यापक जनाधार मिल जाएगा, क्योंकि दलित और आदिवासी देश की आबादी के एक चैथाई हैं और देश भर में फैले हुए हैं। मायावती को लगता है कि इसके कारण उनकी पार्टी देश भर में अपना विस्तार करने में सफल हो जाएगी।
मायावती की नजर अन्य पिछड़े वर्गों पर भी लगी हुई है। वे देश की आबादी के आधे से भी ज्यादा हैं। सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ उन्हें भी नहीं मिल रहा है। दलितों और आदिवासियों को यह लाभ दिलाने के बाद मायावती पिछड़े वर्गों के आरक्षण के लिए दबाव बनाना शुरू करेंगी। उन्हें लगता है कि इससे पार्टी को पिछड़े वर्गों का समर्थन हासिल होना शुरू हो जाएगा।
बसपा को लगता है कि इसके कारण देश भर में उसकी पार्टी का व्यापक जनाधार हो जाएगा और 2014 के लोकसभा चुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विजय हासिल कर सकेंगी।
दूसरी तरफ राजनैतिक विश्लेषकों को लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में प्रोन्नति में आरक्षण का विरोध कर मुलायम सिंह अपनी जमीन मजबूत करने में सफल हो सकेंगे। बसपा की आरक्षण नीति से प्रदेश की अगड़ी जातियों के लोगों में बेचैनी है। मुलायम सिंह का विरोध उन्हें पसंद आ रहा है। वे राजनैतिक रूप से अपने आपको मुलायम के साथ जोड़ सकते हैं।
पिछले विधानसभा चुनावों मे भी अगड़ी जातियों के लोगों के वोटों का एक हिस्सा मुलायम सिंह की पार्टी को मिला था। समाजवादी पार्टी की शानदार जीत का एक कारण यह भी था। कोटे के विरोध की अपनी राजनीति के द्वारा मुलायम सिंह उनके समर्थन को और भी प्रगाढ़ बनाने की सोच रहे हैं।
उनका गणित है कि प्रदेश के मुस्लिम और यादव मतदाता उसके साथ हैं और इसमें यदि अगड़ी जातियों के मतदाता भी शामिल हो जाते हैं, तो उन्हें लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 सीटों में से अधिकांश सीटों पर विजय हासिल हो जाएगी और केन्द्र सरकार के गठन में लोकसभा चुनाव के बाद वह अग्रणी भूमिका निभाने में सफल हो पाएंगे।
मुलायम सिंह यादव का कहना है कि प्रोन्नति में आरक्षण का यह कानून देश को सामाजिक रूप से और भी विभाजित कर देगा, जो देश के हित में नहीं है। उनकी पार्टी प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन का खुला समर्थन कर रही है। प्रदेश में आरक्षण समर्थक और विरोधी कर्मचारी आमने सामने हैं और इसके कारण राज्य भर में टकराव की नौबत पैदा हो रही है।
आरक्षण बचाओ समिति के प्रमुख अवधेश वर्मा हैं। वे कह रहे हैं कि बिहार, राजस्थान और उत्तराखंडर जैसे राज्यों के कर्मचारी प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ पा रहे हैं, तो फिर उत्तर प्रदेश के कर्मचारी इस लाभ से क्यों वंचित रहें?
दूसरी तरफ सर्वजन हिताय संरक्षण समिति के अध्यक्ष शैलेन्द्र दूबे आरक्षण विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार के कर्मचारी मायावती सरकार की प्रोन्नति नीति के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में गए थे, जहां उनकी जीत हुई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करने के लिए संसद द्वारा संविधान संशोधन किया जाना ठीक नहीं है।
आरक्षण विरोधी कर्मचारियों के निशाने पर सिर्फ मायावती ही नहीं हैं, बल्कि वे सोनिया गांधी, राहुल गांधी व भाजपा नेताओं के खिलाफ भी नारेबाजी कर रहे हैं। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में आरक्षण पर बवाल
मायावती ने माहौल गर्म करवा दिया
प्रदीप कपूर - 2012-12-18 13:25
लखनऊः उत्तर प्रदेश का तापमान आजकल बढ़ा हुआ है और राजनैतिक पार्टियां आरक्षण के मसले पर अपनी अपनी गतिविधियां तेज कर रही हैं। मामला अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनताति के सरकारी कर्मचारियों की प्रोन्नति में आरक्षण का है। इस राजनैतिक गर्मी के तहत प्रदेश की मुख्य पार्टियां 2014 के लोकसभा चुनावों की तैयारी में भी व्यस्त हैं।