कुछ लोग बोल रहे थे कि मोदी की जीत पिछले चुनाव की अपेक्षा ज्यादा शानदार होगी और वे 130 से 140 सीटों तक चुनाव जीत जाएंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। इस तरह की उम्मीदों के बीच 115 का यह आंकड़ा अनेक लोगों को मोदी की हार लग सकती है।
यदि 130 से ज्यादा सीटें गुजरात में भाजपा को मिलती तो क्या होता? इससे नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अभी से भाजपा के उम्मीदवार बनाने का दबाव काफी बढ़ जाता। लेकिन वैसी जीत नहीं मिल पाई और इसके कारण मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए उनके समर्थकों की ओर से पार्टी पर दबाव नहीं बढ़ रहा है। इसके कारण देश के अगले प्रधानमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है।
भाजपा का नेतृत्व इस बात से खुश है कि नरेन्द्र मोदी तो जीत गए, लेकिन उनकी जीत उतनी बड़ी नहीं हुई, जितनी बड़ी होने की संभावना कुछ लोग जाहिर कर रहे थे। कांग्रेस भी इस बात से खुश है कि हिमाचल प्रदेश में उसकी सरकार बन गई है। उस इस बात की भी खुशी है कि गुजरात में उसका पूरी तरह सफाया नहीं हो सका। भाजपा के अनेक नेता इस बात से खुश हैं कि फिलहाल भाजपा के प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के मसले पर यथा स्थिति बनी हुई है।
भाजपा के वे नेता जो खुद प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं, इस मसले पर किसी तरह की साफ साफ बातें नहीं कर रहे हैं। राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली का कहना है कि नरेन्द्र मोदी के भाजपा का प्रधानमंत्री दावेदार बनने का मसला मीडिया के लिए भले ही बहुत दिलचस्प मामला है, लेकिन भाजपा इस मसले पर कोई निर्णय उपयुक्त समय पर ही करेगी।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा रखने वाली एक अन्य महत्वपूर्ण भाजपा नेता हैं। शिवसेना के पूर्व प्रमुख स्वर्गीय बाल ठाकरे ने तो इस पद के लिए अपनी पसंद के रूप में सुषमा स्वराज का नाम ले भी लिया था। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत रामजेठमलानी, स्मृति ईरानी और बलबीर पुंज भी कर रहे हैं। इधर बिहार भाजपा के अध्यक्ष सीपी ठाकुर नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने के सबसे बड़े हिमायती के रूप में उभरे हैं। वे यह भी कह रहे हैं कि भाजपा नेताओं के बीच मोदी के नाम पर सहमति के लिए वे जो भी प्रयास संभव है, वह करेंगे। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने पर सख्त आपत्ति है। उन्होंने तो नरेन्द्र मोदी को बिहार में भाजपा के लिए चुनाव प्रचार तक नहीं करने दिया था। भाजपा नेताओं के लिए रखे गए एक भोज में उन्होंने नरेन्द्र मोदी के शामिल होने पर एतराज जताया था और उसके बाद वह भोज ही नहीं हो सका था। हालांकि नीतीश ने नाम लेकर नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी का विरोध नहीं किया है, लेकिन वे जो कर रहे हैं, उसका मतलब साफ है कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री के पद पर नहीं देखना चाहते हैं।
भाजपा के कुछ नेता कह रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर नीति निर्माण व अन्य निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। उन्हें 2013 व 2014 में होने वाले आमचुनावों की अभियान समितियों का नेतृत्व करने का जिम्मा देने की बात भी की जा रही है। नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी संसदीय बोर्ड में फिर से अन्य मुख्यमंत्रियों के साथ शामिल किया जा सकता है।
फिलहाल आरएसएस और भाजपा में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवारी को लेकर विभाजन है। इधर आरएसएस के रिश्ते नरेन्द्र मोदी से अच्छे हुए हैं और वह मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने में कोई झिझक भी नहीं दिखाएगा, यदि भाजपा के अन्य नेता उन्हें इस पद पर देखने के लिए तैयार हो जाएं। लेकिन भाजपा के अधिकांश नेता आज कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के परिणाम देखे जाने के बाद ही प्रधानमंत्री के बारे में कोई निर्णय लिया जाय। (संवाद)
मोदी की तीसरी जीत और उसके बाद
प्रधानमंत्री पद आसान नहीं
हरिहर स्वरूप - 2012-12-24 12:06
गुजरात चुनाव में नरेन्द्र मोदी की जीत के बाद भी यह सवाल राजनैतिक क्षेत्रों में पूछा जा रहा था कि क्या मोदी की जीत हुई है या हार। यह सच है कि उनके नेतृत्व में गुजरात भाजपा लगातार तीसरा विधानसभा चुनाव जीती है और वे चौथी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बन रहे हैं, लेकिन इस बार उन्हें विधानसभा में 115 सीटें मिलीं, जो पिछली बार मिली सीटों से दो कम हैं।