राजनैतिक रूप से अगला साल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों के लिए बहुत ही निर्णायक साबित होगा। दोनों पार्टियों के नेतृत्व में इस साल बदलाव होने की संभावना है। एक सवाल यह भी है कि क्या लोकसभा का आगामी चुनाव इसी साल तो नहीं हो जाएगा। इसका कारण केन्द्र की राजनैतिक अनिश्चितता है। तृणमूल कांग्रेस के यूपीए से बाहर हो जाने के बाद केन्द्र की सरकार अस्थिर हो गई है। क्या चुनाव का सामना करने के लिए कांग्रेस तैयार है? फिलहाल न तो यूपीए के लिए और न ही एनडीए के लिए के लिए माहौल अच्छा है। यूपीए घोटालों से पस्त है, तो एनडीए लगातार सिकुड़ रहा है। मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया गया, तो जनता दल (यू) इससे बाहर जा सकता है। इसके कारण यह और भी सिकुड़ जाएगा। दोनों मोर्चों की कमजोरियों का लाभ क्षेत्रीय दलों और नेताओं को मिलेगा। ये क्षेत्रीय दल एक तीसरे विकल्प को खड़ा कर सकते हैं। लेकिन उनकी एकता में समस्या उनके नेताओं की अपनी अपनी महत्वाकांक्षा आ सकती है। उनके बीच अहम का टकराव है। उनके नेताओं में से अधिकांश प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं।
2013 में ही देश के 8 राज्यों में विधानसभा के आम चुनाव होने हैं। वे राज्य हैं- नगालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मेघालय और राजस्थान केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली में भी विधानसभा के आम चुनाव होने हैं। बड़े दलों की किस्मत दाव पर लगी हुई है। कर्नाटक, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। कांग्रेस की सरकारें दिल्ली और राजस्थान में है। क्या मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा अपनी सरकारों को बचा पाएंगी? फिलहाल माहौल उसके पक्ष में दिखाई पड़ रहा है। राजस्थान में भी भाजपा की जीत हो सकती है। दिल्ली में कांग्रेस लगातार चैथी बार शीला दीक्षित के नेतृत्व में सरकार में आने की उम्मीद कर रही है।
कांग्रेस का नेतृत्व इन राज्यों के साथ लोकसभा के चुनाव की भी तैयारियों में जुट गया है। राहुल गांधी को चुनावों को समन्वयक बना दिया गया है। 2013 इसका निर्णय करेगा कि राहुल गांधी का नेतृत्व कितना प्रभावकारी होता है। उनकी सफलता उनकी रणनीति और नई टीम द्वारा मतदाताओं से जुड़ने की क्षमता पर निर्भर करती है। अगले महीने कांग्रेस का चिंतन शिविर जयपुर में होगा। कांग्रेस अध्यक्ष पार्टी के संगठन में भारी फेरबदल कर सकती हैं। चिंतन बैठक में ही चुनावों के लिए रणनीति का निर्धारण किया जाएगा। सोनिया गांधी को अनेक राज्यों में पार्टी पदों को भी भरना है, जो अरसे से खाली पड़ी हैं।
भाजपा को भी अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करना है। उसे अपने नये अध्यक्ष का चुनाव भी करना है। क्या नितिन गडकरी दुबारा पार्टी अध्यक्ष बन सकेंगे? गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का क्या होगा? क्या आडवाणी का सितारा हमेशा के लिए गर्दिश में चला जाएगा? भाजपा को इन सारे सवालों का जवाब अगले साल ही खोजना है। इनका जवाब भाजपा पर भी निर्भर करता है। 2013 नरेन्द्र मोदी और नितिन गडकरी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
आर्थिक मोर्चे पर बजट के लोकप्रियतावादी होने के आसार हैं। प्रधानमंत्री दूसरे दौर के आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को और भी आगे बढ़ाना चाहेंगे। वे बीमा और बैंकिंग के क्षेत्रों मंे भी सुधार लाने चाहेंगे। इससे विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सहायता मिल सकती है। वैसे अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि अगला साल कम विकास दर वाला साल होगा। विश्व अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह एक शांत साल होगा। 2013 में गेहूं के रिकार्ड उत्पादन की उम्मीद है।
विदेशी नीति के मोर्चे पर यह एक शांत साल रहने वाला है। पड़ोसियों पर ज्यादा नजर रहेगी। चीन के साथ बातचीत एक बड़ी चुनौती होगी। चीन में बदलाव हो रहा है, इसके कारण बातचीत का मामला धीमा चलेगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों में चुनाव हैं। इसलिए उनके साथ भारत की बातचीत में कोई तेजी नहीं आएगी। (संवाद)
साल 2013 में चौतरफा संघर्ष होगा
कांग्रेस और भाजपा की तकदीर का फैसला होगा
कल्याणी शंकर - 2012-12-28 12:28
नये साल की उलटी गिनती शुरू हो गई है। बीत रहा साल घटनाओं से भरपूर रहा और इसका अंत एक 23 साल की लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के खिलाफ देश भर में हो रहे आंदोलन से हो रहा है। सवाल उठता है कि अगला साल कैसा होगा?