सरकार का रवैया देश के मध्यवर्ग के गुस्से को लगातार बढ़ाता जा रहा है। अब साफ दिखाई पड़ रहा है कि सरकार ही नहीं, बल्कि पूरे राजनैतिक वर्ग का रवैया जन विरोधी हो गया है। उन्हें देश और लोगों की चिंता नहीं रह गई है, बल्कि वे सत्ता और राजनीति में अपने अपने हितों को साधने के लिए हैं। यही कारण है कि उन्हें अपराधों की बढ़ती संख्या के प्रति अपनी आंखें मंूद रखी हैं। 1971 और 2001 के बीच देश में बलात्कार की घटनाओं में 874 फीसदी की वृद्धि हुई है।
यदि सरकार संवदेनशील होती तो वह अपराधों को रोकने के लिए कानूनी और सामाजिक सुधारों को अंजाम देती। लेकिन आज मनमोहन सिंह की एक ही चिंता है और वह यह है कि वे अपने दक्षिणपंथी आर्थिक नीतियों को कितनी तेजी से लागू करें। दूसरी तरफ सोनिया गांधी की चिंता अपने बेटे को देश का प्रधानमंत्री बनाने तक ही सीमित है। उन दोनों के अपने अपने संकुचित सोच हैं और उन्हें न तो देश की कोई चिंता है और न ही समाज की। मध्य वर्ग की सोच उन दोनों के बारे में यही है।
मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के पास प्रशासनिक कार्यो के लिए समय ही नहीं है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रशासन के स्तर पर लगातार कमियां सामने आ रही हैं। प्रत्येक 20 मिनट पर देश में एक महिला के साथ बलात्कार हो रहा है। भारत आज दुनिया में बलात्कारियों के देश के रूप में अपनी छवि बनाने को अभिशप्त हो रहा है। हत्याओं की संख्या भी बढ़ गई हैं, हालांकि यह बलात्कार से पीछे चल रहा है।
इस बीच सरकार ने पुलिस को और भी कमजोर कर दिया है। अपराध पर अंकुश लगाना पुलिस का काम है, लेकिन आज राजनीति में अपराधियों की बाढ़ आ गई है। हमारे देश की लोकसभा के कुल सांसदों में से एक चैथाई आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। उनके कारण पुलिस अपना काम सही ढंग से नहीं कर पा रही है और राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण लगातार कमजोर होती जा रही है।
सच तो यह है कि भ्रष्ट प्रशासन और पुलिस के साथ राजनीतिज्ञों का एक कुत्सित गठजोड़ बन गया है, जिसके कारण सभी तरह के अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यही कारण है कि बलात्कार से संबंधित कड़े कानून बनाने के लिए सरकार आगे नहीं आ रही है, क्योंकि कानून बनाने वालों में भी बलात्कार के आरोपी शामिल हैं। यही नहीं, यदि बलात्कार संबंधित कानूनों में बदलाव किए गए तो अन्य अपराधों से संबंधित कानूनों में भी बदलाव की मांग उठेगी। पर हमारा राजनैतिक वर्ग लख्र कानूनों की आड़ में ही तो अपनी मनमानी चला रहा है। इसलिए वह क्यों चाहेगा कि ये सड़े गले कानून समाप्त हों।
आज का शहरी मध्यवर्ग इसी गठजोड़ के खिलाफ आग बबूला हो रहा है। हालांकि बलात्कार की खबरें देश के कोने कोने से आ रही हैं। हरियाणा से इस तरह की खबरें भारी संख्या में आईं। पर लोगों का गुस्सा तभी फूटा जब दिल्ली में एक लड़की के साथ चलती बस में बलात्कार हुआ। यह गुस्सा भले एक घटना के बाद फूटा हो, पर इसके पीछे बलात्कार की पहले की सभी घटनाओं का जमा गुस्सा भी शामिल है।
दिल्ली में बलात्कार की इस घटना के विरोध में फैले जन असंतोष के बीच पंजाब से खबर आई कि पुलिस द्वारा बलात्कार के मामले दर्ज नहीं किए जाने के कारण एक लड़की ने वहां आत्महत्या कर ली। पंजाब पुलिस के एक सहायक उपनिरीक्षक की हत्या अकाली दल के एक नेता ने इसलिए कर दी, क्योंकि उसने उस राजनीतिज्ञ द्वारा अपनी बेटी को परेशान किए जाने का विरोध किया था।
लगता है कि केन्द्र और राज्य सरकारों को लोगों के दबाव मे झुकना पड़ेगा और उन्हें सही कानून बनाने ही पड़ेंगे, क्योंकि मीडिया के प्रसार ने अब उनके गुस्से को पहले से ज्यादा स्पष्ट करना शुरू कर दिया है। लेकिन राजनैतिक वर्ग का जिस रूप में भारी पतन हो गया है, वैसे में इस समस्या का समाधान शायद जल्द न निकले। (संवाद)
बलात्कार का भ्रष्टाचार के साथ चोली दामन का नाता
राजनैतिक वर्ग से कुख्यात अपराधियों को हटाओ
अमूल्य गांगुली - 2013-01-02 13:08
यह कहना अभी कठिन है कि दिल्ली में एक लड़की के गैंगरेप से उपजे जन आक्रोश का क्या असर देश पर पड़ता है। उस लड़की को देश की बेटी की पदवी मिल चुकी है। इस घटना के बाद काश सरकार में बैठे लोगों में से कोई भी यह महसूस करे कि सरकार और लोगों के बीच कितना अंतराल पैदा हो गया है। यह दरार उस समय ही बढ़ी दिखाई पड़ रही थी, जब भ्रष्टाचार के मामले एक के बाद एक लोगों के सामने आ रहे थे और पूरे देश में इस मसले को लेकर आंदोलन हो रहा था। बलात्कार के बाद हुए आंदोलन ने इस दरार को और भी चैड़ा कर दिया है।