पश्चिम बंगाल को तोड़कर गोरखालैंड बनाने की मांग करने वाले संगठन विपक्ष में हैं और कभी पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने की उम्मीद नहीं कर सकते। बोडोलैंड की मांग भी उसी तरह के लोग कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग कर हरित प्रदेश के गठन की मांग अजित सिंह कर रहे है, जिनके पिता चैधरी चरण सिंह भले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हों, लेकिन वे अपने राष्ट्रीय लोकदल के बूते कभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन नहीं सकते। इसलिए वे हरित प्रदेश की मांग कर रहे हैं, क्योंकि शायद इस तरह के छोटे प्रदेश में अपनी जाति शक्ति के बल पर मुख्यमंत्री बन जाएं। पूर्वांचल राज्य की मांग भी वहां के वही लोग कर रहे हैं, जिन्हें लगता है कि नये राज्य में उनकी राजनीति चमकेगी। बिहार को तोड़कर मिथिलांचल के गठन की मांग भी वही लोग कर रहे हैं, जो बिहार की राजनीति में हाशिए पर हैं।

अलग राज्य की मांग करने वालों के बीच मायावती का चेहरा बिल्कुल अलग है। मायावती खुद अपनी पार्टी के बहुमत के बूते सत्ता में हैं और उसके पहले भी वे तीन बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में सत्ता में आना उनके लिए कोई समस्या नहीे है। इसके बावजूद वे उसी प्रदेश के विभाजन की मांग कर रही हैं, जिसकी वे मुख्यमंत्री हैं। वह भी दो भाग में नहीं पूरे चार भागों में। उत्तर प्रदेश का तो एक विभाजन पहले ही हो चुका है। उस विभाजन से उत्तरांचल कर जन्म हुआ था। मायावती ने उत्तर प्रदेश को विभाजित कर नये राज्य का गठन करने के लिए प्रधानमंत्री को जो दो चिट्ठियां लिखी हैं, उनमें राज्यों के गठन के प्रस्ताव हैं।

पहला राज्य तो बुंदेलखंड का है, जहां मायावती और कांग्रेस पिछड़ेपन और विकास की राजनीति कर रही हैं। दूसरा राज्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही मायावती का पैतृक आवास भी है। प्रधानमंत्री को लिखी दूसरी चिट्ठी में उन्होंने पूर्वांचल राज्य के गठन की मांग कर दी है। पूर्वांचल राज्य की मांग उत्तर प्रदेश के भोजपुरी बोलने वाले लोग बहुत दिनों से करते आ रहे हैं। भोजपुरी हिन्दी बिहारी हिन्दी का ही एक रूप है। बाहर के लोग भोजपुरी बोलने वालों को बिहारी ही समझते हैं। मध्य उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक के लोग वहां के लोगों को उनकी भाषा के कारण उन्हें बिहार का ही समझते हैं।

उत्तर प्रदेश और बिहार की दो पहचानों के बीच अपनी अलग पहचान बनाने के लिए वहां के लोग अपने आपकों पूर्वांचली कहते हैं। वहां के लोगों के बीच अपने क्षेत्र से बाहर जाकर बसने की जबर्दस्त प्रवृति है। क्षेत्र का पिछड़ापन उनके अप्रवास की गति को और भी तेज कर देता है। बाहर जाकर बसने और बिहार व उत्तर प्रदेश की दो पहचानों के बीच अपनी अलग पहचान बनाने के लिए उन्होंने अपने पूर्वांचली पहचान को बढ़ावा दिया है और उसी नाम से एक अलग राज्य के गठन की मांग लंबे अरसे से कर रहे हैं।

लगता है मायावती पहली चिट्ठी लिखते समय पूर्वांचल का ख्याल अपने मन में नहीं ला पाई। इसलिए बाद में उन्हें प्रधानमंत्री को एक और चिट्ठी लिखनी पड़ी। अब यदि उत्तर प्रदेश को विभाजित कर बुंदेलखंड, हरित प्रदेश और पूर्वांचल का गठन किया जाता है, तो इन तीनों के अलग होने के बाद उत्तर प्रदेश का जो हिस्सा बच जाएगा, वह चैथा राज्य होगा। इसलिए जो राजनीतिज्ञ या राजनेता यह कह रहे हैं कि मायावती ने प्रधानमंत्री से उत्तर प्रदेश के तीन टुकड़े करने की मांग की है, वे उन दोनों चिट्ठियों के मर्म को पूरी तरह से समझ नहीे पाए हैं। यदि दो चिट्ठियों में की गई मांग को मान लिया गया तो उत्तर प्रदेश 4 टुकडों में बंटेगा न कि 3 टुकड़ों में।

सवाल यह उठता है कि आखिर मायावती अपने राज्य के 4 टुकड़े क्यों देखना चाहतीं? पर इस सवाल पर ही सवाल खड़ा किया जा सकता है और वह सवाल यह है कि क्या मायावती वास्तव में उत्तर प्रदेश का विभाजन चाहती भी हैं। मायावती को जो व्यक्तित्व है, उसे समझने वाला कोई भी यह मानने को तैयार नहीं होगा कि वह उस उत्तर प्रदेश के 4 टुकड़े करना चाहेंगी, जिसकी वे मुख्यमंत्री है और उपचुनावों में मिल रही विजय को देखते हुए वे अगले विधानसभा चुनाव के बाद भी मुख्यमंत्री बने रहने की बहुत ही मजबूत उम्मीद पाल सकती हैं।

मायावती यह कभी नहीं चाहेंगी कि उत्तर प्रदेश के 4 टुकड़ें हों और वे उसके एक हिस्से (हरित प्रदेश) की मुख्यमंत्री बनकर रह जाए और तीन अन्य हिस्सों में उनकी ही पार्टी के तीन और मुख्यमंत्री बन जाएं। इसका कारण यह है कि वे अपनी पार्टी के किसी और व्यक्ति के साथ सत्ता का बंटवारा कर ही नहीे सकती। वे अपनी पार्टी में किसी और का नंबर दो बनाकर नहीं रखतीं। नंबर दो क्या नंबर 10 तक उनकी पार्टी में उनके अलावा कोई नेता ही नहीं है। सच कहा जाए तो उनकी पार्टी में उनके अलावा और कोई नेता ही नहीं है और कोई हो भी नहीं सकता है, क्योंकि वह होने ही नहीे देती है। किसी में जैसे ही नेता के रूप में चमक आती है, मायावती उन्हंे पार्टी से बाहर कर देती हैं। इसलिए उनसे यह उम्मीद करना कि वह उत्तर प्रदेश के 4 टुकड़े करवा कर एक छोटे टुकड़े से संतुष्ट हो जाएंगी और अपने समानातर तीन और बसपा नेताओं को खड़ा कर देंगी, बिल्कुल ही गलत होगा।

मायावती अलग राज्य की मांग इसलिए कर रही हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अलग राज्य बनेंगे ही नहीं। वे बुंदेलखंड के गठन की मांग कर रही है। बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश में ही नहीं, मध्यप्रदेश में भी है। इसलिए उसके गठन के मध्यप्रदेश विधानसभा की भी सहमति लेनी होगी। उसी तरह पूर्वांचल का मामला है। बिहार में कभी भी पूर्वांचल राज्य के गठन की मांग नहीं हुई। यह पूरी तरह से उत्तर प्रदेश का अपना अंदरूनी मामला है, लेकिन मायावती पूर्वांचल के गठन को असंभव बनाने के लिए बिहार के भोजपुरी भाषी इलाकों को भी उसमें शामिल कर रही हैं। यानी एक सुर से वे राज्य के गठन की मांग कर रही हैं, तो दूसरे सुर में उसे पड़ोसी राज्य के साथ उसे उलझा देती हैं।

लेकिन इस तरह की मांग करके मायावती एक खतरनाक खेल खेल रही है। उनकी पत्र राजनीति से उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था कायम रहने में भले ही सहायता मिली हो, क्योकि अलग राज्य के आंदोलनकारी वहां सड़को पर नहीं उतर रहे हैं, लेकिन अलग राजनीति की राजनीति करने वालों को इससे बढ़ावा मिलेगा, जो न तो उत्तर प्रदेश के हित में होगा और न ही वहां की जनता के हित में। (संवाद)