किसी समय अपनी सहयोगी रही बहुजन समाज पार्टी की मायावती से सीख लेते हुए भाजपा ने वहां अर्जुन मुंडा सरकार के इस्तीफे के साथ ही विधानसभा सभा भंग करने की अनुशंसा कर दी है। गौरतलब है कि 2003 में भाजपा द्वारा समर्थन वापस ले लिए जाने के बाद मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी थी, लेकिन राज्यपाल ने उसे स्वीकार नहीं किया था व कुछ अन्य दलों की मदद से मुलायम सिंह यादव को सरकार गठित करने का मौका दिया था।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कांग्रेस इंतजार करो और देखो की रणनीति अपना रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा केन्द्र में यूपीए के साथ रहा है, जबकि राज्य में वह भारतीय जनता पार्टी की सरकार का समर्थन कर रही थी। झामुमो प्रमुख शीबू सोरेन ने 2010 में महंगाई के मसले पर लोकसभा में हुए मतदान में यूपीए का साथ दिया था, जबकि वह भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से अपनी सरकार वह रांची में चला रहे थे। पिछले दिनों किराना में विदेशी निवेश के मसले पर भी उनकी पार्टी ने यूपीए का समर्थन संसद में किया था। राष्ट्रपति चुनाव में भी झामुमो ने कांग्रेस समर्थित प्रणब मुखर्जी को ही वोट दिया था, जबकि भाजपा पी ए संगमा का समर्थन कर रही थी। श्री सोरेन भाजपा से धीरे धीरे अपने आपको अलग कर रहे थे। वे भाजपा को छोड़ने के लिए एक अच्छे अवसर की तलाश कर रहे थे। मुडा सरकार के 28 महीने पूरे होने के बाद उन्होंने कहा कि बाकी 28 महीने तक उन्हें राज्य सरकार का नेतृत्व करने दिया जाय। भाजपा ने उनकी यह मांग मानने से मना कर दिया और उन्होंने समर्थन वापस ले लिया। इसके कारण अर्जुन मुंडा सरकार को इस्तीफा देना पड़ा।

सवाल उठता है कि अब आगे क्या होगा? राज्यपाल के पास पहला विकल्प है एक वैकल्पिक सरकार के गठन की संभावना तलाशना। झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास 18 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 13। 5 विधायक राष्ट्रीय जनता दल के पास भी है। झामुमो सरकार के गठन के लिए कांग्रेस की ओर देख रहा है, लेकिन क्या कांग्रेस इसके लिए तैयार होगी या वह राष्ट्रपति शासन चाहेगी?

सत्ता के भूखे कुछ स्थानीय कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि वहां कांग्रेस को अपनी सरकार बनानी चाहिए, क्योंकि एक और राज्य में सरकार आने के कारण देश भर के कांग्रेसियों में उत्साह का संचार होगा। गौरतलब है कि कांग्रेस पूर्वी भारत में किसी भी राज्य में सत्ता में नहीं है। ये राज्य हैं- पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिसा, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश। लेकिन कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व वहां अपनी सरकार बनाने की हड़बड़ी में नहीं दिखता। वह कुछ समय तक सभी संभावनाओं को खंगालना चाहता है और इस बीच राष्ट्रपति शासन के हक में दिखाई दे रहा है।

राष्ट्रपति शासन और विधानसभा का निलंबन बाबू लाल मरांडी की पार्टी के अलावा अन्य सभी पार्टियों के लिए ज्यादा बेहतर है। इसका कारण यह है कि यदि आज चुनाव होता है, तो इसका लाभ बाबू लाल मरांडी को ही सबसे ज्यादा होगा। कांग्रेस इस समय चुनाव के लिए तैयार नहीं है। सच कहा जाय, तो भाजपा भी इस समय चुनाव के लिए पूरी तौर पर तैयार नहीं है। झामुमो तो चुनाव नहीं ही चाहता, राष्ट्रीय जनता दल भी चुनाव नहीं चाहता। इसलिए वे सभी अभी चुनाव की अपेक्षा विधानसभा का निलंबन और राष्ट्रपति शासन चाहेंगे।

झारखंड के राज्यपाल की जहां तक बात है, तो वह वही करेंगे, जैसा उनसे केन्द्र की तरफ से करने के लिए कहा जाएगा। उनके पहले के राज्यपालों ने भी यही किया था। राष्ट्रपति शासन कांग्रेस के हक में होगा, क्योंकि इससे अप्रत्यक्ष तौर पर सत्ता उसी के हाथ में होगी, क्योंकि केन्द्र की सरकार उसके ही पास है। इस बीच वह अपनी सरकार गठित करने की संभावना तलाशती रहेगी। (संवाद)