इसके पहले भी एक पूर्व मुख्यमंत्री को सजा सुनाई गई है। वे थे रामलाल, पर उन्हें सजा मुख्यमंत्री के पद पर बैठकर किए गए भ्रष्ट आचरण के कारण नहीं, बल्कि केन्द्र में संचार मंत्री के रूप में भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के कारण मिली थी। उन्हें मिली सजा पर लोगों का ध्यान ज्यादा नहीं गया था। उसका कारण यह था कि जिस समय उन्हें सजा सुनाई गई थी, उस समय वे राजनीति में सक्रिय नहीं थे।
इस बार ओमप्रकाश चैटाला के खिलाफ सुनाया गया फैसला लोगों का ध्यान इसलिए आकर्षित करेगा, क्योंकि जिस अपराध की सजा उन्हें मिल रही है, वह अपराध उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए किया था और उसमें उनके बेटे भी लिप्त पाए गए हैं। इसके अलावा ओमप्रकाश चैटाला राजनीति में अभी भी सक्रिय हैं। वे न केवल सक्रिय हैं, बल्कि हरियाणा की राजनीति में फिलहाल सबसे ताकतवर राजनेता की हैसियत रखते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उनके दल को भारी सफलता मिली थी और यदि भाजपा के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन हो जाता, तो उनका मुख्यमंत्री बनना तय था। फिलहाल उनका दल हरियाणा विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल है और आगामी चुनाव के बाद उनके दल के फिर से सत्ता में आने के प्रबल आसार बने हुए थे और उनके मुख्यमंत्री बनने के बारे में अनेक लोग आश्वस्त थे।
जिस घोटाले में चैटाला और उनके बेटे को मुजरिम ठहराया गया है, वह 1999 और 200 में हुआ था। जाहिर है, उस अपराध के 13 साल बीत चुके हैं। उसके बाद हरियाणा में दो बार विधानसभा के चुनाव भी हुए और दोनों बार उनका दल सत्ता पाने में विफल रहा। लेकिन यदि सत्ता मिल जाती, तो वह सत्ता एक ऐसे आदमी के हाथ में रहती, जिसने शिक्षकों की भत्र्ती में 1999 और 2000 में भ्रष्टाचार किया था। किसी विधानसभा की अवधि 5 साल ही होती है और उस अवधि के दौरान कोई यदि मुख्यमंत्री रहे, तो वह 5 साल से ज्यादा उस पद पर नहीं रह सकता है।
यह सजा भी चैटाला को इसलिए मिल रही है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में उस घोटाले की सीबीआई जांच के आदेष दिए थे। सीबीआई ने तब अपना काम करना शुरू किया और 2008 में चैटाला व अन्य अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दायर किया गया और उसी साल उनके खिलाफ आरोप फ्रेम किए गए। जाहिर है, चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी अदालत को फैसले पर पहुंचने में करीब साढ़े चार साल लगे। उसके पहले, जांच पूरी करके चार्जशीट दाखिल करने में सीबीआई को 5 साल लग गए थे।
यानी सीबीआई ने जांच में विलंब किया और सीबीआई अदालत ने मुकदमे की सुनवाई में भी बहुत ज्यादा समय ले लिया। इतने विलंबित न्याय के बाद क्या यह कहा जा सकता है कि ’’देर आयद, दुरुस्त आयद’’ या यह कहना सही होगा कि ’’विलंबित न्याय का मतलब अन्याय’’ होता है? देर आयद दुरुस्त आयद कहना इसलिए सही नहीं होगा, क्योंकि भले ही दोषियों को अदालत ने जेल भेज दिया हो, पर जिनके साथ अन्याय हुआ था, न्याय तो उन्हें अभी भी नहीं मिला है।
यह मामला प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की भत्र्ती का था। 3 हजार से ज्यादा शिक्षकों की भत्र्ती की गई थी और घोटाला उसी में हुआ था। योग्य लोगों के बदले घूस, पैरवी व अन्य भ्रष्ट तरीकों से पूरी भत्र्ती प्रक्रिया को दूषित कर दिया गया था और हजारों योग्य लोग भत्र्ती के अपने वाजिब अधिकार पाने से वंचित रह गए थे। पिछले 13 साल से भ्रष्ट तरीके से भत्र्ती किए गए लोग अपने पदों पर बने हुए हैं और जिनको उनकी जगह होना चाहिए, वे अभी भी बाहर हैं। जाहिर है, यह न्याय विलंबित ही नहीं अधूरा भी है।
दिल्ली में चलती बस में सामूहिक बलात्कार की घटना के खिलाफ उपजे आक्रोश के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट की चर्चा खूब हो रही है। अनेक नेताओं ने बलात्कार व महिलाओं के साथ हो रहे दुराचार की अन्य सभी घटनाओं के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमे के ट्रायल की बातें की। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा। दिल्ली में तो फटाफट ट्रायल कोर्ट के गठन भी हो गए। जिस लड़की के साथ बस में बलात्कार हुआ था, उसके मामले में तो अभी फैसला नहीं आया है, पर पश्चिम दिल्ली की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एक अन्य मामले में 10 दिन के ट्रायल के बाद ही एक बलात्कारी हत्यारे को फांसी की सजा सुना दी है। पंजाब में तो एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने घटना के 8 दिनों के बाद ही बलात्कारियों के खिलाफ फैसला सुना दिया। इस बीच यह भी पता चला कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में जल्द सजा सुनाने का रिकार्ड बिहार का है। बिहार के रोहतास जिले में एक बलात्कारी को घटना के दो दिनों के अंदर ही सजा सुना दी गई थी। एक अन्य मामले में बिहार मंे बलात्कार की सजा सुनाने में फास्ट ट्रैक कोर्ट को 6 दिन लगे थे।
फास्ट ट्रैक कोर्ट की यह व्यवस्था हमारे मौजूदा कानूनी व्यवस्था में पहले से ही मौजूद है। हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि विलंबित न्याय वास्तव में अन्याय है, तो फिर हम त्वरित न्याय की उस व्यवस्था को क्यों नहीं अपनाते हैं, जो पहले से ही हमारी व्यवस्था का हिस्सा है? बलात्कार के मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में चले। यह बहुत अच्छी बात है। बलात्कारियों को सजा बहुत जल्द मिल जाए। यह भी अच्छी बात है, लेकिन जिस व्यवस्था के तहत हम बलात्कारियों को जल्द से जल्द सजा दे देते हैं, उसी व्यवस्था को हम भ्रष्टाचार के मामलों के लिए लागू क्यांे नहीं कर सकते?
आज हमारे देश की दो सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार और महिलाओं के साथ बढ़ रहा बलात्कार है। महंगाई भी समस्या है, लेकिन यह भ्रष्टाचार की औलाद है। वैसे होना तो यह चाहिए कि देश के सारे मुकदमे फास्ट ट्रैक कोर्ट में ही निपटाए जाएं, लेकिन यदि किसी कारण वश यह अभी संभव नहीं हो रहा है, तो कम से कम हम भ्रष्टाचार के मामलों को भी बलात्कार के मामलों की तरह फास्ट ट्रैक कोर्ट में क्यों नहीं निबटा सकते? यदि सभी भ्रष्टाचार के मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट को सुपुर्द करने यदि किसी कारण वश संभव न हो, तो कम से कम उन मामलों को तो हमें वहां ले ही जाना चाहिए, जो राजनेताओं से संबंधित हों। यदि ऐसा किया गया, तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में भारी मदद मिलेगी और हमारे राजनैतिक दलों पर से भ्रष्ट नेताओं की पकड़ कमजोर भी हो जाएगी, क्योंकि तीन साल से अधिक सजा पाने वाले व्यक्ति कोई चुनाव ही नहीं लड़ पाएंगे। (संवाद)
चौटाला के घोटाले पर विलंबित फैसला
भ्रष्टाचार के मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में क्यों नहीं?
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-01-16 13:44
शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को एक सीबीआई अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद बाद भ्रष्टाचार से आहत देश का एक बहुत बड़ा समुदाय राहत की सांस ले रहा है। यह पहला मौका है, जब मुख्यमंत्री के पद का दुरुपयोग करते हुए भ्रष्टाचार मे लिप्त पाए गए किसी राजनेता को किसी अदालत द्वारा दोषी पाया गया है।