जहां तक आम लोगों का सवाल है, तो वाममोर्चा सरकार की जगह पर तृणमूल कांग्रेस की सरकार के बन जाने के बाद उन्हें कोई फर्क नहीं दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि दोनों सरकारों के कार्यकाल में बाहुबलियों का ही बोलबाला है। अनेक गुंडों का चेहरा भी वही है। वे सरकार बनने के बाद अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता भी बदल चुके हैं। पहले वे वामदलों के साथ हुआ करते थे। आज वे तृणमूल कांग्रेस के समर्थक बने हुए हैं।

अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता बदलने का लाभ उन्हें यह होता है कि पुलिस की कार्रवाई से वे बच जाते हैं। यानी जो गुंडे अपने आपको माक्र्स के शिष्य कहते थे, आज वे ही मा, माटी मानुष का नारा बुलंद कर रहे हैं। इससे वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी के वैचारिक भ्रम का भी पता चलता है। उन्हें खुद यह नहीं पता कि वे वामपंथी हैं या दक्षिणपंथी।

नंदीग्राम में माक्र्सवादियों ने तृणमूल समर्थकों पर हमला कर दिया था और पुलिस चुपचाप तमाशा देख रही थी। वैसी ही एक घटना भांगर में घटी, जिसमें तृणमूल कार्यकत्र्ताओं ने माक्र्सवादियों पर हमला बोल दिया और पुलिस चुपचाप बैठी रही। भांगर के बारे में चर्चा करते हुए एक तृणमूल कार्यकत्र्ता का कहना था कि माक्र्सवादियों का तो सफाया हो जाता, यदि ममता बनर्जी ने बदलाव की जगह बदला का नारा दिया होता।

सीना ठोककर की गई यह बात बुद्धदेब भट्टाचार्जी द्वारा की गई उस बात से भिन्न नहीं है, जिसमंे उन्होंने कहा था कि नंदीग्राम की हिंसा बदले की भावना से की गई थी। तृणमूल समर्थकों ने नंदीग्राम से माक्र्सवादियों को भगा दिया था। उसका बदला लेने के लिए ही नंदीग्राम पर माक्र्सवादियों ने आक्रमण कर दिया था। उस हमले के पहले माकपा की नेता बृंदा करात ने इसका पूर्वाभाष भी दे डाला था। उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को कहा था कि वे अपने विरोधियों को दमदम की दवाई पिला दें। गौरतलब है कि दमदम इलाके में माक्र्सवादियों ने कुछ साल पहले कानून अपने हाथ में ले लिया था।

इस तरह का व्यवहार सिर्फ कानून व्यवस्था के प्रति दुर्भावना को ही नहीं दर्शाता है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि लोग अपने विरोधियों को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। यानी दोनों पक्ष एक पार्टी शासन का हिमायती दिखाई पड़ता है। लंपटबाजी एवं हुड़दंग पर निर्भरता का एक और भी कारण है। जहां तक वामपंथियों का सवाल है, तो शुरुआती दिनों में उनके हुड़दंग से पूंजी के हो रहे पलायन से उनका ही हित सधता था। यह उनके वैचारिक दृष्टिकोण के अनुकूल था और उस समय वे प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने में भी लगे हुए थे। नेता अपने कार्यकत्र्ताओं में एक किस्म की क्रांतिकारी भावना का संचार कर रहे थे और वैसा करने के लिए वे उग्रवादी तत्वों को बढ़ावा दे रहे थे।

तृणमूल कांग्रेस की इस गुंडागर्दी के लिए शायद दो कारण जिम्मेदार हैं। इससे कार्यकत्र्ताओं के बदले की भूख को खुराक मिलती है। विपक्ष में रहते समय उन कार्यकत्र्ताओं को माक्र्सवादियों के हुड़दंग का शिकार होना पड़ा था। वे बदले की आग मे जल रहे थे। उनकी इस जलन को मिटाने या कम करने का काम तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी से पूरा होता है। इस आक्रामकता का दूसरा कारण यह है कि ममता बनर्जी अभी भी सत्ता चलाने के तौर तरीकों से वाकिफ नहीं हुई है।

यही कारण है कि ममता बनर्जी अपनी प्रत्येक विफलता को अपने खिलाफ हो रही एक साजिश के तौर पर देखती है। जब अस्पतालों में बच्चों के मरने की खबरें आती हैं, तब ममता बनर्जी इन्हें अपनी सरकार के खिलाफ साजिश बताती है और जब बलात्कार की खबरें आती हैं, तब भी ममता बनर्जी इन्हें अपनी सरकार के खिलाफ साजिश बताती है। केन्द्र सरकार के सभी मंत्रियों के खोने और कांग्रेस से अपना रिश्ता बिगाड़ने के बाद तृणमूल कांगेस अब पश्चिम बंगाल में अकेली चल रही है, लेकिन उसे यह नहीं पता है कि राजनीति की उफनजी नदी को कैसे पार किया जाता है।

सत्ता पाने के कुछ सप्ताहों के अंदर ही ममता बनर्जी ने यह दिखा दिया कि एक स्ट्रीट फाइटर से एक समर्थ प्रशासक के रूप में अपने आपको तब्दील नहीं कर सकी है। लेकिन उनकी सबसे बड़ी विफलता यह है कि उनके पास कोई राजनैतिक विचारधारा नहीं है। वे कांग्रेस में उन दिनों राजनैतिक प्रशिक्षण पा रही थीं, जब उसका रुझान समाजवाद की ओर था। वह अपने आपको कांग्रेस की नव उदारवादी वर्तमान विचारधारा से जोड़ नहीं पाई है।

इसके कारण वह केन्द्र सरकार की अनेक उदारवादी नीतियों को नकार चुकी हैं उनके इस वैचारिक रुझान के कारण प्रदेश में निजी निवेश को बढ़ावा नहीं मिल पाएगा। उनके समर्थकों द्वारा की जा रही गुंडागर्दी से वर्तमान उ़द्यमियों में भी असुरक्षा की भावना आ रही है और वे अपना बोरिया बिस्तर प्रदेश से उठाकर बाहर जा सकते हैं। (संवाद)