भाजपा के नेता गडकरी को अध्यक्ष नहीं बनाना चाहते थे, पर संघ उनपर गडकरी को जबर्दस्ती थोपना चाह रहा था। इस क्रम में दोनों की छवि का नुकसान हुआ है। दोनों के झगड़े मंे एक समझौता के तहत राजनाथ सिंह पार्टी के अध्यक्ष बने हैं।
अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा के आंतरिक मतभेद और संघ के साथ उसका कलह खुलकर सामने आ गया है। भाजपा के सामने 2013 और 2014 में चुनौतियों का पहाड़ है। पहली चुनौती तो अध्यक्ष पद के चुनाव की ही थी, जिसमें वह चारो खाने चित हो गई है। अब भाजपा कार्यकत्र्ता और अन्य आम लोगों को भाजपा और संघ के रिश्तों के बीच भी भ्रम पैदा हो गया है। एक समय था जब संघ ने जिन्ना से संबंधित विवादित बयान देने के कारण आडवाणी को अध्यक्ष पद से हटने का आदेश जारी किया था और उन्हें वह आदेश मानना पड़ा था। पर इस बार गडकरी को अध्यक्ष मानने के आदेश को सम्मान देने से आडवाणी ने साफ इनकार कर दिया और संघ को अपनी पसंद बदलनी पड़ी। मोहन भागवत ने गडकरी को अध्यक्ष बनाना अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था, लेकिन अपनी प्रतिष्ठा को तार तार होने से वे बचा न सके। हालांकि संघ इस बात पर कुछ संतोष कर सकता है कि राजनाथ सिंह भी उसी की पसंद के हैं। आडवाणी को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद संघ ने ही राजनाथ सिंह को भाजपा का अध्यक्ष बनाया था। 2009 में संघ उन्हें दूसरी बार भी मौका देना चाहता था, लेकिन गडकरी उसको ज्यादा पसंद आए।
अध्यक्ष पद पर आने के बाद राजनाथ सिंह के सामने अनेक चुनौतियां हैं। पूर्वाेत्तर के तीन राज्यों- मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। उन राज्यों में भाजपा की उपस्थिति नहीं के बराबर है। श्री सिंह की चुनौती वहां भाजपा को कुछ सीटें दिलवाने की है। लेकिन उनकी चुनौती मई महीने में होने वाले कर्नाटक चुनाव में असली रूप में देखने को मिलेगी। वहां उनकी ही पार्टी की सरकार है, पर उसके सबसे बड़े प्रदेश नेता यदुरप्पा ने पार्टी से विद्रोह कर एक नई पार्टी बना ली है। वहां भाजपा के पास बड़े कद का कोई नेता नहीं है। यदि मोदी पार्टी का अध्यक्ष होते, तो शायद वह यदुरप्पा का मना लेते, पर राजनाथ सिंह के लिए यह आसान काम नहीं है।
कर्नाटक के बाद दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। झारखंड में ही इसी साल चुनाव हो सकते हैं। इनमें से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की ही सरकार है। कुछ दिन पहले तक झारखंड में भी भाजपा की ही सरकार थी। इन पांच राज्यों में भाजपा और कंाग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला होना है। राजनाथ सिंह की चुनौती भाजपा की सरकार वाले प्रदेशों में पार्टी की सरकार को बरकरार रखना है और दिल्ली व राजस्थान में कांग्रेस को पटखनी देकर वहां अपनी सरकारें बनवाना है।
इन सबके अलावा प्रधानमत्री पद का मसला भी काफी अहम है। कांग्रेस ने राहुल को अपनी तरफ से आगे बढ़ा दिया है, लेकिन भाजपा में अभी भी इस मसले पर खामोशी है। गुजरात के मुख्यमंत्री भाजपा की ओर से इस पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार हैं। संघ द्वारा उनके खिलाफ गडकरी को आगे बढ़ाने की योजना चैपट हो चुकी है, क्योंकि वह उसे अध्यक्ष ही नहीं बनवा पाया। नये अध्यक्ष राजनाथ सिंह अभी जो भी कह लें, लेकिन प्रधानमंत्री पद की उम्मीद करने वालों में वह भी हैं। गौरतलब है कि जब आडवाणी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता पद को त्यागा था, तो श्री सिंह ने उस पद पर दावा किया था, हालांकि वह उसे पा न सके और वह पद सुषमा स्वराज के पास चला गया।
राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वे पहले भी 3 साल तक भाजपा का अध्यक्ष थे। वे आने वाले तीन सालों तक फिर भाजपा के अध्यक्ष के रहेंगे। वे अपने अनुभवों का इस बार लाभ उठा पाएंगे। चूंकि अध्यक्ष पद पर उनका चुनाव कुछ विचित्र परिस्थितियों में हुआ है, इसलिए सबको लेकर चल पाना उनके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। (संवाद)
राजनाथ सिंह की ताजपोशी
भाजपा और संघ के संघर्ष सामने आए
कल्याणी शंकर - 2013-01-25 17:06
काग्रेस के अंदर राहुल गांधी की ताजपोशी में कोई अड़चन नहीं आई, वहीं भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के चुनावी नाटक में अंटी क्लाइमेक्स उस समय आया, जब गडकरी पार्टी का दुबारा अध्यक्ष बनता दिखाई दे रहे थे, पर एकाएक उनकी जगह राजनाथ सिंह उस पद पर आसीन दिखे। गडकरी को अध्यक्ष नहीं बनाया जा सका, क्योंकि भाजपा के अंदर से ही उनका विरोध हो रहा था और उनके खिलाफ आयकर विभाग के छापे पड़ रहे थे। भाजपा को एक अनुशासित पार्टी माना जाता है। इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि वहां सबकुछ बहुत ही सलीके से संपन्न हो जाएगा, लेकिन वहां तो भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के बीच द्वंद्व युद्ध होता दिखाई पड़ रहा था।