गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा के नेताओं में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी ही छवि देखती हैं। बिमल गुरुंग और रोशन गिरी जैसे गोरखा ममता बनर्जी की तरह ही अडि़यल और जिद्दी हैं, जो अपन मांगों को मनवा कर ही दम लेते हैं। वे ममता की तरह ही कहते हैं कि उनकी मांगों को बिल्कुल उसी तरह पूरा किया जाय, जैसा वे चाहते हैं।
आज गठबंधन राजनीति के तहत आम सहमति के द्वारा राजनैतिक निर्णय पर आने का माहौल बन रहा है, लेकिन ममता बनर्जी और गोरखा जन्मुक्ति के नेता किसी प्रकार के बीच का रास्ता अपनाने में विश्वास नहीं रखते। ममता बनर्जी के अपनी बात पर अड़े रहने के कारण ही सिंगुर से आखिर टाटा प्रोजेक्ट को हटना पड़ा था। नंदीग्राम में भी उसी तरह का हिंसक आंदोलन चलाया गया था। इन आंदोलनों के बाद तृणमूल कांग्रेस ने 34 साल से सरकार चला रहे वामदलों को पराजित कर सत्ता से बाहर कर दिया। तृणमूल नेताओं ने यह कहने में तनिक भी देर नहीं लगाई कि उन दोनों आंदोलनों के कारण ही उनकी जीत हुई।
उनके दावों पर बहस की जा सकती है, लेकिन सच्चाई यही है कि सिंगूर आज भी एक पिछड़ा हुआ ग्रामीण इलाका बना हुआ है और नंदीग्राम तो अभी मध्य युग में पड़ा दिखाई दे रहा है। इससे भी भयानक बात यह है कि इन घटनाओं के कारण पश्चिम बंगाल का निवेश माहौल बुरी तरह खराब हो गया है। इसका एक उदाहरण हल्दिया में 25 करोड़ रुपया खर्च कर किया गया वह सरकारी आयोजन है, जो एक भी निवेश प्रस्ताव को आकर्षित नहीं कर पाया।
क्या सुश्री बनर्जी को इस बात का गम है कि उनकी पार्टी के कारण पश्चिम बंगाल के कारण बुरा हाल हुआ है? बिल्कुल नहीं। टाटा द्वारा सिंगूर छोड़ने के कुछ ही घंटों के अंदर उन्होंने कहा कि हमने जो कुछ भी किया, उस पर हमें गर्व है और यदि ऐसी स्थिति पैदा हुई, तो हम इसे फिर दुहराना चाहेंगे। उन्हें अपने अडि़यलपन पर अभिमान है। वे कहती हैं कि उन्होंने अपने वायदे को हमेशा निभाया है। ’’मैं जो भी करना चाहती हूं, उससे नहीं डिगती। यदि जरूरत पड़ी जो वे अकेले चलने को भी तैयार हैं। मैं कभी भी उद्योगों को खेती की जमीन नहीं हथियाने दूंगी और शहरी भूमि हदबंदी कानून को शिथिल होने नहीं दूंगी।’’
अब उत्तरी बंगाल का भविष्य दाव पर लगा हुआ है। वहां गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा के नेता ममता बनर्जी जैसा ही अडि़यल रुख अपना रहे हैं। दार्जिलिंग में एक दशक से भी ज्यादा समय तक होने वाले हिंसक आंदोलनों के कारण वहां से ट्रैफिक की दिशा को बदलकर सिक्किम की तरफ मोड़ दिया गया है। चाय उद्योग सहित वहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था को काफी चोट पहुंची है। वहां रोजगार के नये साधन पैदा ही नहीं हुए। इसके कारण भारी बेरोजगारी का वहां साम्राज्य है।
इस खराब दशा से बेपरवाह गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा के नेता कहते हैं कि आजादी की कीमत हमेशा चुकानी पड़ती है और इसके लिए चुकाई गई कोई भी कीमत कम है। उनके इस बयानों से किसी को आश्चर्य नहीं होता। एक बार तो इस मोर्चा के पूर्ववर्ती गौरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता ने तो एक अलग देश के निर्माण की मांग तक कर दी थी और उसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को चिट्ठी तक लिख डाली थी।
गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा और तृणमूल कांग्रेस बड़ी राजनैतिक ताकत के सामने ही झुकना जानते हैं। कांग्रेस के नेता अरूणवा घोष का कहना है कि ममता बनर्जी की राजनैतिक शैली अपने कमजोर दिख रहे राजनैतिक विरोधियों को समाप्त कर देने की है। यही कारण है कि उन्होंने कमजोर हो रहे एक मुख्यमंत्री बुद्धदेख भट्टाचार्जी द्वारा बुलाई गई एक सर्वदलीय बैठक में शामिल होने से मना कर दिया था। दूसरी तरफ उन्होंने गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा और माओवादियों से चुपके से दोस्ती कर ली, क्योंकि वे वाम मोर्चा के खिलाफ थे।
एक बार जब जीतने का उनका उद्देश्य हासिल हो गया, तो फिर उन्होंने माओवादियों को ही मारना शुरू कर दिया। लेकिन उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक और गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा के साथ सांठगांठ जारी रखी। गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा ने भी तृणमूल को अच्छी तरह समझ लिया है। उसने तृणमूल सरकार को बहुत ही गंभीर समय में उपेक्षा की। जब ममता बनर्जी 28 जनवरी को पहाड़ों पर सभा को संबोधित करने वाली थीं, तो गोरखा नेता अलग राज्य की मांग के लिए केन्द्र से बातचीत करने के लिए दिल्ली को रवाना हो गए। ऐसा उन्होंने जानबूझकर किया। वे ममता बनर्जी को अपमानित करना चाह रहे हैं और कुछ ऐसा रवैया दिखाना चाह रहे हैं कि ममता बनर्जी के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करते। जाहिर है आने वाले दिनों मंे गोरखा समस्या ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।(संवाद)
अलग गोरखा राज्य की मांग अभी भी जिंदा
ममता बनर्जी के सामने एक नई चुनौती
आशीष बिश्वास - 2013-01-29 17:11
कोलकाताः तृणमूल कांग्रेस के हलकों में विपक्षी वाम मोर्चा के फिर से मजबूत होने को लेकर उतनी चिंता नहीं है, जितनी चिंत अलग प्रदेश की मांग को लेकर गोरखा जन्मुक्ति मोर्चा द्वारा पेश की चुनौती से है। मोर्चा ने गोखालैंड की मांग को लेकर फिर से आंदोलन तेज करने की योजना बनाई है।