यूडीएफ की राजनीति आग गर्म हो रही है, क्योंकि नायरों का प्रतिनिधित्व करने वाली नायर सर्विस सोसायटी ने ओमन चांडी की सरकार को ही गिरा देने की घमकी दे डाली है, यदि उसने अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति से तोबा नहीं किया और उस नीति को वापस नहीं लिया। नायर सर्विस सोसाइटी के महासचिव जी सुकुमारन नायर ने मांग की है कि केरल प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रमेश चेनिंथाला को एक महत्वपूर्ण पद मिलना चाहिए, ताकि अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच संतुलन की फिर से बहाली हो।
एनएसएस इस बात से नाराज है कि 2011 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व के साथ मुख्यमंत्री चांडी की जो सहमति हुई है, उसे निभाया नहीं जा रहा है। सहमति यह हुई थी कि रमेश चेनिंथाला, जो नायर समुदाय से आते हैं, चुनाव लड़ेंगे और सरकार में एक महत्वपूर्ण पद पाएंगे। उस समय कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व के दूत विलासराव देशमुख ने एनएसएस के नेताओं से बात की थी। इन नेताओं ने कहा था कि जब भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आती है, तो सरकार में अल्पसंख्यकों का वर्चस्व बढ़ जाता है। इसलिए यदि कांग्रेस नायरों का समर्थन चाहती है, तो उस इस स्थिति को पलटना होगा। इसके कारण ही रमेश ने विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। सच तो यह है कि रमेश का नाम उच्च कमान ने ही प्रस्तावित किया था।
पर एनएसएस के महासचिव श्री चांडी पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें इस सहमति में पलीता लगा दिया। दूसरी तरफ चांडी कह रहे हैं कि सरकार में शामिल नहीं होने का निर्णय खुद रमेश का ही था और इसका दोष उन्हें नहीं दिया जा सकता। पर सचाई यही है कि रमेश इसलिए सरकार में शामिल नहीं हुए, क्योंकि उन्हें न तो वित्त मंत्रालय दिया जा रहा था और न ही गृह मंत्रालय। यही कारण है कि रमेश ने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहना ही बेहतर समझा। चांडी ने रमेश के जले पर नमक डालते हुए अपने खासमखास टी राधाकृष्णन को गृह मंत्रालय दे डाला। इसके कारण ही एनएसएस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया है, जो श्री चांडी के विश्वासघात को भूल नहीं पा रहे हैं।
गौरतलब है कि न तो श्री चांडी और न ही रमेश सुकुमारन नायर के आरोप का खंडन कर रहे हैं। दोनों एनएसएस के महासचिव की आलोचना करने से बच रहे हैं। दोनों की चुप्पी का मतलब यही लगाया जा रहा है कि वास्तव में नायरों के साथ कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व की कोई सहमति थी। सहमति का उल्लंघन कर कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को तुष्ट करने की अपनी नीति को पर्दाफाश कर दिया है। लेकिन नायरों की नाराजगी उसे भारी पड़ रही है। प्रदेश में उनका अच्छा खासा प्रभाव है। खासकर दक्षिण और मध्य केरल के अनेक क्षेत्रों में वे हारजीत को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
यदि कांग्रेस आज अपने आपको दयनीय स्थिति में पा रही है, तो इसके लिए वह खुद जिम्मेदार है। इसके आगे कुआं है तो पीछे खाई। एक तरफ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का दबाव उसे झेलना पड़ रहा है, तो दूसरी तरफ नायर सर्विस सोसायटी का, जो सरकार को ही गिरा देने की धमकी दे रही है। वह प्रदेश सरकार द्वारा हिंदुओं की उपेक्षा किए जाने से नाराज है। इसके कारण नायरों का एनएसएस इझावा समुदाय के श्री नारायण परिपालन योगम पीठ ने आपसी विवादों को भूलकर एक मंच पर आने का फैसला कर लिया है।
सुकुमारन नायर की नाराजगी चाहे जो भी रूप अख्तियार करे, इतना तो स्पष्ट है कि चांडी सरकार की नीतियों ने प्रदेश के सांप्रदायिक ताने बाने को तनावपूर्ण बना दिया है और और बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच ध्रुवीकरण बहुत तीखा हो गया है। यह ध्रुवीकरण धर्मनिरपेक्षता के लिए ख्यात केरल के लिए शुभ नहीं है। (संवाद)
नायरों की धमकी से प्रदेश सरकार की धड़कनें तेज
तुष्टीकरण की नीति का भुगतना पड़ रहा है खामियाजा
पी श्रीकुमारन - 2013-01-31 13:14
तिरूअनंतपुरमः तुष्टिकरण की नीति से अंत मे नुकसान ही होता है। केरल में कांग्रेस और इसके नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार को इस हकीकत का पता लग रहा है, लेकिन इसका ज्ञान उसे भारी कीमत चुकाने के बाद ही हो रहा है।