हम मानते हैं कि उनकी सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक या जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद का पाकिस्तान में आकर बसने का निमंत्रण स्वयं शाहरुख को भी नहीं भाया है। सीमा पार के बयान का पूरे देश में विरोध हुआ है और इसमें शाहरुख भी शामिल हैं। शाहरुख ने अपने स्पष्टीकरण में कहा है कि वे भारत में बिल्कुल सुरक्षित है। लेकिन चूंकि सीमा पार से दोनों बयान उनके संदर्भ में आए हैं इसलिए इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों?
भारत मंे जिस तरह हर नागरिक को अपनी मनोभावना व्यक्त करने का अधिकार है वैसे ही शाहरुख खान को भी है। इस नाते वे अपनी भावनाओें को शालीन तरीके से अभिव्यक्त कर सकें इसका हर हाल मंें समर्थन किया जाएगा। उनकी पीड़ा यह है कि आतंकवादी हमलों के कारण मुसलमान होने के नाते उन्हें कुछ नेता भी उन बातांें का प्रतीक मान लेते हैं और उन्हें विरोध, निंदा....सब कुछ झेलना पड़ता है। इसमें दो राय नहीं कि अमेरिका में 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद पूरी दुनिया में मुसलमानों के प्रति आशंकाएं बढ़ीं हैं और भारत चूंकि आतंकवादी हमलांे के शीर्ष रडार पर है, इसलिए यहां अपवाद की स्थिति नहीं हो सकती। शाहरुख मुंबई में रहते हैं और वहां 26 नवंबर 2008 के हमले के बाद का माहौल सबको पता है। यह ठीक नहीं है, पर जन समूह का मनोविज्ञान ऐसे ही निर्मित होता है जिसके अंत के लिए काफी कुछ करने की आवश्यकता होती है। परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए कठिन क्षणों में स्थिर रहकर बदलाव की प्रतीक्षा करनी होती है या उसे बदलने के लिए हर संभव यत्न करना होता है। विभाजन के दौरान भीषण हिन्दू-मुस्लिम दंगे के बीच गुस्साए हिन्दुओं के एक समूह ने हमला तक करने की कोशिश की, पर गांधी जी ने कभी शिकायत नहीं की। उल्टे वे उनका मन बदलने और सांप्रदायिक एकता के लिए अनशन पर चले गए। गांधी भी चाहते तो देशवासियों से शिकायत कर सकते थे, वे कई प्रकार से अपनी पीड़ा व्यक्त कर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। गांधी जी का व्यवहार हम सबके लिए कठिन क्षणों में व्यवहार का सबसे बड़ा मानक है।
शाहरुख खान या भारत के किसी मुसलमान को प्रत्यक्ष कभी आतंकवादी हमले के लिए दोषी नहीं माना गया। शाहरुख की देश में जो हैसियत है उसमें कोई ऐसा करने की हिम्मत तक नहीं कर सकता। अब राजनीति में तो बयान या विरोध आदि से किसी को रोका नहीं जा सकता। किंतु कोई यह नहीं भूल सकता कि यदि शाहरुख या किसी के विरुद्ध कोई दल या नेता बयान देता है तो उसके समर्थन एवं विरोध दोनों में आवाजें उठतीं हैं। क्या ऐसा कोई समय आया है जब शाहरुख का शिवसेना या अन्य किसी दल की ओर से विरोध हुआ हो और कोई दूसरा समूह उसके विरुद्ध नहीं गया हो? ऐसा एक भी वाकया नहीं हुआ। अमेरिका मंे सुरक्षा सख्ती आम है और हमारे पूर्व राष्ट्रपति से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक को सुरक्षा जांच झेलनी पड़ी। शाहरुख ने जब भी इसका जिक्र किया देश उनके साथ खड़ा हुआ। शाहरुख भी जानते हैं कि उनके चाहने वालों में हिन्दुआंे की संख्या मुसलमानों से ज्यादा है। यदि इस देश का आम आदमी संप्रदाय के संकुचित दायरे में विचार करता तो इस समय जितने खान हिन्दी सिनेमा में धूम मचा रहे हैं उनकी फिल्में फ्लाॅप हो जातीं और वे सुपरस्टार नहीं होते। कहने का तात्पर्य यह कि शाहरुख ने जो कुछ कहा उसके दोनों पहलू हैं और अगर दूसरे पहलू को हम नजरअंदाज कर देंगे तो बिल्कुल अधूरा सच सामने दिखेगा जिसका बड़ा अंश वस्तुतः झूठ का ही विस्तार होता है। शाहरुख को तो इस मायने में स्वयं को सौभाग्यशाली समझना चाहिए कि उनके विरोध करने वालों से ज्यादा संख्या और तीव्र आवाज में उनका हर मौके पर समर्थन किया गया है।
शाहरुख का परिवार स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा रहा है और उसका असर उन पर नहीं होगा ऐसा मानने का कोई कारण नहीं। उनके परिवार वाले चाहते तो विभाजन के दौरान पाकिस्तान जा सकते थे, पर उन्होेंने भारत का चयन किया। ऐसा निर्णय करने वाले मुसलमान परिवारों की निष्ठा पर संदेह करना अपने आप पर संदेह करने जैसा है। भारत के प्रति शाहरुख की निष्ठा या दूसरे शब्दों में उनके देशप्रेम पर प्रश्न कोई उठा ही नहीं सकता। वैसे भी भारत ने उनको जितना कुछ दिया है वह और कहां मिल सकता था! रहमान मलिक का बयान असभ्य, शरारतपूर्ण और आपत्तिजनक है। न शाहरुख ने उनसे अपनी सुरक्षा की पैरवी करने को कहा है और न उनको इसकी कोई जरूरत है। शाहरुख आज अपने जीवन के पांचवें दशक में हैं तो बिना सुरक्षित रहे वे यहां तक तो पहुंचे नहीं हैं। शाहरुख क्या, भारत के किसी मुसलमान की सुरक्षा की चिंता करने की आवश्यकता पाकिस्तान को नहीं है। मलिक अपने पाकिस्तान की चिंता करें जो इस समय आतंकवादी हमलों और उससे होने वाले विनाश के सारे रिकाॅर्ड ध्वस्त कर रहा है और जो सारी दुनिया के भय का कारण है। वहां कोई किसी वक्त कहीं भी हमलों का शिकार हो सकता है। जो हाफिज सईद उनको पाकिस्तान आने का निमंत्रण दे रहा है उसका और उसके समर्थकों का व्यवहार स्वयं कैसा है? पाकिस्तान के उन कलाकारों की जान की शामत आ जाती है जो किसी तरह वैसी आजादी का प्रदर्शन करते हैं या उसकी पैरोकारी जो कि कट्टरपंथियों को इस्लाम के उसूलों के खिलाफ लगता है। शाहरुख जिस तरह की जीवन शैली अपनाते हैं, फिल्मों मंे जिस तरह की भूमिका निभाते हैं, सार्वजनिक मंचों पर उनका जो खुला व्यवहार होता है उसे पाकिस्तान की तासिर कभी सहन कर ही नहीं सकती।
शाहरुख इस विवाद को अब बेवजह बता चुके हैं, जो उनसे बिल्कुल अपेक्षित था। लेकिन अगर वे अपने मनोभाव का एक पक्ष अभिव्यक्त करने से बचते तो हाफिज सईद या रहमान मलिक को इस तरह शरारतपूर्ण बयान देने का अवसर नहीं मिलता। आम आदमी यदि क्षोभ में कुछ अशालीन बोल जाए तो उसका ज्यादा असर नहीं होता और वह नजरअंदाज करने योग्य भी है, लेकिन आप सेलिब्रिटी हैं, आपकी एक-एक बात से समाज प्रभावित होता है, उसका संज्ञान लेता है तो फिर आपके पास वाणी संयम और भावनाओं पर काबू रखने का ही एकमात्र विकल्प होता है। वैसे भी हम भावनाओं के आवेग में एकपक्षीय बात बोल जाते हैं जिनका शरारती तत्व गलत इस्तेमाल करते हैं। यही इस प्रकरण में हुआ है। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के भाजपा एवं संघ के प्रशिक्षण शिविरों में आतंकवाद की शिक्षा संबंधी बयान के बाद भी हमने पाकिस्तान से आने वाली प्रतिक्रियाएं देखीं। इसलिए सीख यही है कि हमारे समाज में आइकाॅन बने नेता, अभिनेता सब अपनी निजी भावनाओं या भावावेशों को नियंत्रण में रखें , कुछ भी बोलने के पहले उसके दूसरे पहलुओं को विचार में लाएं तथा उसकी भावी प्रतिक्रियाओं का आकलन अवश्य करें। हम दूसरों को अपने मामले में किसी तरह उलटबांसी का अवसर ही क्यों दें। (संवाद)
शाहरुख प्रकरण की सीख
भावनाओं पर काबू हो तो शरारती तत्व लाभ नहीं उठा पाएंगे
अवधेश कुमार - 2013-02-02 18:14
शाहरुख खान के जीवन से किसे रश्क नहीं होगा। एक आम थियेटर कलाकार से भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार तक का उनका सफर वर्तमान समय के युवाओं के अंदर भी वैसा ही करने और बनने की प्रेरणा देता है। उनके हाव-भाव, पहनावा, बोलचाल...को अपनाने की ललक युवाओं के बड़े वर्ग के अंदर है। उनकी बातंें मीडिया तक की सुर्खियां बनतीं हैं। वे जहां जाते हैं भीड़ उनके ईर्द-गिर्द खड़ी हो जाती है। आज के समय में कौन होगा जो ऐसा जीवन नहीं चाहेगा। हर दृष्टि से शाहरुख को शत-प्रतिशत सफल जीवन का पर्याय माना जाता है। ऐसा व्यक्ति अगर कुछ अनपेक्षित बोलता है तो इसकी प्रतिक्रिया भी उसी रूप में होती है।