कांग्रेस के लिए सबकुछ ठीकठाक चल रहा था। मई में हुउ चुनाव में उसे सफलता मिली और उसके नेतृत्व में केन्द्र की सरकार दुबारा बन गई। बाद में तीन राज्यों की विधानसभा के लिए चुनाव हुए। उन तीनों में कांग्रेस की ही सरकार थी। उनमें जीत हासिल कर कांग्रेस ने फिर वहां अपनी सरकार बना ली। उसे किसी ओर से किसी प्रकार की कोई चुनौती नहीं मिल रही थी। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी चुनावी हारों से पस्त थी और उत्तराधिकार की समस्या से अपनी अंदरूनी लड़ाई में उलझी हुई थी। वामदल हार का सामना कर सकते में थें और संभलने की अभी कोशिश भी नहीं कर रहे थे।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस उन इलाकों में अपने आपको खड़ा करने की कोशिश कर रही थी, जहां उसकी हालत अच्छी नहीं रही है। कांग्रेस का उसमें सफलता भी मिल रही थी। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में उसे 1985 के बाद की सबसे बड़ी जीत हासिल हुई थी। उक उपचुनाव में मुलायम सिंह की पुत्रवधु को हराकर उसके उम्मीदवार राज बब्बर जीते थे। सबसे अधिक आबादी वाले उस प्रदेश में मुलायम सिंह का सितारा गर्दिश में है और मायावती के सामने राहुल गांधी बड़ी चुनौती बनकर खड़े थे। अन्न्य राज्यो में भी राहुल गांघी का कारवां सफलतापूर्वक बढ़ रहा था। यानी कांग्रेस के लिए वास्तव में उत्सव मनाने का समय था और 125वीं वर्षगांठ को धूमधाम से मनाने के उसके पास बहुत सारे कारण थे।
लेकिन तेलंगना ने उसका सारा मजा किरकिरा कर दिया। तेलंगना के मकड़जाल में कांग्रेस के फंसने के पहले आंध्र प्रदेश में उसके मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी की एक हेलिकाप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। उसकी समस्या की शुरुआत वहीं से हुई। मई महीने में ही कांग्रेस ने राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में चुनाव लड़कर कामयाबी हासिल की थी। लेकिन उनकी मौत ने आंध्र प्रदेश में कांग्रेस में असंतोष की समस्या को पैदा कर दिया। उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी खुद मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन गए और के रोसैया की नवगठित सरकार के लिए समस्याएं शुरू कर दी।
तेलंगना राज्य के आंदोलन को तेज करने का चन्द्रशेखर राव के पास अच्छा मौका था। उन्होंने मौके को हाथ से नहीं निकलने दिया। मुख्यमत्री रोसैया उस आंदोलन का सामना ढंग से नहीं कर पाए और केन्द्र सरकार ने भी हड़बड़ी दिखाते हुउ आंध्र के मुख्यमंत्री से राय मशविरा किए बिना अलग तेलंगना राज्य के गठन की कार्रवाई शुरू कर देने की घोषणा कर दी। इसके बाद तो कांग्रेस एैसा फंस गई है कि अब 125वीं वर्षगांठ का मजा उसके लिए किरकिरा हो गया है।
कांग्रेस की समस्या सिर्फ तेलंगना अथवा आंध्र प्रदेश तक ही सीमित नहीं है। देश के अनेक राज्यों में भी नये राज्यों के गठन की मांग हाने लगी है। उत्तर प्रदेश में जहां राहुल गांधी का अभियान ठीकठाक ढंग से चल रहा है, वहां मायावती ने उनके अभियान की हवा निकालने के लिए प्रदेश को ही 4 भागों में बांटने का प्रस्ताव रख दिया है। पश्चिम बंगाल में अलग गोरखालैंड राज्य के लिए आंदोलन भी शुरू हो गया है। महाराष्ट्र में विदर्भ राज्य के लिए फिर से आंदोनल की हलचल शुरू हो गई है।
यानी उत्सव काल में देश की राजनीति कांग्रेस के प्रतिकूल हो गई है। कांग्रेसी गांधी नेहरु परिवार के प्रति अनुशासित रहने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन आंध्र प्रदेश के अधिकांश सांसद विधायक आज सोनिया गांधी द्वारा तेलंगना के गठन के निर्णय के खिलाफ खड़े हो गये हैं। यानी कांग्रेस के उत्सव के रंग में भंग पड़ गया है। (संवाद)
कांग्रेस के 125 साल: उत्सव पर तेलंगना की छाया
कल्याणी शंकर - 2009-12-18 13:12
कांग्रेस के 125 पूरे हो रहे हैं। अपने 125 वें वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए यह उत्सव के मूड में है। आगामी सप्ताह से उत्सव की शुरुआत होनी है, लेकिन उत्सव के इस माहौल पर तेलंगाना संकट की छाया पड़ रही है। 9 दिसंबर की मध्यरात्रि को तेलंगना नाम के नये राज्य की घोषणा करके कांग्रेस जिस संकट में फंस गई है, उससे निकलने के लिए उसके पास फिलहाल कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है।