सुप्रीम कोर्ट ने एयरक्राफ्ट रूल के सेक्सन 135(4) का हवाला देते हुए कहा कि इसमें यह स्पष्ट है कि एयरलाइंस को अपने किराये की स्कीम को डीजीसीए को देना होता है और उसके बारे में रेगुलेटर को हस्तक्षेप करते हुए आदेश जारी करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। वह सिर्फ मुहर लगाने वाली संस्था नहीं है, बल्कि उसे देखना होगा कि किराया की स्कीम उचित है या अनुचित। लेकिन डीजीसीए अपनी जिम्मेदारी से बचना चाह रहा है और वह कह रहा है कि उसकी भूमिका यात्रियों की सुरक्षा और लाइसेंसिंग तक ही सीमित है। कोर्ट ने कहा कि लगता है कि डीजीसीए की चिता हवाई जहाज उड़ाने वाली कंपनियों के हित तक सीमित है।
सच तो यह है कि रेगुलेटर की पहली प्राथमिकता विमान यात्रि,यों के हितों से संबंधित है। उसे उद्योग के विकास की तो चिंता करनी ही है, लेकिन इसके साथ उसे यह भी देखना होगा कि उद्योग की कंपनियां आपस मे कार्टेल बनाकर यात्रियों के हितों को नुकसान तो नहीं पहुंचा रही है। लेकिन पिछले दो दशक से जब से इस सेक्टर का डिरेगुलेशन हुआ है, डीजीसीए ठीक उलटा कर रहा है।
हाल ही में डीजीसीए के प्रबंधकों के खिलाफ एक से बढ़कर एक आरोप लगे। उन पर एक आरोप यह लगा कि वे और उनके परिवार के सदस्य मुफ्त विमान यात्रा कर रहे हैं। वे नकली फ्लाई सर्टिफिकेट भी जारी कर रहे हैं। उड़ाने सुरक्षा की कीमत पर वे डूब रही एयरलाइंस कंपनियों तक को बचा रहे हैं।
इस समय सस्ती हवाई यात्रा के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा डीजीसीए ही बना हुआ है। पिछले दिनों उसने कुछ घरेलू कंपनियों द्वारा हवाई यात्रा करने की कोशिश को नाकाम कर दिया। ऐसा करके वह अक्षम कंपनियों के हितों की रक्षा करना चाह रहा है। कैरियर स्पाइसजेट ने जब पिछले महीने एक स्कीम की घोषणा करते हुए कहा कि वह यात्रियों को 2013 रुपये के 10 लाख टिकट जारी करेगा, तो डीजीसीए ने अन्य एयरलाइंस कंपनियों के लिए आदेश जारी कर दिया कि कोई अन्य कंपनी इस मामले में स्पाइसजेट की नकल न करे। उसके इस आदेश ने सुप्रीम कोर्ट के सामने उसके उस दावे की पाल खोल दी जिसमें उसने कहा था कि यात्री किराया संबंधित मामलों में वह किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
पिछले दिनों उस पर पब्लिक और सांसदों की तरफ से दबाव पड़ा तो उसने एयरलाइन द्वारा ट्रांजैक्शन फी यात्रियों से वसूलने पर रोक लगा दी। यह फी एजेंट को एयरलाइन कंपनी भुगतान करती है, लेकिन इसका बोझ उसने यात्रियों पर डाल दिया। डीजीसीए ने अपनी तरफ से दिशा निदेश तो जारी कर दिए हैं, लेकिन उसके निदेशों का पालन भी हो रहा है या नहीं, इसके बारे में वह किसी प्रकार की चिंता नहीं कर रहा है। यात्रियों से वसूले जा रहे यूजर्स डेवलपमेंट फी के मसले पर भी इसने चुप्पी साध रखी है।
इसी तरह के माहौल मे उसने पिछले 11 जनवरी को सभी एयरलाइंस कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की एक बैठक बुला ली और उसमें आदेश जारी कर दिया कि स्पाइसेट द्वारा यात्री किरायों में कटौती जैसी योजनाओं के चक्कर में अन्य कंपनियां नहीं पड़े।
स्पाइसजेट और इंडिगो भारत की दो बहुत ही सक्षम कंपनियां हैं, जो अच्छा बिजनेस कर रही हैं। पिछले साल किंगफिशर की दुर्गति और उ़च्च किराये के कारण दोनों ने काफी मुनाफा कमाया। हालांकि इस साल सिविल एविएशन उद्योग घाटे में रहा, क्योंकि उच्च किरायों के कारण यात्रियों ने विमान यात्रा करने मे किफायत कर दी।(संवाद)
डीजीसीए सिर्फ एयरलाइंस की ही चिंता नहीं होना करे
यात्रियों के हितों का भी ख्याल हो
नन्तु बनर्जी - 2013-02-09 17:16
नई दिल्लीः यह बहुत ही अटपटा है कि सिविल एविएशन उद्योग के रेगुलेटर ’’डायरेक्टर जनरल आॅफ सिविल एविएशन (डीजीसीए)’’ ने सुप्रीम कोर्ट को पिछले महीने कहा कि हवाई यात्रा का किराया तय करने में उसकी कोई भूमिका नहीं है। न्यायमूर्ति डी के जैन और मदन लाकुर की पीठ ने उनकी इस दलील को उसी समय मानने से मना कर दिया।