पार्टी के अंदर चौतरफा हताशा का माहौल है। निराशा कितनी गहरी है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में पार्टी की स्थिति कैसे सुधारी जाय, इसके लिए रणनीति बनाने का आइडिया तक किसी के पास नहीं है।
जब से राहुल गांधी ने प्रदेश के संगठन को आठ अंचलों में विभाजित किया है, उस समय से ही प्रदेशी कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष के पास करने के लिए कोई काम नहीं रह गया है।
लोग बस याद करते हैं कि जिस रीता बहुगुणा जोशी प्रदेश की अध्यक्षा थीं, तो पार्टी के अंदर लोग कितने सक्रिय रहा करते थे। उस समय पार्टी ने लगातार प्रदेश सरकार के खिलाफ टकराते रहने की नीति अपना रखी थी और उस नीति पर लगातार अमल भी होता रहता था।
रीता बहुगुणा जोशी के नेतृत्व में कांग्रेस साधारण से साधारण मसले पर भी प्रदेश की मायावती सरकार के खिलाफ प्रशासनहीनता और भ्रष्टाचार के मसले पर लगातार संघर्ष करती रहती थी।
रीता बहुगुणा जोशी का मायावती सरकार के साथ टकराव उस स्तर तक पहुंच गया था, जहां बहुजन समाज पार्टी के समर्थकों ने सुश्री जोशी के घर में ही आग लगा डाली थी। उस समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और अन्य पार्टी नेताओं ने उस आगजनी के लिए सीधे मायावती को ही जिम्मेदार ठहराया था।
रीता जोशी ने प्रदेश सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए जनता के हितों के मसलों पर कई बार अपनी गिरफ्तारी भी दी थी। किसान और आम लोगों के मसलों पर उन्होंने मायावती सरकार के खिलाफ ही नहीं, बल्कि अखिलेश सरकार के खिलाफ भी अनेक बार आंदोलन किया था।
लेकिन जब से निर्मल खत्री ने प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष का पद संभाला है, तब से प्रदेश सरकार के खिलाफ कांग्रेस की ओर से कोई भी आंदोलन नहीं हुआ है।
प्रदेश के पार्टी नेता और कार्यकत्र्ता कितने हताश और निराश हैं, इसका पता पिछले 26 दिसंबर को लखनऊ में हुए पार्टी के एक फंक्शन में जुटे लोगों की संख्या को देखकर चलता है।
उस फंक्शन में प्रदेश से सभी एआइसीसी और पीसीसी सदस्य बुलाए गए थे। जिले के अन्य पदाधिकारियों को भी बुलाया गया था, पर उसमें उपस्थिति बहुत ही कम थी।
अमीर हैदर जैसे वरिष्ठ पार्टी नेताओं का कहना था कि केन्द्रीय नेतृत्व और पार्टी के कार्यकत्र्ताओं के बीच संवादहीनता कायम हो चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जो लोग दूसरी पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में आए हैं, उनका ज्यादा सम्मान हो रहा है, जबकि पार्टी के प्रति जो लगातार बफादार रहे, उनकी उपेक्षा हो रही है।
कुछ वक्ताओं ने कहा कि अनुसूचित जातियों के सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण का समर्थन करने के कारण अगड़ी जातियों के लोगों के बीच कांग्रेस की लोकप्रियता घटी है।
राजा राम पाल जैसे कुछ जोनल अध्यक्षों ने शिकायत की कि जब वे पार्टी के संगठन को जमीनी स्तर से उठाने में लगे हुए थे, और लोकसभा चुनावों के लिए संभावित पार्टी उम्मीदवारों की सूची बनाने की प्रक्रिया में व्यस्त थे, तो उसी समय पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने उसी काम के लिए केन्द्रीय पर्यवेक्षक भेज डाले। उन पर्यवेक्षकों को भी उम्मीदवारों की सूची ही तैयार करनी थी। उनके कारण जोनल अध्यक्षों का काम मुश्किल में पड़ गया।
सत्यदेव त्रिपाठी जैसे कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि जब तक कांग्रेस के पुराने नेताओं को नहीं लाया जाता और उन्हें महत्व नहीं दिया जाता, तब तक पार्टी को चुनाव का सामना करने के लिए तैयार करना मुश्किल है।
वरिष्ठ कांग्रेस को मानना है कि राहुल गांधी को अमेठी और रायबरेली को छोड़कर ज्यादा से ज्यादा समय लखनऊ व अन्य क्षेत्रों में बिताने चाहिए।
कांग्रेस सर्किल में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि स्थानीय नेता लोकसभा उम्मीदवारों के चयन के लिए चाहे लाख कसरतें करते रहें, अंत में राहुल गांधी के कंप्यूटर ब्रिगेड की ही चलेगी और स्थानीय कसरतें धरी की धरी रह जाएंगी।
कांग्रेस नेताओ को लगता है कि राहुल गांधी को आदेश देना चाहिए कि प्रदेश नेतृत्व बिगड़ती कानून व्यवस्था, प्रशासनहीनता और बिजली की बिगड़ती आपूर्ति के खिलाफ लोगों को लेकर सड़क पर उतरे।
पार्टी नेताओं का यह भी मानना है कि जबतक राहुल गांधी कार्यकत्र्ताओं को यह संदेश देने में सफल नहीं हो जाते हैं कि पार्टी सपा, बसपा और भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए गंभीर है, तबतक प्रदेश में पार्टी को फिर से पटरी पर लाना संभव नहीं हो पाएगा। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में राहुल के सामने चुनौतियों का पहाड़
पार्टी कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह नहीं
प्रदीप कपूर - 2013-02-19 08:45
लखनऊः आगामी लोकसभा चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को फिर से जिंदा कर देना राहुल गांधी के लिए पहाड़ उठाने जैसा चुनौती भरा काम है।