विभाजन के बाद हरियाणा ने आया राम और गया राम की राजनीति का जो दौर देखा है, उससे पंजाब अबतक मुक्त रहा है। पर उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने दलबदल की राजनीति का एक नया दौर पंजाब में भी शुरू कर दिया है। आज उनके दल की सरकार है और यह पिछले 6 साल से चल रही है। दलबदल की राजनीति सत्ता के बनाए रखने अथवा किसी सत्ता को अस्थिर करने के लिए की जाती है। पंजाब में अकाली दल की सरकार को अस्थिरता का कोई खौफ भी नहीं सता रहा है, क्योंकि उसे भाजपा का समर्थन हासिल है। भाजपा खुद सरकार में शामिल है और आने वाले समय में दोनों के बीच का गठबंधन किसी तरह की समस्या का सामना करने भी नहीं जा रहा है।
यानी पंजाब की सरकार कोई कोई खतरा नहीं है। उसके बावजूद यहां दलबदल का खेल चल रहा है। हालांकि हरियाणा में आया राम और गया राम की जो कुख्यात राजनीति हुआ करती थी, उस तरह के दलबदल का खेल अब संभव भी नहीं है। क्योंकि राजनीति के उस दौर में कोई दल बदल कानून नहीं था और दल बदलने वाले विधायकों या सांसदों की सदस्यता नहीं खारिज होती थी। पर अब स्थिति बदली हुई है। देश में एक दलबदल विरोधी कानून है, जिसके तहत कोई एक विधायक दल बदलने की सोच नहीं सकता, क्योंकि इससे विधानसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ता है। यानी यदि कोई विधायक दल बदलता है, तो वह विधानसभा से बाहर होने के लिए तैयार रहे।
दलबदल विरोधी कानून के कारण विधायकों को भले ही नहीं तोड़ा जा सकता, पर पार्टी के पदाधिकारियों को तो तोड़ा ही जा सकता है। पंजाब में यही हो रहा है। सुखबीर सिंह बादल ने कांग्रेस के अनेक पदाधिकारियों को तोड़कर अपने दल में मिला लिया है। कांग्रेस भी ऐसा करने की कोशिश कर रही है और उसने भी कुछ अकाली नेताओं को तोड़कर अपने में मिलाया है, लेकिन उसकी सफलता का ग्राफ छोटा है, जबकि सुखबीर सिंह बादल इस काम में ज्यादा सफलता पा रहे हैं।
मोगा में उपचुनाव हो रहा है। इस उपचुनाव का कारण भी दलबदल ही है। कांग्रेसी विधायक जोगींदर पाल जैन को सुखबीर ने अकाली दल में मिला लिया। उस दलबदल के कारण श्री जैन की सदस्यता खत्म हो जाती। बहरहाल वैसी स्थिति आने के पहले ही उन्होंने अपनी विधानसभा सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। इसके कारण मोगा विधानसभा क्षेत्र खाली हो गया और उस पर वहां अब उपचुनाव हो रहा है।
पहले किए गए वायदे के अनुसार अकाली दल ने श्री जैन को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। श्री जैन की एक आपराधिक पृष्ठभूमि रही है। उनके खिलाफ अनेक आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। उन्हें अपने दल में स्वीकार करके सुखबीर सिंह बादल ने अपने उस बयान को गलत साबित कर दिया है, जिसमंे उन्होंने कहा था कि वे अपने दल को आपराधिक तत्वों से मुक्त कर डालेंगे। मुक्त करना तो दूर वे ऐसे तत्वों को बाहर से अपने दल में ला रहे हैं। जोगींदर पाल जैन इसका एक उदाहरण हैं।
सुखबीर बादल कह रहे हैं कि कांग्रेस के अनेक नेता उनके दल में आना चाहते हैं। वे दावा कर रहे हैं कि करीब आधा दर्जन कांग्रेस विधायक भी अकाली दल में आने के इच्छुक हैं। यदि वे सच कह रहे हैं, तो उन विधायकों को पार्टी छोड़ने की कीमत के रूप मंे विधानसभा की अपनी सदस्यता गंवानी पड़ेगी और जोगींदर पाल जैन की तरह फिर से चुनाव लड़ना पड़ेगा।
आने वाले दिनों मे दलबदल की यह राजनीति कौन सा रूप लेती है, इसका निर्धारण मोगा में हो रहे उपचुनाव के नतीजे से होगा। यदि श्री जैन जीत जाते हैं तो और विधायक कांग्रेस से इस्तीफा देकर अकाली दल के टिकट पर फिर से चुनाव लड़कर विधानसभा में आने की सोंचेगे। पर क्या मोगा में श्री जैन की जीत पक्की है? ऐसा दावे से कहा नहीं जा सकता। अकाली दल के उम्मीदवार को जीत के लिए कितनी कोशिश करनी पड़ रही है, इसका अंदाज इसीसे लगाया जा सकता है कि एक सप्ताह तक बीमारी में पड़े रहने के बाद बिस्तर से उठते ही मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने मोगा विधानसभा में चुनावी सभा कर डाली। जाहिर है, अकाली दल इस चुनाव को जीतने के लिए पूरा जोर लगा रही है और वह जीत के प्रति आश्वस्त नहीं है।
यानी आने वाले दिनों में प्रदेश में दल बदल की राजनीति कौन सा रूप लेती है, इसका पता मोगा विधानसभा के उपचुनाव के नतीजों के आने के बाद लगेगा। लिहाजा यह उपचुनाव पंजाब की राजनीति में एक नया मोड़ लाने की क्षमता रखती है। (संवाद)
पंजाब की राजनीति पर दलबदल की छाया
मोगा उपचुनाव एक नया मोड़ साबित हो सकता है
बी के चम - 2013-02-19 13:26
चंडीगढ़ः 1966 में पंजाब के विभाजन के बाद हरियाणा के अस्तित्व में आते ही वहां दलबदल की राजनीति का दौर शुरू हो गया था। 1966 और 1968 के बीच हरियाणा के 81 विधायकों में से 44 ने दलबदल किए थे। उनमें से एक ने 5 बार, दो ने 4 बार, तीन ने तीन बार, चार ने दो बार और 34 ने एक बार दल बदले थे। उनमें से एक ने तो एक दिन में ही 3 बार दल बदल डाले थे। एक दिन में 3 बार दल बदलने वाले माननीय विधायक का नाम था- गया लाल। उनके नाम पर ही दलबदल की राजनीति के उस दौर को आया राम और गया राम की राजनीति का नाम दे दिया गया था।