इस तरह की मांग विपक्ष नहीं कर रहा है। सच तो यह है कि कोई भी काॅप्टर घोटाले की जांच जेपीसी से कराने की मांग नहीं कर रहा है, लेकिन कांग्रेस खुद अपनी तरफ से कह रही है कि वह इस मामले की जेपीसी से जांच करवाने को तैयार है।

गौरतलब है कि जब 2जी घोटाले की जेपीसी जांच की मांग विपक्ष ने की थी, तो उसे केन्द्र सरकार ने पहले मानने से साफ इनकार कर दिया था। संसद का शीत सत्र हंगामे का शिकार होता रहा, पर सरकार के कान पर जूं नहीं रेंग रही थी। पूरा का पूरा शीत सत्र हंगामे का शिकार हो गया, लेकिन केन्द्र सरकार और कांग्रेस ने विपक्ष की मांग मानने से साफ इनकार कर दिया। अंत में बजट पारित करवाने की मजबूरियों के कारण केन्द्र सरकार ने जेपीसी जांच की मांग स्वीकार कर ली थी और वह जांच अभी भी जारी है।

पर काॅप्टर घोटाले की जेपीसी जांच की बात खुद सरकार के लोग अपनी तरफ से कर रहे हैं। उनकी इस मांग के पीछे एक बहुत बड़ी सोची समझी चाल है। इस घोटाले को जेपीसी जांच के जाल में घुसाकर केन्द्र सरकार इसे चुनावी मुद्दा बनने नहीं देना चाहती। यानी जब जांच चल रही हो, तो इस पर किसी तरह की बात करने की विवशता या सफाई देने की जरूरत से सरकारी पार्टियां बच जाएंगी।

इतना नहीं, जेपीसी जांच से कुछ भी निकलकर नहीं आएगा। जेपीसी में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य होते हैं। लोकसभा का कार्यकाल समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। उसका कार्यकाल जितना बचा हुए है, उसमें जेपीसी जांच का पूरा होना नामुमकिन है। जाहिर है, जांच समाप्त होने के पहले ही एक नई लोकसभा अस्तित्व में आ जाएगी और उसके साथ उस जेपीसी के अस्तित्व पर ही सवाल उठ जाएगा। ज्यादा संभावना है कि वह जेपीसी ही समाप्त हो जाएगी, क्योंकि अभी तक कोई भी जेपीसी लोकसभा के भंग होने अथवा उसका कार्यकाल समाप्त होने के बाद अस्तित्व में नहीं रही है।

यदि यह मान भी लिया जाय कि जेपीसी लोकसभा चुनाव के पहले अपनी जांच रिपोर्ट दे देगी, तो उस रिपोर्ट का कोई मायने नहीं रह जाएगा, क्योंकि उसकी अनुशंसा नई लोकसभा के गठन और नई सरकार आने के बाद कोई देखना तक नहीं चाहेगा। ऐसा पहले भी हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान बोतल बंद कोल्ड ड्रिंक्स का लोगों के ऊपर पड़ने वाले असर की जांच के लिए एक जेपीसी का गठन हुआ था। जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट भी दे दी थी, लेकिन उस समय एनडीए सरकार अपने अंतिम चरण में थी। बाद में एक नई सरकार बनी। उस रिपोर्ट को देखने की जहमत किसी ने नहीं उठाई है। वह रिपोर्ट आज संसद की संपत्ति है और संसद के पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रही है।

जिस तरह का घोटाला हुआ है, उसमे जेपीसी की जांच का कोई मायने ही नहीं रह जाता, क्यांेकि यह अपराध सिर्फ भारतीय धरती पर नहीं हुए हैं, बल्कि इसका एक ग्लोबल आयाम हैं। इसमें लिप्त अपराधी भी सिर्फ भारत के ही नहीं हैं, बल्कि दूसरे देशों के लोग भी इसमें शामिल हैं। अनेक विचैलिये दूसरे देशों के हैं। इटली की सरकार अथवा वहां की न्यायपालिका भी भारत को सहयोग करने नहीं जा रही, क्योंकि वैसा करने से इटली के हितों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अभी भी इटली की रक्षा कंपनियां भारत के साथ सुरक्षा सौदे के लिए हो रही सौदेबाजी में शामिल है। वहां की सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहेगी, जिसके कारण भारत से हो रहे रक्षा सौदे विपरीत रूप में प्रभावित हो जाए। इसलिए जेपीसी की इस जांच में कोई भूमिका ही नहीं हो सकती।

सच तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बनी स्पेशल इन्वेशटिगेशन टीम (एसआइटी) ही इसकी जांच के लिए सबसे बेहतर साबित होगी। सीबीआई की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है। वह सरकार में शामिल लोगों की जांच के लिए उपयुक्त नहीं रह गई है। इसलिए सीबीआई जांच से भी बात नहीं बनेगी। हम देख चुके हैं कि सीबीआई ने बोफोर्स मसले पर कितनी गड़बडि़यां की और उस घोटाले की जांच का कोई परिणाम नहीं निकला। यदि काॅप्टर घोटाले की जांच भी बोफोर्स के नक्शे कदम पर हुई तो किसी विन चड्ढा को पकड़कर सारा दोष उसी के सिर पर मढ़ दिया जाएगा। इसलिए जेपीसी अथवा सीबीआई से बेहतर जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआइटी के द्वारा ही हो सकती है। पर यहां तो कांग्रेस इस घोटाले का दबाने में ही लगी हुई है और जेपीसी जांच की बात कर रही है। (संवाद)