उन्होंने सुपर अमीर पर 3 फीसदी का टैक्स अधिभार जरूर डाल दिया है, लेकिन यह भी कह दिया है कि यह सिर्फ ही साल के लिए है। वे सुपर अमीर वे हैं, जिनकी आमदनी सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक है। ऐसे लोग देश में मात्र 42 हजार हैं। यानी उन्होंने देश के 42 हजार आयकर दाताओं पर टैक्स के भार को थोड़ा बढ़ा दिया। इस टैक्स अधिभार से, जाहिर है, सरकारी खजाने को कोई बहुत फायदा होने वाला नहीं, इसलिए उनके पहले उन लोगों के लिए देने के लिए कुछ ज्यादा था ही नहीं, जिन्हें कांग्रेस और सोनिया गांधी आम आदमी कहती हैं।
यदि टैक्स अधिभार लगाने के लिए 50 लाख और उससे ज्यादा आया वाले लोगों को शामिल किया जाता, तो केन्द्र सरकार को मिलने वाला राजस्व शायद सम्मानजनक होता, पर लगता है कि पी चिदंबरम ने चुनावी विवशता के ऊपर अपने मूल दर्शन को ही ज्यादा महत्व दिया है, जिसके तहत अर्थव्यवस्था का इंधन आम लोगों को ही बनाया जाना है और सरकार चलाने के लिए भी राजस्व उन्हीं लोगों से ज्यादातर उगाहना है, जो आय संरचना के नीचे पायदान पर हैं।
जिस तरह से एक करोड़ रुपये सालाना से अधिक करने वाले लोगों पर 3 फीसदी टैक्स अधिभार लगाने का कोई खास महत्व नहीं, उसी तरह 5 लाख रुपये सालाना आमदनी करने वाले लोगों को 2 हजार रुपये की टैक्स रियायत देने का भी कोई मतलब नहीं। दो हजार की यह छूट इतनी नहीं है, जिससे पी चिदंबरम लाभार्थियों की तालियां पा सकें और चुनाव के समय उनकी पार्टी इसे लोगों को दिए गए एक उपहार के रूप में पेश कर सकें। हां, इतना तो कहा ही जा सकता है कि श्री चिदंबरम ने चुनावी बजट के नाम पर कथित रूप से आम लोगों के हाथ में कुछ तो डाल ही दिया है, भले जिनके हाथ पर उन्होंने यह उपहार रखा है, वे यह सोंच रहे हैं कि उन्होंने उन्हें यह क्या दे दिया?
वित्त मंत्री ने अपने इस बजट में महिलाओं के लिए एक विशेष बैंक बनाने की घोषणा कर दी है। महिलाओं को एक अलग वोट बैक के रूप में विकसित करने की हमारे कुछ राजनेताओं की पिछले कुछ सालों से कोशिश रही है। यह घोषणा उसी कोशिश का हिस्सा है, हालांकि राजनीति की जमीनी हकीकत से जुड़े लोगो को पता है कि महिलाओं का उस तरह से कोई वोट बैक नहीं होता, जिस तरह से जातियों और समुदायों का होता है। भारत में अभी भी मतदान करने का फैसला एक पारिवारिक फैसला होता है और पूरा परिवार चुनाव में आमतोर पर किसी क्षेत्र में एक ही उम्मीदवार को वोट देता है। पति और पत्नी अलग अलग उम्मीदवारों को वोट दे रहे हों, ऐसा आमतौर पर होता नहीं।
इसके बावजूद कांग्रेस यह दावा तो कर ही सकती है कि उसकी सरकार ने महिलाओं के लिए एक अलग बैंक स्थापित कर उनके कल्याण के लिए बड़ा कदम उठाया। सरकार का यह फैसला महिलाओं को अच्छा भी लग रहा हो, लेकिन इसमें खतरा यह है कि आने वाले समय में राजनेता इससे प्रेरणा लेकर अनुसूचित जाति बैंक, अनुसूचित जाति बैंक और ओबीसी बैंक की स्थापना करने लगें। वैसे कमजोर तबकों के विकास के लिए वित्त उपलब्ध कराने के वास्ते सरकार ने पहले से ही कुछ वित्तीय संस्थान खोल रखे हैं, जिनसे कमजोर वर्गों के लोगों को कुछ खास मिल नहीं रहा है।
वित्त मंत्री खुश हैं कि वर्तमान वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5 दशमलव 2 फीसदी ही रहा। वित्त मंत्रालय का भार संभालने के बाद उन्हें इस घाटे के 5 दशमलव 3फीसदी तक जाने की उम्मीद जताई थी। वे खुश हैं कि इस मोर्चे पर प्रदर्शन उम्मीद से भी बेहतर रहा। लेकिन इतना बड़ा राजकोषीय घाटा अपने आपमें चिंता का बड़ा कारण होना चाहिए। सरकार ने डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस को महंगा करके राजकोषीय घाटा को इस स्तर तक लाने में सफलता पाई है। यही नहीं, इस साल के लिए योजना खर्च के लिए जो राशि आबंटित की गई थी, उसके एक बड़े हिस्से को खर्च ही नहीं किया गया। यानी तेल गैस महंगा कर और योजनागत खर्च को रोककर ही राजकोषीय घाटे को 5 दशमलव 2 फीसदी तक लाया जा सका है। इसलिए सरकार के लिए इसमंे खुश होने की कोई बात नहीं है। यदि सरकार ने जरूरी खर्चों को रोकने और लोगों पर महंगाई का भार डालने का फैसला नहीं किया होता तो राजकोषीय घाटा और भी बहुत ज्यादा होता। जाहिर है सरकार अपना संकट टालने के लिए पूरी अर्थव्यवस्था को संकट में डाल देती है और इस बात की खुशी मनाती है कि वह संकट में नहीं पड़ी। आगामी वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 4 दशमलव 8 फीसदी रखा गया है। देखना दिलचस्प होगा कि सरकार उस लक्ष्य को कैसे पाती है या पाती भी है कि नहीं।
वित्त मंत्री ने यह बजट बहुत ही सहम सहम कर तैयार किया है। उन्हें पता है कि देश के अनेक राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और लोकसभा का भी चुनाव होना है, इसलिए वे कम से कम बजट प्रावधानों में ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहते कि लोगों के बीच सरकार के बारे में कोई खराब संदेश जाय। अच्छा संदेश भेजना तो वे जरूर चाहते, लेकिन इसके लिए संसाधन चाहिए, जो सरकारी खजाने में नहीं है और मनमोहन सिंह की सरकार अमीरों पर भी बोझ नहीं डालना चाहती। इसलिए इस बजट के निर्माण में मुख्य दर्शन यही रहा है कि यदि आप किसी को खुश नहीं कर सकते, तो किसी को नाराज भी नहीं कीजिए। (संवाद)
एक सहमा हुआ बजट
कोई जोखिम नहीं लेना चाहते चिदंबरम
उपेन्द्र प्रसाद - 2013-02-28 10:47
केन्द्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इस साल पेश किए गए बजट में देश के किसी तबके को न तो खुशी मनाने का मौका दिया है और न ही गम करने का। बजट निर्माण के समय वे अमीरो पर ज्यादा टैक्स लगाने की बात जरूर रहे थे और तब लग रहा था कि शायद चुनावी बजट होने के कारण वे आम लोगों की बाहबाही लूटने के लिए कुछ खास योजनाएं लेकर आएंगे और उन्हें कुछ खास रियायतें भी देंगे और उसके लिए कोष उपलब्ध करने के अमीरों पर टैक्स का भार बढ़ा देंगे, पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।