चिदंबरम द्वारा पेश किया गया यह आठवां बजट था। इस बजट ने लोगों को तो मुट्ठी भर ही दिया है, पर उनसे झोली भर भर कर लिया है। वित्तमंत्री द्वारा इस साल के खर्च में एक झटके में 60 हजार करोड़ रुपये की कटौती की घोषणा कर दी गई। पिछले बजट में तय की गई खर्च की राशि से इस बजट में मात्र 10 फीसदी की ही वृद्धि हुई है।

आश्चर्यजनक रूप से यह बजट काॅपोर्रट सेक्टर और मध्यवर्ग के लोगों के लिए बहुत ही कड़ा है। उनके ऊपर 19 हजार करोड़ रुपये का बोझ और भी बढ़ा दिया गया है। एक करोड़ रुपये सालाना से अधिक आमदनी करने वाले लोगों पर वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सुपर अमीर टैक्स लगा डाला है। उन्हें अभी जितना टैक्स देना पड़ रहा है, उससे 10 फीसदी और ज्यादा टैक्स उन्हें आगे देना होगा। यह कदम एक राजनैतिक चोंचला है, जिसका उद्देश्य आम लोगों को यह बताना है कि सरकार अमीर लोगों पर उतना मेहरबान नहीं है, जितना वे उसे समझते हैं। देश में सिर्फ 42,800 लोग ही ऐसे हैं, जो यह दावा करते हैं कि उनकी सालाना आमदनी एक करोड़ रुपये से ज्यादा है।

सेंसेक्स की गति से पता चलता है कि बजट पर बाजार ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की। वित्तमंत्री द्वारा बजट पेश किए जाने के पहले शेयर बाजार के संवेदनशील सूचकांक 163 अंक ऊपर चढ़ गए थे। लेकिन जब बंद हुए तो यह पिछले दिन के अंक की तुलना में 224 अंक नीचे थे। आखिर ऐसा हुआ क्यो? जाहिर है कि बाजार की अपेक्षाओं को वित्तमंत्री ने पूरा नहीं किया और कुछ ऐसे कर प्रावधान कर दिए जो बाजार को ठीक नहीं जंचा। दरअसल वित्तमंत्री ने ज्यादा राजस्व प्राप्ति के लिए घरेलू और विदेशी दोनों तरह की कंपनियों पर काॅर्पोरेट टैक्स का सरचार्ज बढ़ा दिया। 10 करोड़ से ज्यादा करयोग्य आय वाली घरेलू कंपनियों पर यह सरचार्ज 5 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया गया। विदेशी कंपनियां, जो पहले से ही ज्यादा दर से कार्पोरेट टैक्स देती हैं, भी इस तरह की मार से मुक्त नहीं रहीं। उनके ऊपर का यह सरचार्ज 2 फीसदी से बढ़ाकर 5 फीसदी कर दिया गया है।

बाजार की हालत एकाएक खराब हो गई है। सरकार ने काॅर्पोरेट सेक्टर से ज्यादा पैसा निकालने का उपाय किया है और इन पैसों का इस्तेमाल वोटरों को रिझाने के लिए किया जाएगा। कार्पोरेट सेक्टर और इन्फ्रास्ट्रक्चर फील्ड को कहा गया है कि वे अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए बाजार से उधार लें और उसके लिए बांड जारी करें। लेकिन इस तरह के उपाय सफल नहीं हो रहे हैं। इस साल इस तरह के बांड से 60 हजार करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य था, जो बूरी तरह पराजित होता दिखाई दे रहा है। पिछले साल इस तरह के बांड से मात्र 30 हजार करोड़ रुपये ही हासिल हो सके, जबकि इस साल 25 हजार करोड़ रुपये हासिल होने की उम्मीद है।

परंपरा को जारी रखते हुए इस बजट में भी कस्टम शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा करों के साथ छेड़छाड़ की गई। उनमें से कुछ तो तर्कसंगत है, पर कुछ का उद्देश्य मात्र ज्यादा राजस्व हासिल करना है। टैक्स लगाने वाले बाबू शब्दों और शब्दालियों के साथ खेल खेलने में माहिर हैं और किसके साथ किसे रखकर कितना राजस्व बढ़ा दें, कुछ कहा नहीं जा सकता। वैसे इस बार उनकी इस बाजीगरी के कारण अप्रत्यक्ष करों से राजस्व में 47 अरब रुपये की वृद्धि होगी।

आने वाले दिन बिजली उत्पादन कंपनियों के लिए अच्छे नहीं होंगे। उन्हें अब महंगा कोयला मिलेगा। खासकर उन संयंत्रों में लागत बढे़गी, जो घरेलू कोयले का इस्तेमाल करते हैं। वित्त मंत्री ने घरेलू कोयले पर लगाए जाने वाल उत्पाद शुल्क को अब आयातित कोयले पर लगाए जाने वाले आयात शुल्क से लिंक कर दिया है। इसके कारण अब उनसे ज्यादा उत्पाद शुल्क वसूला जाएगा।

इस बजट में एक बार फिर काले धन की समस्या को नजरअंदाज कर दिया गया है। सरकार के पास एक अच्छा मौका था। वह चाहती तो काले धन को कराधान के दायरे में लाकर ज्यादा राजस्व उगाह सकती थी। अर्थव्यवस्था की धीमी विकास, चालू खाते पर घाटा और बड़े राजस्व घाटे के लिए काला धन मुख्य रूप से जिम्मेदार है। लेकिन इस मोर्चे पर सरकार ने इस बजट में कुछ भी नहीं किया है। (संवाद)