बुधवार, 2 अगस्त, 2006

देशद्रोही ‘भेदिये’ के जिक्र से मनमोहन सिंह परेशान क्यों

क्या भारत किसी गहरे षड्यंत्र में फंस गया है?

ज्ञान पाठक

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह की किताब “A Call to Honour – In Service of Emergent India” में देशद्रोही ‘भेदिये’ का जिक्र क्या आया कि इस सिंह का मुंह नोचने को झपट पड़े हैं दूसरे सिंह ‘मनमोहन सिंह’। आखिर भारत के प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह इससे परेशान क्यों हैं? जसवंत सिंह ने उस देशद्रोही का नाम अब तक क्यों नहीं बताया? वर्ष 1995 की देशद्रोह की इस घटना, जिसमें किसी देशद्रोही ने भारत के प्रस्तावित नाभिकीय परीक्षण की गुप्त जानकारी अमेरिका को लीक कर दी थी, पर आखिर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गयी हालांकि इस बीच केन्द्र में देश की लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों की सरकारें शासन कर चुकी हैं? क्या भारत किसी ऐसे गहरे षड्यंत्र में फंस गया है कि किसी में अपराध प्रक्रिया संहिता के तहत कार्यवाही शुरु करने की हिम्मत नहीं? और भी अनेक सवाल हैं जिनका जवाब देश की जनता को चाहिए।

वस्तुस्थिति पर पहले एक नजर डालना उपयोगी होगा। जिनके प्रधानमंत्रित्व काल के अंतिम वर्ष में उक्त कथित देशद्रोह की घटना हुई थी वह पी वी नरसिंहा राव अब हमारे बीच नहीं रहे। यदि वह जीवित होते तो संभवतः इस रहस्य पर से पर्दा उठा सकते थे। उनके निधन के बाद उभरे इस विवाद पर दिमागी कसरत करने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

तब से लेकर अब तक एक के बाद एक ऐसी रपटें और किताबें प्रकाशित तथा प्रचारित होती रहीं हैं जिनमें कहा गया कि नरसिंहा राव 1995 की दूसरी या 1996 की पहली छमाही में पोखरण में नाभिकीय परीक्षण करना चाहते थे। अब इस बात के प्रमाण सार्वजनिक हो चुके हैं कि अप्रैल 1995 में नरसिंहा राव ने सेना को आदेश दिया था कि वह पोखरण में नाभिकीय परीक्षण के लिए संक्षिप्त अवधि में स्थल तैयार करने के लिए तैयार रहे। उनके ही नेतृत्व में नवंबर महीने में बंगलूर में एक उच्चस्तरीय गुप्त राजनीतिक बैठक हुई थी यह विचार करने के लिए कि भारत नाभिकीय परीक्षण करे या नहीं। उस बैठक में हुई बातें अमेरिकी अधिकारियों तक पहुंच गयीं। पूर्व अमेरिकी राजदूत हैरी बार्न्स ने अमेरिकी सिनेटर टामस डबल्यू ग्राहम्स को एक पत्र लिखा और विस्तार से बताया कि जो गुप्त बैठक हुई उसमें क्या हुआ। पत्र में उन लोगों के नाम भी थे जिन्होंने बैठक में भाग लिया था। वे कौन थे इसका रहस्य अभी पूरी तरह नहीं खुला है क्योंकि पत्र की प्रतियां सार्वजनिक नहीं हुई हैं जिसका जिक्र जसवंत सिंह बार बार कर रहे हैं। अन्य स्रोतों से सिर्फ चार नाम सामने आये हैं – नरसिंहा राव, प्रणब मुखर्जी, एस बी चह्वान और डा. मनमोहन सिंह। श्री चह्वान का भी निधन हो चुका है। प्रणब मुखर्जी रहस्यमय ढंग से चुप हैं। उसी समय 15 दिसम्बर, 1995 को द न्यू यार्क टाईम्स ने एक खबर छापी कि भारत पोखरण में नाभिकीय परीक्षण करने वाला था। इसकी पुष्टि के लिए गुप्तचर उपग्रह द्वारा ली गयी तस्वीरों का हवाला भी दिया गया था। आधिकारिक तौर पर भारत ने उस खबर का खंडन करते हुए पोखरण में चल रही गतिविधियों को रूटीन सैनिक अभ्यास बताया था। फिर आम चुनाव का समय आ गया और नरसिंहा राव सरकार को नाभिकीय परीक्षण करने का मौका ही नहीं मिला।

दूसरा तथ्य। वर्ष 1995 की उक्त गुप्त बैठक में भाग लेने वालों में जो चार नाम प्रकाश में आये हैं उनमें डा. मनमोहन सिंह को छोड़ कोई ऐसा नहीं जिनपर कभी भी विश्व बैंक या अमेरिका के लिए काम करने का आरोप लगा हो। मनमोहन सिंह पर ऐसे आरोप पिछले डेढ़ दशक से देश भर में करोड़ों लोग लगाते आ रहे हैं जिनकी रपटें समाचार माध्यमों तक में आती रही हैं।

वर्ष 2004 के आम चुनावों के बाद जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भारत की प्रधान मंत्री बनने का समय आया तब उनके विदेशी मूल के होने पर तरह – तरह की आशंकाएं व्यक्त की गयी थीं। अंततः उन्होंने स्वयं प्रधान मंत्री न बनकर डा. मनमोहन सिंह को इस पद के लिए मनोनीत किया। उस प्रकरण में अमेरिका का कितना हाथ रहा कहा नहीं जा सकता, लेकिन राजनीतिक गलियारों की अनेक चर्चाओं में यह चर्चा भी शामिल थी कि अमेरिका ने मनमोहन सिंह को कुर्सी पर बैठवाया है।

तीसरा तथ्य। यह जग जाहिर है कि मनमोहन सिंह ने भारत में जो नयी आर्थिक नीति लागू की वह विश्व बैंक और अमेरिकी नीतियों के रास्ते पर ही है। अमेरिका भारत के नाभिकीय कार्यक्रम का विरोधी रहा है, और खबरों में बताया गया है कि उक्त गुप्त बैठक में मनमोहन सिंह ने परमाणु परीक्षण का विरोध आर्थिक आधार पर किया था।

चौथा तथ्य । जुलाई 2005 में मनमोहन सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ भारत-अमेरिकी नाभिकीय समझौता किया जिसके तहत अमेरिका भारत को असैनिक मकसदों के लिए परमाणु ईंधन और तकनीक देगा और दूसरी ओर भारत उसे अपने परमाणु संयंत्रों के निरीक्षण की इजाज़त देगा। यहीं विवाद है क्योंकि यदि कोई देश स्वतंत्र तथा किसी अन्य के अधीन नहीं है तो वह अपने निरीक्षण का अधिकार क्यों देगा? अब हमारे देश के वर्तमान नेता अमेरिका के आगे झुकने और उससे अपने प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करवाने के लिए तैयार हैं। उनका तर्क है कि ऐसा करने से लाभ होगा लेकिन स्वतंत्रता के पक्षधर किसी भी लाभ के लिए गुलामी के नजदीक जाने को तैयार नहीं हैं और इस समझौते का विरोध कर रहे हैं।

इस पृष्ठभूमि में जसवंत सिंह के प्रधान मंत्री कार्यालय में देशद्रोही ‘भेदिये’ का जिक्र करने मात्र से मनमोहन सिंह का भड़क उठना स्वाभाविक है। उन्होंने जसवंत सिंह को उस ‘मोल’ का नाम बताने के लिए ललकारा। जसवंत सिंह ने कहा कि उन्होंने मोल ‘mole’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। लेकिन उन्होंने कल राज्य सभा में बताया कि प्रधान मंत्री को भेजे दस्तावेज में प्रत्यक्ष और परोक्ष सूचनाएं हैं।

संसद के अंदर और बाहर जो कुछ हुआ उसमें शक की सुई मनमोहन सिंह की ओर ही है, भले ही उन्होंने गुप्त सूचना लीक न की हो। हो सकता है कि मनमोहन सिंह राष्ट्रभक्त हों लेकिन देश को बताया जाना चाहिए कि देश का असली गद्दार कौन था।#