पिछले आमचुनाव में मोगा में कांग्रेस विधायक की जीत हुई थी। विधायक ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इसके कारण विधानसभा क्षेत्र से भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। खाली सीट पर उपचुनाव हुआ। उपचुनाव में उसी निवर्तमान विधायक को शिरोमणी अकाली दल ने अपना उम्मीदवार बना दिया और उनकी जीत भी हो गई। सबसे बड़ी बात यह है कि जीत का अंतर 18 हजार से भी ज्यादा मतों का रहा। जाहिर है लोगों ने दलबदल को स्वीकार कर लिया।
मोगा उपचुनाव में विजयी जोगींदरपाल जैन का एक आपराधिक इतिहास रहा है। उनके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। आज जब देश का माहौल अपराधीकरण और भ्रष्टाचार का बनता जा रहा है, वैसे समय में मोगा उपचुनाव में एक उसी तरह की छवि के व्यक्ति का चुनाव जीतना यहां के मतदाताओं के कुछ अलग मूड को दिखाता है। पंजाब की राजनीति हरियाणा की तरह आया राम गया राम की नहीं रही है, लेकिन वह अब उसी दिशा में जाती दिखाई दे रही है।
पंजाब की राजनीति मंे आपराधिक तत्वों का भी बोलबाला नहीं रहा है, पर लगता है कि अब यहां भी आपराधिक तत्वों की मांग बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि श्री जैन को पहले कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था और अब अकाली दल ने उन्हें उम्मीवार बनाया। दोनों दलों के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने मोगा से जीत दर्ज की।
प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली सरकार को विधानसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। उनकी सरकार में भाजपा भी शामिल है और उसकी सहायता से चल रही सरकार को बहुमत के समर्थन में किसी तरह का संदेश नहीं है। इसके बावजूद उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने कांग्रेस विधायक जैन का दलबदल कराया। और फिर उन्हें फिर से विधायक बनाने में सफलता भी पाई।
सच तो यह है कि 2007 से पंजाब में जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उसमें सत्तारूढ़ पार्टियों के उम्मीदवारों की जीत होती रही है। मोगा उपचुनाव ने भी उसी इतिहास को दुहरा दिया है। इससे यह साबित हो गया है कि सुखबीर सिंह बादल के चुनाव कौशल का कोई जवाब नहीं है। वे उपचुनाव जिताने और जीतने की कला में महारथ हासिल कर चुके हैं। इस दलबदल के बाद और भी दलबदल की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
मोगा उपचुनाव से प्रभावित होकर विपक्ष के और भी विधायक दल बदलकर अकाली दल में आ सकते है। और दुबारा चुनाव जीतकर अपनी विधानसभा सदस्यता भी बरकरार रख सकते हैं।
सवाल उठता है कि आखिर अकाली दल दलबदल को बढ़ावा क्यों दे रहा है, जबकि उसकी सरकार बहुमत में है। इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि अकाली दल भाजपा के सहयोग से बहुमत में है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में अकाली दल का प्रदर्शन भाजपा से बेहतर रहा था और अब अकाली दल खुद अपने बूते ही बहुमत के नजदीक पहुंच गया है।
117 सदस्यीय विधानसभा में अकाली दल के सदस्यों की संख्या 57 है और यह दो निर्दलीय सदस्यों के साथ बिना भाजपा के समर्थन के ही बहुमत का आंकड़ा पा लेती है। यदि कुछ और विधायक इसके चुनाव चिन्ह से चुनाव जीतकर आएं, तो यह अपने बूते पूर्ण बहुमत में आ जाएगा, जो पंजाब की राजनीति के लिए एक नई घटना होगी।
अकाली दल मुख्य रूप से सिखों की पार्टी के रूप में ही अपने आपको प्रोजेक्ट करती रही है, इसके कारण यह अपने बूते बहुमत नहीं ला पाती। पिछले कुछ चुनावों से यह हिंदू समर्थन के लिए भाजपा पर निर्भर होती रही है, लेकिन उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल अब अकाली दल को हिंदुओं के बीच भी लोकप्रिय बनाने के प्रयास में लग गए हैं और अकाली दल को एक सेकुलर पार्टी के रूप मंे लोगों के सामने पेश कर रहे हैं। यदि वे अपने अभियान में सफल होते हैं तो फिर अकाली दल अपने बूते भी सत्ता में आ सकती है।
अकाली दल को समाज के सभी तबकों में स्वीकार्य बनाने की सुखबीर बादल की कोशिश पंजाब की राजनीति के लिए शुभ संकेत है। (संवाद)
मोगा उपचुनाव में अकाली दल की जीत
दलबदल की राजनीति अभी भी पंजाब में हावी है
बी के चम - 2013-03-05 17:17
चंडीगढ़ः कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिनमें राजनीति को ही बदल देने की क्षमता होती है। कुछ घटनाएं लोगों के बदलते मूड को दिखाती हैं। मोगा विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के नतीजे कुछ इसी तरह की एक घटना है।