कांग्रेस ही नहीं, बल्कि अजय बिश्वास को भी लग रहा था कि पश्चिम बंगाल की तर्ज पर ही त्रिपुरा में परिवर्तन होगा और यहां सीपीएम हारेगी। अजय बिश्वास ऐसे राजनैतिक नेता हैं, जिन्हें त्रिपुरा में सीपीएम को मजबूत आधार प्रदान करने का श्रेय जाता है। वे कभी इसी पार्टी के नेता थे और बहुत ही परिश्रम से उन्होंने जनजाति आधारित इस पार्टी को विस्तृत जनाधार वाली पार्टी बनाया था। उन्होंने यहां के बंगालियों को इसके साथ जोड़ने में सफलता पाई थी। चुनाव के पहले वे सीपीएम के खराब प्रदर्शन की भविष्यवाणी कर रहे थे। अब वे सीपीएम में नहीं हैं। उनका कहना था कि या तो सीपीएम चुनाव हार जाएगी और यदि जीती भी तो बहुत ही मामूली बढ़त के साथ। पर अजय बिश्वास का यह विश्वास गलत साबित हुआ। सीपीएम की न केवल जीत हुई, बल्कि यह जीत बहुत ही शानदार तरीके से हुई।
अजय बिश्वास को आखिर क्यों लग रहा था कि सीपीएम हारेगी? उनकी उस भविष्यवाणी का आधार क्या था? तो उसका कारण यह था कि उन्हें लग रहा था कि सरकारी कर्मचारी सीपीएम को वोट नहीं डालेंगे। सरकारी कर्मचारी राज्य सरकार से नाराज हैं, क्योंकि उसने कर्मचारियों के 6ठे वेतनमान को लागू नहीं किया है। श्री बिश्वास का कहना है कि प्रदेश में राज्य के कर्मचारियों की संख्या पौने दो लाख है। उनके परिवार के सभी लोगों की संख्या प्रदेश की संख्या की एक चैथाई है। यदि इतनी बड़ी संख्या में लोग सरकार के खिलाफ हो जाएं, तो फिर सरकारी पार्टी कैसे जीत सकती है? अनुसूचित जनजातियों के लोगों की सरकार से नाराजगी को भी वे सीपीएम की संभावित हार का वे कारण बता रहे थे।
पर अब श्री बिश्वास कह रहे हैं कि उनकी भविष्यवाणी इसलिए गलत साबित हुई, क्योंकि कांग्रेस सीपीएम के खिलाफ लोगांे की नाराजगी का फायदा उठाने में नाकाम रही। वे कहते हैं कि कांग्रेस एक ऐसा संगठन है, जो राजनैतिक रूप से सक्रिय सिर्फ चुनाव के समय ही होती है। चुनाव समाप्त होने के बाद उसकी सक्रियता भी समाप्त हो जाती है। अगला चुनाव जब होना होता है, तो फिर कांग्रेस के नेता और कार्यकत्र्ता दिखाई पड़ने लगते हैं। अपने इसी रवैये के कारण वह लोगों को अपनी ओर खींच नहीं पाई और इसका फायदा सीपीएम को हो गया। कर्मचारियों और उनके परिवार के लोगों ने भी सीपीएम को वोट डाला और अनुसूचित जातियों के लोगों ने भी। यही कारण है कि सीपीएम की जीत सभी जगह हुई। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित विधानसभा क्षेत्रों में भी सीपीएम के उम्मीदवार जीते तो सामान्य सीटो ंपर भी उन्हीं की विजय हुई। सरकारी कर्मचारियों को लगा कि चुनाव के बाद माणिक सरकार वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करेगी। अनुसूचित जातियों के बीच मे ंसरकारी कोष की सहायता से माणिक सरकार ने अनेक योजनाएं चलाई थीं, जिनका फायदा उसे हुआ।
चुनाव जीतने के बाद सीपीएम के कार्यकत्र्ता अब कांग्रेस व अन्य विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। उन पर हमले हो रहे हैं और उनके घरों को जलाया जा रहा है। अगरतल्ला से छपने वाले अखबारों की सुर्खियों में उन हमलों की खबरों को रोज देखा जा सकता है। विरोधी नेताओ ने 3 मार्च को एक प्रेस कान्फ्रेंस आयोजित किया और अपने खिलाफ हो रहे हमलों पर अपना आक्रोश जाहिर किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि उन पर हमले जारी रहे, तो वे मुख्यमंत्री माणिक सरकार के आवास पर धरना देंगे।
कांग्रेस क्यों हारी और सीपीएम क्यों जीती- ये सवाल अपनी जगह पर हैं, पर सच यही है कि सीपीएम एक बार फिर सत्ता में आई है और आने वाले 5 सालों तक उसका यहां कुछ नहीं बिगड़ने वाला। उसका कहना है कि उसकी सरकार के कार्यकाल में त्रिपुरा का लगातार विकास हो रहा है और लोग उससे खुश हैं। (संवाद)
त्रिपुरा चुनाव के नतीजे
वाम मोर्चा की लगातार पांचवीं जीत
बरुण दास गुप्ता - 2013-03-07 17:04
कोलकाताः हार की सभी भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए सीपीएम ने त्रिपुरा चुनाव में फिर एक बार शानदार जीत हासिल की। यह उसकी लगातार पांचवीं जीत है। कांग्रेस हार से स्तब्ध है। उसने अपनी जीत तय मान रखी थी। उसे लग रहा था कि वामदलों का अंतिम गढ़ वह फतह कर डालेगी। जब मतगणना के शुरुआती रुझान सामने आ रहे थे और सीपीएम आगे चल रही थी, उस समय भी कांग्रेस के नेता यह कह रहे थे कि गिनती समाप्त होते होते पासा उसके हाथ मे आ जाएगा। वे किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे, पर कोई चमत्कार हुआ नहीं। मुख्यमंत्री माणिक सरकार शांत होकर सबकुछ देख रहे थे। उन्हें अपनी जीत पर पूरा भरोसा था, क्योंकि वे यह मान रहे थे कि लोग उनके साथ हैं। अंत में उनके भरोसे और विश्वास की ही जीत हुई।