उसके बाद राहुल दार्शनिक की तरह बात करने लगे। उन्होंने कहा कि उनकी प्रेरणा महात्मा गांधी हैं और वे गीता के निष्काम कर्म में विश्वास करते हैं। गौरतलब है कि श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को निष्काम कर्म का उपदेश दिया है, जिसके तहत काम करते समय उसके फल के बारे में नहीं सोचने को कहा गया है। जयपुर में उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनाने जाने के बाद से ही उन्हें प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने की मांग तेज हो गई है। लेकिन उन्होंने उस दिन सेंट्रल हाॅल में कहा कि वे पार्टी का जनाधार को विस्तृत करना चाहते हैं और निर्णय प्रक्रिया को भी व्यापक बनाना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लंबी अवधि की राजनीति में उनका विश्वास है।
राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने में दिखाई जा रही झिझक नरेन्द्र मोदी द्वारा दिखाए जा रहे उत्साह से ठीक उलट है। भाजपा के अंदर से आ रही खबरों से पता चलता है कि श्री मोदी को आखिरकार पार्टी प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में अवश्य पेश करेगी। पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में मोदी के नाम का बोलबाला रहा, हालांकि पार्टी के कुछ महत्वाकांक्षी नेता अभी भी नरेन्द्र मोदी के बढ़ते कारवें को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
सवाल पूछे बिना राहुल गांधी ने जो एक और जवाब दिया, वह काफी मायने रखता है। उन्होंने कहा कि वे शादी नहीं करना चाहते, क्योंकि वे राजनीति में वंशवाद के खिलाफ हैं। उन्होने कहा कि यदि मेरे भी बच्चे हो गए, तो अन्य नेताओं की तरह मैं भी उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाने की फिक्र में लग जाऊंगा, पर मैं वैसा नहीं करना चाहता। उनका यह वक्तव्य इसलिए महत्वपूर्ण है कि वे खुद भी वंशवादी की राजनीति की उपज हैं। जवाहरलाल नेहरू ने पहले अपनी बेटी इन्दिरा गांधी को राजनीति में आगे बढ़ाया। यह सच है कि श्री नेहरू के निधन के बाद कुछ समय के लिए लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन सच यह भी है कि अपनी जिंदगी के अंतिम दिनों मे पंडित नेहरू इन्दिरा गांधी को बहुत आगे बढ़ा रहे थे।
पंडित नेहरू की तरह इन्दिरा गांधी ने भी अपने छोटे बेटे संजय गांधी को राजनीति में बढ़ाना शुरू कर दिया था। दुर्घटना में जब उनकी मौत हो गई, तो इन्दिराजी ने राजीव गांधी को राजनीति में आने के लिए एक तरह से विवश कर दिया, क्योंकि वे खुद उस समय राजनीति में नहीं आना चाहते थे। राजीव गांधी अच्छी तरह राजनीति सीख भी नहीं पाए थे कि श्रीमती गांधी की हत्या हो गई और राजीव के कंधे पर संगठन और सरकार का बोझ आ गया।
राजीव की हत्या के बाद सोनिया गांधी राजनीति में नहीं आईं। उन्होंने नरसिंहराव को प्रधानमंत्री बनाने की हरी झंडी दिखाई, पर श्री राव कुछ समय के बाद सोनिया गांधी से स्वतंत्र होकर निर्णय लेने लगे थे। नरसिंह राव के राजनैतिक पतन के बाद जब सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष थे, तो सोनिया गांधी ने उन्हें उनकी इच्छा के खिलाफ अध्यक्ष पद से हटाकर खुद पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली। फिर उन्होंने राहुल गांधी को पार्टी में प्रवेश दिलाई। राहुल गांधी का पार्टी में 9 साल का अनुभव हो चुका है। यानी राजीव गांधी से भी ज्यादा अनुभव राहुल ले सक्रिय राजनीति का कर लिया है। वे 2004 लोकसभा चुनाव के बहुत पहले कांग्रेस में आ गए थे और उस साल से लगातार सांसद भी हैं। जाहिर है, न तो राहुल अब राजनीति के लिए नये हैं और न ही राजनीति राहुल के लिए नई है।
राहुल अब कांग्रेस संगठन का लोकतांत्रिककरण करना चाहते हैं निर्णय प्रक्रिया का भी विकेन्द्रीकरण करना चाहते हैं। ऐसा करने मे समय तो लगेगा ही। वे कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री बनना या प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनना इस समय उनकी प्राथमिकता नहीं है। सवाल उठता है कि यदि राहुल 2014 में कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार नहीं बनें, तो फिर कौन बनेगा? (संवाद)
क्या राहुल वास्तव में वंशवाद की राजनीति के खिलाफ हैं?
कांग्रेस उपाध्यक्ष लंबे समय की राजनीति कर रहे हैं
हरिहर स्वरूप - 2013-03-11 13:43
राहुल गांधी आमतौर पर संसद भवन के सेंट्रल हॉल में नहीं आते हैं। इसलिए पिछले सप्ताह सेंट्रल हॉल में राहुल गांधी का आना एक अप्रत्याशित घटना थी। पार्टी उपाध्यक्ष बनने के बाद वे पहली बार सेंट्रल हॉल में आए थे। सांसदों और पत्रकारों ने उन्हें वहां आते ही चारों ओर से घेर लिया। संवाददाता उनसे सवाल करते उसके पहले ही उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया कि मुझसे यह सवाल करना गलत होगा कि क्या मैं प्रधानमंत्री बनने जा रहा हूं। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनकी प्राथमिकता नहीं है, बल्कि पार्टी को खड़ा करने में उनकी पहली दिलचस्पी है।