तीनों सीटों पर पिछले विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे। इस बार उसका सिर्फ एक उम्मीदवार जीता है, जबकि दो सीटें उसे गंवानी पड़ी।

जाहिर है हारी गई सीटों की संख्या के लिहाज से यह कांग्रेस का भारी नुकसान लगता है, लेकिन जब हम इस तथ्य की ओर ध्यान दें कि पिछले आमचुनाव में कांग्रेस को तृणमूल का समर्थन हासिल था और उसके उम्मीदवार असल में गठबंधन के उम्मीदवार थे, तो फिर कांग्रेस का यह नुकसान उसका नुकसान नहीं लगता।

कांग्रेस के हिसाब से इसके नतीजे उसके पक्ष में गए हैं। कांग्रेस के नेता इस तरह के दावे कर भी रहे हैं। जब से पश्चिम बंगाल में तृणमूल का गठन हुआ है, कांग्रेस को इस राज्य में 12 से 16 फीसदी मत ही मिलते रहे हैं। पर इन तीनों विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों के नतीजों को देखा जाय, तो हम पाते हैं कि जिस सीट रेजीगंज से कांग्रेस के उम्मीदवार जीते, वहां उसके उम्मीदवार को 38 फीसदी मत मिले, जबकि अन्य दो में से एक पर 28 फीसदी और दूसरी पर 23 फीसदी मत उसके उम्मीदवारों को मिले हैं। जाहिर है इस बार कांग्रेस को मिले मत उसका उत्साह बढ़ाने वाले हैं।

माल्दा के इंगलिश बाजार में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत हुई है। इन उपचुनावों की एक खासियत यह रही कि इनमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद प्रचार नहीं किया था। स्थानीय उम्मीदवारों ने उनसे प्रचार करने का बहुत आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा दाव पर लगाना उचित नहीं समझा। चुनाव नतीजों को देखते हुए कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी ने प्रचार नहीं कर अच्छा ही किया।

तृणमूल एक सीट की जीत को अपनी उपलब्धि मान सकती है, लेकिन उसके लिए चिंता की बात यह है कि जिन दोनों सीटों पर वह हारी है, वहां उसके उम्मीदवार तीसरे नंबर पर आए। उसके लिए यह खतरनाक स्थिति है, क्योंकि मुख्य मुकाबले में उम्मीदवारों के नहीं होने का अपना खास मायने होता है। मतदान के समय दो उम्मीदवारों के बीच मतों का ध्रुवीकरण होने पर तीसरा उम्मीदवार बहुत पीछे हो जाता है।

इससे तृणमूल को यह भी संदेश मिल रहा है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़कर वह वाम मोर्चा के उम्मीदवारों का काम आसान कर रही है। बीरभूम जिले की नलहाटी में यही हुआ। वहां वाम मोर्चा का उम्मीदवार विजयी रहा। उस सीट पर कांग्रेस और तृणमूल कंाग्रेस के उम्मीदवारों में से प्रत्येक को 28 फीसदी के आसपास वोट मिले, जिसका फायदा उठाते हुए वाम मोर्चा का उम्मीदवार चुनाव जीत गया।

वाममोर्चे के एक उम्मीदवार की जीत अवश्य हुई है और वह दावा कर सकता है कि उसने इस उपचुनाव में कुछ हासिल ही किया है, लेकिन तीनों विधानसभा क्षेत्रों में उसके उम्मीदवारों को जो मत मिले हैं, वह उसके बुरे भविष्य के भी संकेत दे रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान हार के बावजूद उसे कुल पड़े मतों का 41 फीसदी मिला था। अलग अलग राज्यों में मिले मतों को देखें, इंगलिश बाजार में इसे पिछले चुनाव की अपेक्षा 11 फीसदी कम मत मिले। नलहाटी में जहां इसकी जीत हुई, वहां भी इसे 6 फीसदी वोट कम मिले। रेजीनगर मे भी इसे 12 फीसदी वोट कम मिले।

वाम मोर्चा को मिले कम वोट यह दिखाते हैं कि तृणमूल और कांग्रेस अलग अलग होकर सिर्फ एक दूसरे का वोट नहीं काट रही है, बल्कि वाम मोर्चा के मतों को भी काट रही है। जाहिर है, वाम मोर्चा के सामने असली चुनौती अपने जनाधार को बचाए रखने की है। यदि उसे तृणमूल और कांग्रेस गठबंधन में आई दरार का फायदा उठाना है, तो उसे अपना जनाधार बरकरार रखना होगा।

ये तीनों उपचुनाव बंगाल की तीनों प्रमुख राजनैतिक शक्तियों के लिए बराबरी पर रहने का संदेश दे रहे हैं। आने वाले पंचायत चुनाव के पहले ये संकेत तीनों के लिए काफी मायने रखते हैं। (संवाद)