हालांकि उसके घर वाले कह रहे हैं कि उसने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसकी हत्या की गई है, लेकिन पोस्ट मार्टम रिपोर्ट को गलत मानने का कोई आधार नहीं दिखता। भला राम सिंह की हत्या कौन और क्यों करेगा? जिस तरह का अपराध उसने किया है, उसके कारण उसे फांसी की सजा मिलने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन अदालत से उसे सजा सुनाई जाती, उसके पहले ही उसने अपने आपको सजा दे डाली।

देश के अंदर से उसे फांसी पर लटकाए जाने की मांग की जा रही थी, लेकिन उसके द्वारा खुद को फांसी पर लटका लेना एक दुखदायी घटना है। बलात्कार की शिकार लड़की का भाई का यह कहना सही है कि इस घटना से उसे दुख हुआ है, क्योंकि वह चाहता था कि अदालत उसे फांसी की सजा सुनाए और उसके बाद उसे फांसी दिया जाय। पर अब ऐसा हो नहीं सकेगा। अब उसके खिलाफ मुकदमा नहीं चलेगा और उसे दोषी भी नहीं करार दिया जाएगा, क्योंकि किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ न तो मुकदमा चलाया जा सकता है और न ही उसे घोषित किया जा सकता है।

राम सिंह ने किन परिस्थितियों मंे आत्महत्या की इसके बारे में दावे के साथ कोई कुछ नहीं कह सकता, लेकिन इतना तो तय है कि जघन्य अपराध करने वाला अपराधी उस तरह की परिस्थितियों में रहकर मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है। कुछ तो अपराध बोध और कुछ सजा का डर उसे जिंदगी से निराश कर देता है। राम सिंह एक बेहद ही गरीब परिवार का व्यक्ति था, जिसके पास शायद मुकदमे के खर्च का पैसा भी नहीं था। इसलिए ट्रायल कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद अपील बगैरह करने के लिए भी उसके या उसके परिवार के पास पैसे नहीं होते। इसलिए यदि उसे फांसी की सजा सुनाई जाती, तो मौत को और टालने के लिए अपील का सहारा लेने की क्षमता भी शायद उसमें नहीं थी। इन सब परिस्थितियों ने शायद उसे आत्म हत्या करने के लिए मजबूर कर दिया।

लेकिन आत्महत्या करके उसने एक बार फिर हमारी न्याय व्यवस्था की पोल खोल दी। वह तिहाड़ जेल के अंदर न्यायिक हिरासत में था। उसकी रक्षा करना न्याय-व्यवस्थाए जेल जिसका एक हिस्सा है, की जिम्मेदारी थी। वह कोई साधारण कैदी नहीं था। उसके कारण पूरे देश में एक बड़ा आंदोलन छिड़ गया था और उस आंदोलन से केन्द्र सरकार हिल गई थी। उस आंदोलन के कारण राष्ट्रपति भवन, संसद और केन्द्र सरकार की सत्ता के केन्द्र और लोगों के बीच में पुलिस और सुरक्षा बलों की दीवार खड़ी हो गई थी। कई मेट्रो स्टेशन कई दिनों तक बंद कर दिए गए थे और दिल्ली के सत्ता के केन्द्र वाले इलाके कुछ दिनों के लिए आम लोगों की पहुंच के बाहर हो गए थे। देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी उसका कुकर्म चर्चा का विषय बन गया था। उसके मुकदमे की सुनवाई दिल्ली में एक फास्ट कोर्ट में हो रही थी। और देश के लोगों को लग रहा था कि अदालत में उसे सिर्फ फांसी की ही सजा मिलेगी।

जाहिर है, राम सिंह को भी कुछ ऐसा ही लग रहा होगा। तो फिर उसकी मानसिक स्थिति सामान्य रहने की उम्मीद कैसे की जा सकती थी। वैसा कैदी आत्महत्या करने की भी सोच सकता है, यह अनुमाल लगाना कठिन नहीं था। इसके बावजूद उसकी सही निगरानी नहीं की गई और उसे आत्महत्या करने के मौके उपलब्ध करा दिए गए। जाहिर है, यह जेल और जेल प्रशासन की बहुत बड़ी चूक थी। इस चूक को स्वीकार भी किया जा रहा है, लेकिन सवाल उठता है कि वह चूक हुई ही क्यों?

राम सिंह द्वारा की गई वह आत्महत्या हमारे देश की न्याय-व्यवस्था पर इसलिए भी एक करारा तमाचा है कि उसके द्वारा अपराध को दिए गए अंजाम को तीन महीना होने को है, लेकिन अभी तक फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला नहीं आ सका है। फास्ट ट्रैक कोर्ट कितना फास्ट है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। हमारे देश में फास्ट ट्रैक कोर्ट और भी जगह हैं। बिहार में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने बलात्कार के ही एक मामले में बलात्कारी को सिफ्र्र दो दिनो ंमें सजा सुना दी थी। एक अन्य मामले में बिहार में ही 6 दिनों के अंदर अपराधी को सजा सुना दी गई थी। राजस्थान के एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने भी एक विदेशी महिला से बलात्कार के एक मामले में एक सप्ताह के अंदर फैसला सुना दिया था। लेकिन दिल्ली की फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला अभी तक नहीं आ पाया है और उसके फैसले के पहले ही एक मुजरिम अपनी जान गंवा चुका है। सवाल उठता है कि इस मामले में विलंब क्यों हो रहा है। यदि बिहार की त्वरित अदालत दो दिनों के अंदर सजा दे सकती है, तो फिर दिल्ली की एक त्वरित अदालत दो महीने में भी मुकदमे को निष्कर्ष पर क्यों नहीं ले जा सकती है, जबकि सभी के सभी मुजरित कानून की गिरफ्त में पहले से ही आए हुए हैं?

तो इसका एक कारण तो यह हो सकता है कि जांच एजेंसी ने मामले को कुछ ज्यादा ही उलझाकर पेश किया है। बलात्कार की घटना के करीब 15 दिनों के बाद विशेष अदालत का गठन हुआ और उसके बाद नियमित अदालत से त्वरित अदालत में मुकदमे को आने में भी विलंब हुआ और उसके बाद फिर चार्ज फ्रेम होने के बाद ट्रायल शुरू हुआ है। और समय बीतने के साथ साथ मामला लंबा खिंचता जा रहा है। देश में इतने बड़े हंगामे के बाद भी न्याय में विलंब होने के कारण अपराध मनोवृति वाले लोगों का मनोबल लगातार बढ़ता जा रहा है और दिल्ली और आसपास के इलाकों में तो बलात्कार की घटनाओं की बाढ़ आ गई है। यदि सजा देने और दिलाने में तेजी बरती जाय, तो अपराध पर कुछ अंकुश लगाया जा सकता है, लेकिन यहां तो चर्चा सिर्फ सजा के परिमाण को बढ़ाने की होती है, जल्द से जल्द सजा मिले, इसके बारे में गंभीरता नहीं बरती जा रही है। जो केन्द्र सरकार ने बलात्कार से संबंधित जो अध्यादेश जारी किया, उसमें भी त्वरित न्याय की बात को नजरअंदाज कर दिया गया है और जो नया कानून का मसविदा है, उसमें भी त्वरित न्याय का मुद्दा कहीं नहीं दिखाई पड़ रहा है। राम सिंह की आत्म हत्या विलंबित न्याय के अत्याचार को एक बार फिर रेखांकित करता है। इसके कारण जिस व्यक्ति को अदालत से सजा मिलनी चाहिए थी, वह खुद ही अदालत की पहुंच से अपने आपको बाहर कर चुका है। (संवाद)