किसी व्यक्ति का पार्टी के अध्यक्ष पद पर लगातार 15 सालों तक बना रहना यह साबित करता है कि या तो उस पार्टी में नेताओं की कमी है अथवा उसमें सामंतीवादी संस्कृति की मजबूत परंपरा है। 127 साल पुरानी पार्टी के लिए इन दोनों में से कोई भी संतुष्ट होने का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि इस पार्टी ने इस देश की नियति का लंबे समय तक निर्धारण किया है और आज जब यह पतन के दौर से गुजर रही है, तब भी वह अपना यह दायित्व निभा रही है।
यदि सामंतवादी ही इसकी संस्कृति है और जो वास्तव में है भी, तो यह मानना चाहिए कि कांग्रेस ने आंतरिक लोकतंत्र को गुडबाई कह डाला है। यह पार्टी इस बात के लिए किसी प्रकार का अफसोस व्यक्त करती भी नहीं दिखाई देती कि इसने इसका सबसे बड़ा पद एक परिवार के सदस्यों के लिए आरक्षित कर दिया गया है।
इस कोटा व्यवस्था से लगाव और भी विचित्र तब दिखाई पड़ता है, जब कांग्रेसजन यह कहते दिखाई पड़ते हैं कि सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी कांग्रेस के अंदर लोकतांत्रिक संस्कृति को बहाल करने के लिए कृतसंकल्प हैं। लेकिन राहुल गांधी स्वयं कह चुके हैं कि वह एक पैराशूट हैं, जो पार्टी का उपाध्यक्ष बनने के लिए आसमान से कूद पड़े हैं।
कांग्रेसजनों का नेहरू-गांधी परिवार की गुलामी जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी के विशाल व्यक्तित्व का परिणाम ही नहीं है, बल्कि दोनों के कार्यकाल के बीच मात्र डेढ़ साल के अंत का परिणाम भी है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि लालबहादुर शास्त्री की असामयिक मौत हो गई। यदि श्री शास्त्री कुछ और साल जिंदा रहते तो, तो एक परिवार के प्रति कांग्रेसजनों में गुलामी का भाव नहीं रहता। हालांकि पिछले 24 साल से देश के सर्वोच्च पद पर नेहरू-गांधी परिवार का कोई भी व्यक्ति आसीन नहीं है, लेकिन कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों को कांग्रेसी नेहरू-गांधी परिवार के रिजेंट के रूप में ही देखते हैं।
परिवारवाद की यह सामंती प्रवृति इस तथ्य के बावजूद भी बनी हुई है जवाहरलाल नेहरू के बाद उनके परिवार के नेताओं का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। इन्दिरा गांधी में लोकतंत्र के प्रति वह प्रेम नहीं था, जो जवाहरलाल का था। श्रीमती गांधी ने आपात्काल लगाई थी और अपने एक बिगड़े हुए बेटे के साथ मनमाने ढंग से सरकार चला रही थी। राजीव गांधी ने यह साबित किया कि उनमें इन्दिरा जैसी क्षमता नहीं थी। सोनिया में राजीव जैसी क्षमता भी नहीं है और राहुल गांधी का तो कहना ही क्या?
सोनिया गांधी के नेतृत्व मंे कांग्रेस को 2004 में मिली सफलता कोई सफलता ही नहीं थी। नरसिंह राव के नेतृत्व में 1996 और सीताराम केसरी के नेतृत्व में 1998 लोकसभा चुनावों में मिली सफलता से वह सफलता बड़ी नहीं थी, पर भाजपा उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के हाथों बुरी तरह पराजित हो गई थी और जो पहले कांग्रेस का समर्थन करने को तैयार न थे, वे 2004 में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस का समर्थन करने को तैयार हो गए थे, इसके कारण ही 2004 में कांग्रेस की सरकार बन पाई थी, न कि कांग्रेस की खुद अपनी बड़ी जीत के कारण।
जो भी सोनिया गांधी को एक मौका मिला कि वह कांग्रेस को फिर से जीवन दान दे। लेकिन सोनिया में तो अपनी सास इन्दिरा गांधी की आत्मा आ गई थी। वह पुराने समाजवादी समाज लाने के चक्कर में पड़ गई और लाइसेंस-कोटा-परमिट राज को याद करने लगी। 2003 में सत्ता में आने के पहले ही शिमला सम्मलेन में उन्होंने प्रस्ताव पारित करवाया कि निजी क्षेत्र में भी नौकरियों का कोटा सिस्टम लागू हो।
जिस जाति जनगणना को 1931 के बाद से जारी नहीं रखा गया था, उसे फिर से शुरू करने का निर्णय भी सोनिया गांधी ने ही लिया। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले मुसलमानों को आरक्षण देने का फैसला भी उनका ही था। सलमान खुर्शीद मुसलमानों के आरक्षण के मसले को बार बार इसलिए उठा रहे थे, क्योंकि वह सोनिया गांधी का मसला था।
गौरतलब है कि वामपंथी दलों के दबाव में आकर सोनिया गांधी ने अमेरिका के साथ भारत के परमाणु समझौते को भी लगभग असंभव बना दिया था। समाजवादी पार्टी द्वारा कांग्रेस को समर्थन करने के वायदे के बाद ही वह अपने कदम से पीछे हटी थीं, लेकिन उनका उद्देश्य साफ था कि कांग्रेस को किसी भी कीमत पर सत्ता में बनाए रखा जाय, ताकि राहुल गांधी का काम आने वाले समय में आसान हो सके।
अपने बेटे राहुल के प्रति सोनिया की आसक्ति इतनी ज्यादा है कि उन्होंने चापलूसी के राज को संरक्षण दे रखा है और पार्टी के विकास को अवरूद्ध कर दिया है। यदि राहुल गांधी आज अपने पिता राजीव की सामंती कुलीनवादी की बात को फिर से याद कर रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि पिछले साल से सोनिया गांधी ने इस सामंती संस्कृति को संरक्षण प्रदान किया है।
जिस तरह से इन्दिरा गांधी ने अपने बेटे संजय के हाथ में कांग्रेस की बागडोर थमा देने की नीयत से कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं को ठिकाने लगाने का काम जारी रखा, वह काम सोनिया गांधी राहुल गांधी को अपना उत्तराधिकार सौंपने के लिए कर रही है। (संवाद)
सोनिया ने बर्बाद किए कांग्रेस के 15 साल
पार्टी की कीमत पर राहुल को आगे बढ़ाना अनुचित
अमूल्य गांगुली - 2013-03-22 10:11
सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में 15 साल पूरे होने पर कांग्रेसी भले ही उत्सव मना रहे हों, लेकिन इस तरह का उत्सव मनाना कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी को शोभा नहीं देता, क्योंकि लोकतंत्र में इस तरह के उत्सव का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, भले ही वह लोकतंत्र सोनिया के दामाद की नजर में एक बनाना लोकतंत्र हो।