126 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 78 विधायक हैं। रिपोर्ट मंे कहा गया कि श्री शर्मा के साथ 30 कांग्रेसी विधायक हैं और उन्हें बोडो पिपल्स फ्रंट के 10 अन्य विधायकों का भी समर्थन हासिल है। उनके आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता बदरूद्दीन अजमल के संपर्क में भी बताया गया। उनके फ्रंट के पास अलग से 10 विधायक हैं। यानी कुल मिलाकर श्री बिश्वशर्मा के कुल समर्थक विधायकों की संख्या 58 बताई गई।

असम में यह रहस्य नहीं रहा कि श्री बिश्वशर्मा मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हें और मुख्यमंत्री गोगाई के साथ पिछले एक साल से उनका लगातार टकराव हो रहा है। वे लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि वे मुख्यमंत्री बनने के लिए अधीर हैं। उनका राजनैतिक अतीत बहुत ही दिलचस्प है। वे यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आॅफ असम (उल्फा) के कभी सक्रिय कार्यकत्र्ता हुआ करते थे। उनके खिलाफ हत्या के अनेक मामले चल रहे थे और वे गिरफ्तार भी हुए थे। उसी समय असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने उनके साथ एक राजनैतिक सौदा किया, जिसके तहत बिश्वशर्मा के खिलाफ चल रहे सारे मामले उठा लिए गए और उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता हासिल कर ली।

उसके कुछ समय के बाद श्री सैकिया की मौत हो गई, लेकिन श्री बिश्वशर्मा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब उन्होंने 24 अकबर रोड से अपने संबध अच्छे कर लिए हैं और प्रदेश कांग्रेस में भी अपना दबदबा बढ़ा लिया है। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के अनेक नेता उनसे खुश नहीं हैं। असम इंटक से जुड़े नेता तो उनसे खासे नाराज हैं, क्योंकि प्रदेश इंटक के अध्यक्ष और सिद्धनाथ शर्मा के बेटे मानबेन्द्र शर्मा की हत्या के लिए उल्फा जिम्मेदार था और श्री बिश्वशर्मा को अभी भी उल्फा का आदमी ही माना जाता है।

जब हस्ताक्षर अभियान की खबरें आईं और इसके साथ ही श्री विश्वशर्मा के बोडो पीपल्स फ्रंट और आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेताओं से संपर्क की चर्चा भी होने लगी, तो गौहाटी स्थित कांग्रेस के राज्य मुख्यालय राजीब भवन में सबके कान खड़े हो गए। बोडो पीपल्स फ्रंट को तरुण गोगोई के खिलाफ शिकायत यह है कि इस बार उन्होंने उनके मात्र एक विधायक को ही मंत्री बनाया था, जबकि उनकी पिछली सरकार मंे इस पार्टी के दो मंत्री हुआ करते थे। आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट गोगोई से असम में हुए मुस्लिम बोडो दंगों को लेकर नाराज चल रहा है।

इसके साथ दो और बातें श्री गोगाई के खिलाफ जा रही थीं। प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भुवनेश्वर कालिता की मुख्यमंत्री से पिछले कुछ समय से नहीं पट रही है। इसके अलावा केन्द्रीय मंत्री पवन सिंह घटोवार भी मुख्यमंत्री बनने मंे दिलचस्पी रखते हैं। श्री घटोवार एक लोकप्रिय नेता हैं और डिब्रूगढ़ से वे पांच बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। वे चाय बगान मजदूरों में तो काफी लोकप्रिय हैं। इन मजदूरों को 30 विधानसभा क्षेत्रों में अच्छी खासी उपस्थिति है और वहां के चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की वे क्षमता रखते हैं। इन सब कारणों से तरुण गोगाई की नींद हराम हो गई।

लेकिन बहुत ही जल्द दिल्ली ने गोगाई के खिलाफ चल रही गतिविधियों पर लगाम लगा दिया। कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने साफ कर दिया कि असम सरकार का नेतृत्व परिवर्तन का फिलहाल कोई सवाल ही नहीं उठता। आगामी लोकसभा चुनाव तक इस तरह के बदलाव के किसी भी आशंका को निराधार घोषित होने के बाद गोगाई के खिलाफ चल रही मुहिम थम गई। गोगाई को इस बात का फायदा मिला कि उनके प्रतिद्वंद्वी बिश्वशर्मा की कांग्रेस के अंदर अच्छी छवि नहीं है। जो लोग श्री गोगोई को नापसंद करते हैं, वे बिश्वशर्मा को भी नहीं देखना चाहते। स्ी बिश्वशर्मा की छवि लोगों के बीच भी अच्छी नहीं है। उनका मानना है कि यदि श्री बिश्वशर्मा असम के मुख्यमंत्री बने, तो यह प्रदेश के लिए घातक होगा।

इस बीच असम प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भुवनेश्वर कलिता ने घोषणा की कि बिश्वशर्मा और गोगोई के बीच किसी तकरार में वे पूरी तरह श्री गोगोई के साथ हैं। बदरूद्दीन अजमल की अहमद पटेल से बहुत नजदीकी है। उन्होनें कां्रगेस अध्यक्ष को यह आश्वस्त किया कि अजमल बिश्वशर्मा के साथ नहीं हैं। उसके बाद तो आत्मविश्वास से भरे श्री गोगोई ने घोषणा कर दी कि वे इस्तीफा नहीं दे रहे है। उन्होंने कहा कि यदि कोई उन्हें उनकी कुर्सी से हटाने को आया, तो वे अपनी कुर्सी से और भी चिपक जाएंगे।

2014 तक श्री गोगोई की कुर्सी पर कोई खतरा नहीं है। उन्हें अपने पद से हटाए जाने की तबतक कोई आशंका नहीं है। उसके बाद क्या होगा, यह बात पर निर्भर करता है कि लोकसभा का चुनाव परिणाम कैसा होगा। (संवाद)