कम से कम देश के दो मुख्यमंत्री ऐसे हैं, जो नई दिल्ली मंे अपनी ताकत का लगातार अहसास करवा रहे हैं। पहले तो नरेन्द्र मोदी हैं और दूसरे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। वे दोनों जो संकेत दे रहे हैं, उनकी उपेक्षा कोई आज नहीं कर सकता।

पहले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी दिल्ली आए। गुजरात में उनकी पार्टी लगातार तीसरी बार उनके नेतृत्व में चुनाव जीती थी और उन्होंने चैथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में वहां शपथग्रहण किया था। उस जीत के बाद पहली बार वे दिल्ली आए थे और श्रीराम काॅलेज आॅफ काॅमर्स के छात्रों को उन्होंने संबोधित किया था। उन्होंने गुजरात के विकास के बारे में वहां चर्चा की थी। दूसरी बार वे भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भाग लेने दिल्ली आए थे। वह बैठक राष्ट्रीय परिषद द्वारा राजनाथ सिंह के अघ्यक्ष बनने की पुष्टि करने के लिए बुलाई गई थी। उस परिषद में नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को उसी तरह संबोधित कियाए लेकिन लग रहा था कि वे सिर्फ अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र को संबोधित कर रहे हैं। अपने इर्दगिर्द वे एक आभा तैयार कर रहे थे।

लेकिन उसके कुछ दिनों के बाद ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली का रुख किया। यहां उन्होंने एक रैली को संबोधित किया, जो बिहार को विशेष दर्जे का अधिकार देने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी। जिस तरह से मोदी ने गुजरात के विकास की चर्चा की, उसी तरह नीतीश ने बिहार के विकास की चर्चा की और बताया कि उन्होंने उसके लिए क्या क्या किया। बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उन्होंने केन्द्र से विशेष दर्जे की मांग की ताकि इसका पिछड़ापन दूर हो सके। उन्होंने रैली को संबोधित करके यह दिखाने की कोशिश की कि यदि मोदी के पास विकास का कोई माॅडल है, तो उनके पास विकास का अपना माॅडल भी है।

बिहार और गुजरात के मुख्यमंत्रियों की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर लगी हुई है। नरेन्द्र मोदी तो एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता हैं और उनकी पार्टी सत्ता की दौड़ में सीधे शामिल है। उधर नीतीश कुमार को लगता है कि त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में जब किसी बड़ी पार्टी के किसी व्यक्ति का प्रधानमंत्री बनना मुश्किल हो रहा होगा, तो उन्हें भी मौका मिल सकता है। इसलिए वह अभी से अपनी छवि उसी के अनुरूप ढालने में लगे हुए हैं। नरेन्द्र मोदी को भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने का विरोध कर वह अपनी सेकुलर छवि चमका रहे हें और बिहार की अपनी उपलब्धियों को बताकर वह अपनी क्षमता का अहसास करवा रहे हैं।

दोनों में कुछ समताएं हैं, तो कुछ विषमताएं भी हैं। नरेन्द्र मोदी एक शोमैन हैं और नीतीश अपने आपको प्रोजेक्ट करने की कला सीख रहे हैं। दोनों जमीन से उठकर राजनीति में आए हैं और दोनों सेल्फ मेड नेता हैं। दोनों सिंगल हैं और अपना पूरा का पूरा समय राजनीति में ही लगाते हैं। राजनीति से बाहर दोनों की कोई अन्य दुनिया नहीं है। नीतीश कुमार समाजवादी हैं, तो नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके हैं। दोनों की विश्वदृष्टि अलग अलग है और दोनों की आर्थिक नीतियां भी अलग अलग हैं। नरेन्द्र मोदी बड़े काॅर्पोरेट घरानों के निवेश अपने प्रदेश में आकर्षित करके अपनी कुशलता को दिखाते हैं, तो नीतीश कुमार छात्राओं को साइकिल बांटकर और जरूरतमंदों को सिलाई मशीन बांटकर अपनी समाजवादी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करते हैं।

नीतीश ने अपनी दिल्ली रैली के लिए दिल्ली में रह रहे बिहारियों को खासतौर से घ्यान में रखा। वह उनके बीच अपना राष्ट्रीय रुतबा दिखाना चाहते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बिहार मंे नीतीश कुमार की लोकप्रियता का ग्राफ गिरता जा रहा है। समाज के अनेक वर्ग के लोगों के बीच उनके खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है। ऐसे माहौल में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की उनकी मांग एक चतुराई भरा कदम है। बजट के बाद उन्होंने उसकी जो प्रशंसा की वह बिल्कुल सही थी। रैली के बाद नीतीश ने प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की।

बिहार के लोगों को ध्यान में रखते हुए निकाली गई रैली के दौरान नीतीश ने यह भी दिखाने की कोशिश की कि नरेन्द्र मोदी अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जो चमत्कार करते हैं। बिहार की विकास दर 10 फीसदी से भी ऊपर है। इसे वे अपनी उपलब्धि बताते हैं। वे चाहते हैं कि देश के लोग गुजरात के विकास की कहानी की तुलना बिहार के विकास की कहानी से करें।

अपनी रैली के द्वारा नीतीश कुमार ने यह भी संकेत दिया है कि 2014 के चुनाव के लिए उनके सारे विकल्प खुले हुए हैं। बिहार को जो भी महत्व देगा, वे उसे ही समर्थन देंगे। यदि कांग्रेस महत्व देता है और राज्य को विशेष दर्जा देने की दिशा में आगे बढ़ता है, तो वे कांग्रेस की ओर भी रूझान कर सकते हैं। वह भाजपा को भी संदेश दे रहे हैं कि यदि उसने नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया तो वे उसे भी छोड़ सकते हैं और अपने लिए कोई और रास्ता तलाश सकते हैं। इस रैली के द्वारा उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि वे खुद भी 2014 लोकसभा चुनाव के बाद किंग हो सकते हैं या किंगमेकर हो सकते हैं। (संवाद)