इस तरह का प्रस्ताव रखने वाले नेता सिर्फ मुलायम सिंह ही नहीं हैं। उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी कुछ समय पहले इस तरह का प्रस्ताव कर चुके हैं। आंध्र प्रदेश की तेलुगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडु ने भी इसी तरह का प्रस्ताव कभी रखा था।
यह सच है कि पिछले दो दशकों से देश में गठबंधन का युग चल रहा है, लेकिन इस दौरान तीसरे मोर्चे का इतिहास कोर्इ अच्छा इतिहास नहीं रहा है। सबसे पहले तो 1977 में अनेक गैरकांग्रेसी दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया था और उसकी सरकार भी केन्द्र में बनी थी, पर वह प्रयोग सफल नहीं रहा। कुछ समय के बाद जनता पार्टी में विभाजन हो गया था और विभाजित गुट ने कांग्रेस की मदद से अपनी सरकार बना ली थी। पर कांग्रेस के ही कारण उस सरकार का जल्द ही पतन भी हो गया था।
1977 के प्रयोग की विफलता के बाद 1989 में एक और प्रयोग हुआ। इसमें गैर कांग्रेस और गैर भाजपा पार्टियों ने आपस में मिलकर वीपी सिंह के नेतृत्व में केन्द्र में सरकार बनार्इ। कहने को तो वह सरकार गैरभाजपार्इ थी, लेकिन उसे बाहर से भाजपा का समर्थन मिल रहा था। भाजपा द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के साथ ही वह सरकार गिर गर्इ और तब के जनता दल में विभाजन हो गया। विभाजित गुट की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी। कांग्रेस ने 1979 का अपना इतिहास दुहराते हुए उस सरकार से समर्थन वापस ले लिया और फिर वह सरकार भी गिर गर्इ। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकार उभरी और उसने अपनी अल्पमत की सरकार 5 सालों तक चलार्इ।
उसके बाद फिर 1996 में तीसरे मोर्चे की गैर कांग्रेस गैर भाजपा सरकार बनी। कहने के लिए तो वह गैर कांग्रेस सरकार थी, पर उसे बाहर से कांग्रेस का समर्थन मिल रहा था और कांग्रेस ने दो बार उससे समर्थन वापस लिए। पहली समर्थन वापसी के बाद नेता बदल कर कथित तीसरे मोर्चे ने फिर से अपनी सरकार बनार्इ, जिसे कांग्रेस का फिर से समर्थन मिल रहा था। दूसरी सरकार को कांग्रेस का समर्थन मिलने से बंद होने के बाद लोकसभा के चुनाव हुए, जिसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी। उस गठबंधन में 24 पार्टियां थी। वह सरकार मात्र 13 महीने तक चली। उसके बाद फिर चुनाव हुआ। पर इस बार उस गठबंधन को ज्यादा सीटें मिलीं और उसने अपना कार्यकाल लगभग पूरा कर लिया।
यानी 1989 के बाद अब तक तीसरे मोर्चे की तीन सरकारें बन चुकी हैं और तीनों बार वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पार्इ। तीनों बार वह अपने असितत्व के लिए या तो कांग्रेस या भाजपा के समर्थन पर आश्रित थी, फिर भी मोर्चा अपने को गैरभाजपा गैरकांग्रेस पार्टियाें का मोर्चा मानता था, क्योंकि उसे कांग्रेस या भाजपा से बाहर से समर्थन मिल रहा होता था।
बार बार प्रयोग विफल होने के बाद यदि तीसरे मोर्चे की बात एक बार फिर हो रही है, तो उसका ठोस कारण है। इसका कारण यह है कि राष्ट्रीय पार्टियां लगातार कमजोर होती जा रही हैं और उनकी जगह क्षेत्रीय पार्टियां लेने लगी है। इस समय कांग्रेस और भाजपा दोनों की हालत खराब चल रही है। दोनों अपनी राष्ट्रीय अपील गंवाती जा रही है। वामपंथी पार्टियां भी खात्मे की ओर बढ़ रही हैं। तीन राज्यों में उसकी सरकारे होती थीं, पर आज उसकी सरकार सिर्फ त्रिपुरा में है। राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर होने के कारण राष्ट्रीय राजनीति में उसकी प्रासंगिकता भी कम हो रही है।
तीसरे मोर्च की बातें करना आसान है, लेकिन इसे हकीकत बनाना आसान नहीं है, क्योंकि अनेक राज्यों में क्षेत्रीय स्तर पर भी दो से ज्यादा क्षेत्रीय ताकते हैं, जो एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करतीं और वे दोनों एक साथ किसी मोर्चे का हिस्सा नहीं बन सकतीं। मुलायम सिंह क्षेत्रीय पार्टियों को मिलाकर एक राष्ट्रीय मोर्चा बनाना चाहते हैं, लेकिन खुद उनके अपने प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी उनके साथ किसी मोर्चे का हिस्सा नहीं बन सकती। यह बात पशिचम बंगाल के वाम मोर्चे और तृणमूल कांग्रेस के साथ लागू होती है। तमिलनाडु की डीएमके और एआर्इएडीएमके भी किसी मोर्चे में एक दूसरे के साथ नहीं रह सकती।
यह मोर्चा इसलिए भी कठिन है, क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों से बने मोर्चे का कौन नेतृत्व करेगा, इसको लेकर भी विवाद हो जाता है। यूएनपीए नाम के एक तीसरे मोर्च का हश्र हम देख चुके हैं। उस मोर्चे का चेयरमैन मुलायम सिंह यादव बने थे और तब जयललिता के साथ उनका अहंकार टकराता था। फिर वामपंथी दलो ंद्वारा केन्द्र की सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद मुलायम सिंह यादव खुद कांग्रेस की शरण मे ंचले गए थे। क्षेत्रीय नेताओं की अपनी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। उनमें लगभग सभी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। ऐसी हालत में तीसरा मोर्चा बन पाना आसान नहीं है। (संवाद)
तीसरे मोर्चे की हकीकत
इसका रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है
कल्याणी शंकर - 2013-03-31 04:48
कांग्रेस और भाजपा को बाहर रखते हुए अन्य पार्टियों द्वारा आपस में मिलकर मोर्चा बनाने का प्रस्ताव नया नहीं है। इस तरह के प्रस्ताव जब तब आते रहे हैं। इस बार समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह तीसरे मोर्चे के गठन की बात कर रहे हैं। सांगली की एक सभा में उन्होंने कहा कि सामाजिक बदलाव में लगी पार्टियों को आपस में मिलकर एक मोर्चा बनाना चाहिए। उन्होंने अपने इस प्रस्ताव में महाराष्ट्र, बिहार और अपने उत्तर प्रदेश की पार्टियों का नाम लिया।