ऐसा संभव नहीं हो पाएगा। इसका सरल कारण यह है कि आज कोई भी पार्टी अथवा कोई भी लोकसभा सदस्य 2014 के अपने तय समय के पहले चुनाव नहीं चाहता है। सरकार खुद भी अपना कार्यकाल पूरा करना चाहेगी। इसका कारण यह है कि कांग्रेस हमेशा स्थायित्व को अपना चुनावी मुद्दा बनाती है और दावा किया करती है कि कांग्रेस ही अपना कार्यकाल पूरा करती है। अपने इस मुद्दे को कांग्रेस एक बार फिर जनता के सामने ले जाना चाहेगी और इसके लिए जरूरी है कि अपना कार्यकाल पूरा करे।

गौरतलब है कि अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार को छोड़कर अन्य गैर कांग्रेसी सरकारें कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकीं। अटल सरकार भी एक बार सिर्फ 13 महीने तक ही चली। दूसरी बार पूरा बहुमत होने के बावजूद उसने समय से 6 महीने पहले ही लोकसभा का चुनाव करवा दिया था। मोरारजी, चरण सिंह, वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, देवेगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल की सरकारें तो बहुत कम समय तक ही चल सकी थीं।

पता नहीं क्या कारण है कि अधिकांश क्षेत्रीय दल समय से पहले चुनाव की बातंे कर रही हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तो अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को कई बार कह चुके हैं कि वे इसी साल चुनाव का सामना करने के लिए अपने आपको तैयार कर लें। वे इस तरह की बातें प्रेस सम्मेलनों में, प्रेस वक्तव्यों में और कार्यकत्र्ताओं की बैठकों में भी कह चुके हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में वे अपनी लोकप्रियता के शिखर पर देखे गए थे। जाहिर है, वे चाहेंगे कि लोकप्रियता के कम होने के पहले ही लोकसभा के चुनाव हो जाएं, ताकि उनकी पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सके। वे लोकसभा चुनाव के बाद अपने लिए एक बड़ी भूमिका की तलाश में हैं। उन्हें लगता है कि किसी मोर्चे को चुनाव के बाद बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसी स्थिति में यदि उनकी पार्टी को अच्छी खासी सीटें मिल गईं, तो वे अगला प्रधानमंत्री भी हो सकते हैं और कम से कम किंगमेकर की भूमिका तो जरूर निभा सकते हैं। वे बार बार जिस तरह से बयान दे रहे हैं, उससे यही पता चलता है कि उनके बेटे की सरकार की लोकप्रियता तेजी से गिर रही है। इसके अलावा उनका अपना स्वास्थ्य भी ठीक नहीं चल रहा है। ऐसी स्थिति में वे जल्द चुनाव चाहते हैं।

मायावती भी अपनी पार्टी कार्यकत्र्ताओं को जल्द चुनाव के लिए तैयार रहने को कह रही है। मायावती को 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जो झटका लगा था, उससे उबरना उन्हें अभी भी बाकी है। इसके लिए उन्हें कुछ और समय चाहिए, लेकिन वे अपना मजबूत चेहरा दिखाती हुई कह रही हैं कि उनकी पार्टी किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार है। वैसे उनके हित में यही होगा कि चुनाव अपने तय समय के अनुसार ही हो, ताकि तबतक अखिलेश सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ थोड़ा और नीचे गिर जाय।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी यही चाहेगी कि जल्द से जल्द चुनाव हो जाय। इसका कारण यह है कि उन्होंने 34 साल से राज कर रहे वामदलों को वहां की सत्ता से बाहर किया था और वे वामपंथी अपनी उस हार से अभी तक उबर नहीं पाए हैं। ममता चाहेंगी कि वामपंथियों के उबरने के पहले ही लोकसभा के चुनाव हो जाएं, क्योंकि ऐसी स्थिति में ही उनकी पार्टी के ज्यादा से ज्यादा लोकसभा उम्मीदवार चुनाव जीत सकते हैं। उन्हें यह भी पता है कि दो साल पुरानी उनकी सरकार लोगों के बीच अलोकप्रिय होती जा रही हैं। समय के साथ उसकी लोकप्रियता भी घटती जाएगी, इसलिए बेहतर प्रदर्शन के लिए वह जल्द चुनाव चाह रही हैं। पिछले साल उन्होंने कांग्रेस से अपना संबंध विच्छेद कर लिया था। अब वे यूपीए से बाहर हैं और पंचायत चुनावों में अपनी पार्टी की ताकत का एक बार और परीक्षण करना चाहती हैं।

ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अपने आपको भारतीय जनता पार्टी से अलग कर लिया है और उनके प्रदेश में कांग्रेस नेताविहीन हो गई है। इसलिए जब कभी भी चुनाव होंगे, उनकी पार्टी जीतने की स्थिति में ही दिखाई देगी।

जहां तक तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का सवाल है, तो वह भी 2011 में विशाल बहुमत से सत्ता में आई है। इस समय डीएमके की हालत बहुत ही पतली है। इसके नेता एम करुणानिधि काफी उम्र के हो चुके हैं और उनके उत्तराधिकार की जंग उनके दो बेटों के बीच चल रही है। अभी यह पार्टी अलग थलग पड़ी हुई है और इसने अपने आपको यूपीए से बाहर भी कर लिया है। जयललिता इस बीच अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को सक्रिय रखने में सफल हो रही हैं। उन्होंने श्रीलंका के मसले को तूल दे रखी है। उन्होंने ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द मोदी के साथ भी अच्छा तालमेल बना रखा है। जल्द चुनाव उनके हित में है।

यानी जल्द चुनाव के लिए अनेक क्षेत्रीय दल बेकरार हैं। पर सवाल अभी यही है कि क्या यह संभव है और कैसे संभव है? (संवाद)