उनकी इस प्रतिक्रिया से यह भी जाहिर होता है कि पार्टी ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि हार पर कैसी प्रतिक्रिया जाहिर करें। इसका कारण यह नहीं है कि उसकी हार हुई है, क्योंकि यह तो पहले से ही पता था कि पार्टी हारेगी। सच कहा जाय तो एक्जिट पोल आने के पहले से ही पार्टी को भी पता था कि वह हारने जा रही है। लेकिन वे दूसरे स्थान पर भी नहीं रहेगी, इसके बारे मे उसने नहीं सोचा था। गौरतलब है कि जनता दल (एस) और भाजपा दोनों को 40 सीटंे हासिल हुइ्र हैं और इस तरह से भाजपा ने स्पष्ट तौर से दूसरी पार्टी होने का अपना स्थान खो दिया है। इससे भी खराब बात यह है कि हार बहुत बड़ी है और इसके जो कारण बताए जा रहे हैं, उनसे यही लगता है कि आने वाले समय में पार्टी अपना खोया हुआ जनाधार संभवत‘ नहीं प्राप्त कर पाएगी।

अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पाने के लिए पार्टी को यदुरप्पा की शरण मंे जाना पड़ेगाए लेकिन इसके कारण पार्टी को भारी फजीहत का सामना करना पड़ेगा। यदुरप्पा से जुड़े एक राजनेता का कहना है कि भाजपा के अंदर ऐसे अनेक ताकतवर तत्व हैं, जो यदुरप्पा के घोर विरोधी हैं। उनमें सिर्फ अनंत कुमार ही शामिल नहीं हैं, बल्कि केन्द्र के अनेक नेता भी शामिल हैं। यदि यदुरप्पा के साथ भाजपा का फिर से मिलन नहीं होता, तो पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद भविष्य में भी नहीं की जा सकती। यही कारण है कि आज उसका वह संतोष समाप्त हो गया है, जो उसने कर्नाटक में अपनी सरकार के गठन के बाद महसूस किया था। बिंध्य के दक्षिण में प्रवेश के बाद दक्षिण भारत में अपने प्रसार का उसने जो सपना देखा था, वह चकनाचूर हो गया सा लगता है। यही कारण है कि कर्नाटक और दक्षिण भारत में पार्टी एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गई है, जहां उसके पास जवाब देने के बदले यह पूछने के अलावा और कुछ शेष नहीं रह जाता है कि यदि हम वहां हार गए तो क्या?

दूसरा कारण यह है कि पार्टी को वहां नुकसान सिर्फ यदुरप्पा के कारण नहीं हुआ है, बल्कि पार्टी के ऊपर भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप लगे हैं, जिसके कारण भाजपा को वहां बहुत नुकसान पहुंचा है। यह भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंता का बहुत बड़ा कारण है। बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं का हार, जो सुषमा स्वराज के बहुत निकट थे और जिनके वकील अरुण जेटली थे, यही साबित करती है कि कर्नाटक की जनता ने भ्रष्टाचार के कारनामों को पचाने से इनकार कर दिया है।

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के आइने में यदि कांग्रेस अपना चेहरा देखे, तो उसे भी चिंतित होना चाहिए। इसका कारण यह है कि वहां यह भले ही जीत गई हो, लेकिन वहां यदि उसकी जीत भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के कारण हुई है, तो देश के अन्य हिस्सों में तो उसकी भी छवि भ्रष्ट पार्टी की बनी हुई है। जिस कारण से भाजपा को कर्नाटक में नुकसान पहुंचा, उसी कारण से कांग्रेस को देश भर में नुकसान उठाना पड़ सकता है। दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव होने वाले हैं। संभवतः झारखंड के चुनाव भी उनके साथ ही हों। भ्रष्टाचार यदि लोगों को इसी तरह मथता रहा, तो कांग्रेस को इसका खामियाजा इन राज्यों के चुनावों में उठाना पड़ सकता है। आने वाले लोकसभा चुनाव में भी उसे इस चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

कांग्रेस आज अदालतों और जांच प्रक्रिया की आड़ लेकर अपने भ्रष्ट नेताओं को बचा रही है, लेकिन ऐसा करके वह गलत कर रही है, क्योंकि जनता इस तरह से नहीं देखती। कौन सही है और कौन गलत इसका पता जांच प्रकिया की समाप्ति और अदालती आदेश आने के पहले भी लग जाते हैं। इसलिए भ्रष्ट नेताओं को बचाने का नतीजा कांग्रेस को उसी तरह भुगतना पड़ सकता है, जिस तरह से भाजपा को कर्नाटक में भुगतना पड़ा। आखिरकार भाजपा ने यदुरप्पा को तो हटा ही दिया था, लेकिन जनता ने देखा कि उसे भाजपा ने उस समय तक बचाया, जिस समय तक वह बचा सकती थी। अदालत और लोकायुक्त की टिप्पणी के बाद बाध्य होकर ही यदुरप्पा को हटाया गया था। जनता ने विलंब को पसंद नहीं किया।

कर्नाटक में नरेन्द्र मोदी का जादू नहीं चला। निश्चय ही इसके कारण मोदी के प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को चोट पहुंची है। लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस को सोनिया गांधी और उनके परिवार से भी कोई फायदा नहीं पहुंचा। कांग्रेस की जीत का श्रेय उन्हें नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह जीत भाजपा के वोटों के तीन तरफा विभाजन के कारण हुआ है, न कि कांग्रेस की अपनी मजबूती के कारण। (संवाद)