इसका कारण यह है कि अपने पहले कार्यकाल में प्रशंसा पाने वाले मनमोहन सिंह की स्थिति इतनी नाजुक हो गई है कि आज उनका अब कोई प्रशंसक ही नहीं बचा है। उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के एक के बाद एक गंभीर आरोप लगे हैं और वे किसी भी आरोप का आश्वस्त होकर खंडन नहीं कर सके हैं। उनकी ईमानदारी का उदाहरण देकर कांग्रेस के लोग भ्रष्टाचार के उन आरोपों का खंडन करते थे। सच तो यह है कि मनमोहन सिंह की निजी ईमानदारी का इस्तेमाल एक ढाल की तरह किया जाता था।

पर अब वह ढाल भी नहीं बचा। इसका कारण यह है कि खुद मनमोहन सिंह पर ही भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगने लगे हैं। एक समय था, जब लोग कहा करते थे कि वे भ्रष्ट लोगों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। जब ए राजा का मामला सामने आया था, तो प्रधानमंत्री ने कहा था कि गठबंधन की मजबूरी के कारण ए राजा जैसे लोगों को न चाहते हुए भी बर्दाश्त करना पड़ता है।

लेकिन इस बार तो प्रधानमंत्री अपने रेल मंत्री बंसल का संरक्षण करते दिखाई पड़े। यह सच है कि श्री बंसल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन वह इस्तीफा देर से आया। यह बात सामने आई कि प्रधानमंत्री उनका इस्तीफा नहीं चाहते हैं। बाद में खबर आई कि बंसल और अश्विनी कुमार के इस्तीफे को लेकर सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बीच मतभेद हैं। सोनिया उन दोनों का इस्तीफा चाहती हैं, जबकि मनमोहन सिह दोनों को बचाना चाहते हैं।

अंत में दोनों को जाना पड़ा और संदेश यह गया कि नहीं चाहते हुए भी मनमोहन सिंह को उनका इस्तीफा स्वीकार करना पड़ा, क्योंकि सोनिया गांधी यही चाहती थी। इस तरह सोनिया गांधी तो नैतिकता के धरातल पर एक कदम ऊपर चढ़ी, पर मनमोहन सिंह एक कदम नीचे आ गए।

मनमोहन सिंह पर 2 जी घोटाले में शामिल होने का आरोप तो लग ही रहा है, कोयला घोटाला ने उनकी स्थिति सबसे ज्यादा नाजुक कर दी है। कोयला घोटाला जिस समय हुआ, उस समय वह मंत्रालय मनमोहन सिंह के पास ही था। यदि 2 जी घोटाले के लिए ए राजा मंत्री होने के लिए जिम्मेदार थे, तो जाहिर है कोयला मंत्रालय का प्रभार पास में होने के लिए मनमोहन सिंह कोयला घोटाला के लिए जिम्मेदार हैं। इसके बारे में मनमोहन सिंह को कोई भी सफाई देते नहीं बन रही है।

इससे भी खतरनाक बात मनमोहन सिंह के लिए यह है कि कानून मंत्री अश्विनी कुमार सीबीआई रिपोर्ट में फेरबदल मनमोहन सिंह को बचाते हुए ही कर रहे थे। जिन लोगों ने रिपोर्ट में फेरबदल करवाई, उनमें प्रधानमंत्री कार्यालय का एक अधिकारी भी शामिल था। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद कानून मंत्री का इस्तीफा हो गया है, लेकिन अब विपक्ष, खासकर भारतीय जनता पार्टी के नेता, खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का इस्तीफा मांग रहे हैं। सोनिया गांधी के दबाव में अपने दो मंत्रियों को खोने के बाद कुछ समय तक तो मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बने रहने को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे थे। फिलहाल कांग्रेस की ओर से स्पष्ट कर दिया गया कि 2014 तक मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के पद पर बने रहेंगे।

मनमोहन सिंह की प्रशंसा करते हुए नहीं थकने वाले लोग भी अब यह सवाल पूछने लगे हैं कि आखिर श्री सिंह प्रधानमंत्री पद पर अभी भी क्यों चिपके हुए हैं, जबकि वे सरकार चलाने में असमर्थ हैं? सरकार क्या संसद भी नहीं चल पा रही है। भ्रष्टाचार की घटनाओं की खबरें एक के बाद एक बाहर आने के बाद नौकरशाह निर्णय करने में डर रहे हैं और उन्हें लगता है कि उनके निर्णय से कहीं कोई घोटाला न हो जाय।

लोकसभा का चुनाव नजदीक आता जा रहा है। कर्नाटक में जीत हासिल कर कांग्रेस में थोड़ा उत्साह है, लेकिन आने वाले महीनों में 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उनमें दो मे तो कांग्रेस की सरकार है और दो में भाजपा की सरकार। एक में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। इन प्रदेशों के चुनावों में कांग्रेस की स्थिति को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में भाजपा के फिर से जीतने की संभावना है, तो राजस्थान में सत्ता कांग्रेस के हाथ से खिसककर भाजपा के पास जा सकती है। दिल्ली में फिलहाल कांग्रेस जीत की उम्मीद कर सकती है, लेकिन जिस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बना हुआ है, वैसी हालत में दिल्ली के बारे मंे भी दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। जाहिर है, कांग्रेस पतन की ओर अग्रसर है और इस पर ब्रेक लगने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे।(संवाद)