ममता को पता है कि उनकी लोकप्रियता का ग्राफ लगातार नीचे गिरता जा रहा है। तृणमूल के अंदर के लोग भी निजी बातचीत में कहते हैं कि शहरी इलाकों में पार्टी की लोकप्रियता काफी कम हो गई है। महाश्वेता देवी जैसे लोग, जो दो साल पहले उनका समर्थन करते थे, अब अपने आपको उनसे दूर कर रहे हैं। ममता के साथ उनका मोह भंग हो चुका है। मीडिया के साथ ममता बनर्जी का जो हनीमून चल रहा था, अब वह भी समाप्त हो गया है।

ममता के आलोचक कहते हैं कि वामपंथियों के सत्ता से बाहर होने के बाद जो हगामा खड़ा किया गया, उससे कुछ भी नहीं बदला है। सच तो यह है कि पुरानी ही संस्कृति अभी भी बरकरार है और सिर्फ लोग बदल गये हैं। राजनैतिक हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। हिंसा फैलाने वाले लोगों ने पक्ष बदल लिया है और वे अब ममता के साथ आकर अपनी पुरानी गतिविधियों में लिप्त हैं।

पिछले साल मई महीने में अपनी सरकार के एक साल पूरे होने के बाद ममता बनर्जी ने अपने आपको 100 में से 100 अंक दिए थे। दूसरे साल की समाप्ति के बाद वह भावना कहीं नहीं दिखाई पड़ रही है। तृणमूल वहां जश्न मनाने के मूड में नहीं है। युद्धघोष का स्थान फुसफुसाहट ने ले लिया है।

हालांकि ममता बनर्जी कह सकती हैं कि उनकी उपलब्धियों को परखने के लिए दो साल का समय कम है, क्योंकि पूर्ववर्ती वामपंथी सरकारों के बोझ को वह ढोने के लिए अभिशप्त हो रही हैं। तृणमूल कांग्रेस को दिया गया जनाधिकार सिर्फ नई राजनैतिक संस्कृति को लाने का ही नहीं था, बल्कि अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए भी था। निवेश में भारी गिरावट आई है और रेलमंत्री के रूप में उन्होंने जो वायदे किए थे, उन पर भी अमल नहीं हो पा रहा है। इस साल के शुरू में जब उन्होंने निवेश मेला आयोजित किया था, तो उसकी नतीजा बेहद ही खराब रहा था। वह सिंगूर और नंदीग्राम के आंदोलनों के कारण सत्ता में आई हैं, पर उन दोनों मोर्चों पर भी वह कुछ नहीं कर पाई हैं।

उनके आलोचक कह रहे हैं कि वह प्राथमिकताओं को लेकर भ्रमित हैं। वह नीतीश कुमार की तरह पश्चिम बंगाल के लिए विशेष पैकेज हासिल करने में विफल रही हैं। पर उनके लिए सबसे बड़ा झटका शारधा वित्तीय घोटाला साबित हुआ है। उस घोटाले में उनकी पार्टी के नेता शामिल दिखाई पड़ रहे हैं। लाखों लोग, जिन्होंने इसमें पैसा लगाया था, आज सड़कों पर आ गए हैं।

लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां ममता ने बेहतर किया है। सबसे पहला तो कानून और व्यवस्था का मोर्चा है। नक्सलवादी हिंसा में व्यापक कमी आई है। नक्सलवादी हिंसा से ग्रस्त इलाकों में उन्होंने काफी पैसा लगाया है और वहां रोजगार के अवसर भी सृजित हुए हैं और वहां विकास भी हुआ है। दूसरी उपलब्धि राजस्व उगाही में हुई वृद्धि है। राज्य सरकार की राजस्व उगाही में 30 फीसदी की वृद्धि हो गई है। तीसरी उपलब्धि श्रमिकों के मोर्चे पर हुई है। बंद पर रोक लगा दी गई है, जिसके कारण श्रमिक शांति कायम हो सकी है। उन्होंने गोरखालैंड समस्या को भी हल करने की कोशिश की है।

उसके बाद भी यह क्यों कहा जा रहा है कि ममता ने लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं किया है? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वह टकराव में विश्वास करने वाली नेता हैंए लेकिन एक अच्छी प्रशासक नहीं हैं। अब जब वह मुख्यमंत्री बन चुकी हैं, वह सारा का सारा दोष अपनी पूर्ववर्ती सरकार के ऊपर डाल देती हैं और अपने ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहतीं। वह दोष केन्द्र सरकार के ऊपर भी डालती रहती हैं।

दूसरा कारण यह है कि वह पार्टी के अंदर किसी प्रकार की मतभिन्नता को बर्दाश्त नहीं करतीं और उनका रवैया एक तानाशाह जैसा है। उन्हें अपनी पार्टी के नेताओं पर विश्वास नहीं है और वे उन्हें हमेशा अपनी जूती की नोक पर रखती हैं।(संवाद)