लेकिन इन चुनावों के नतीजों ने राजनैतिक विश्लेषकों को निराश किया है। इन नतीजों के आधार पर किसी प्रकार के निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते। इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने यह चुनाव अपने चुनाव चिन्ह पर लड़ा ही नहीं। उसने अपनी पार्टी की ओर से उम्मीदवार खड़े ही नहीं किए। यही काम हरियााणा की जनहित कांग्रेस ने भी किया। अपने चुनाव चिन्ह पर उसने भी उम्मीदवार नहीं खड़े किए।

ओमप्रकाश चैटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल और भारतीय जनता पार्टी ने ही इस चुनाव में अपने उम्मीदवार घोषित रूप से खड़े किए थे। कुल 144 वार्डों में चुनाव हुए। भारतीय जनता पार्टी को 25 सीटें मिलीं, जबकि इंडियन नेशनल लोकदल को 16 सीटें। यानी 103 सीटो ंपर निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुईं। और ये निर्दलीय उम्मीदवार कौन हैं, इस पर तरह तरह के दावे हैं।

कांग्रेस का कहना है कि ये निर्दलीय उम्मीदवार उनकी पार्टी के हैं। वह कहती है कि उसने अपने पार्टी के चुनाव चिन्ह पर भले ही उम्मीदवार नहीं खड़े किए थे, लेकिन सभी सीटों पर कांग्रेसी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े थे और वे पार्टी के नाम पर वोट मांग रहे थे। जीते गए सारे 103 निर्दलीय उन्हीं की पार्टी के हैं, ऐसा कांग्रेस का दावा है।

स्थानीय चुनावों में कोई बड़ा वैचारिक अथवा राजनैतिक मुद्दा नहीं होता। स्थानीय स्तर के मसले प्रबल होते हैं और माना जाता है कि ऐसे उम्मीदवारों को जीताना चाहिए, जो राज्य सरकार से ज्यादा से ज्यादा फंड लाकर पानी, बिजली, सीवर, सड़क व सफाई का बेहतर इंतजाम कर सकें। चूंकि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए कांग्रेस से जुड़े उम्मीदवारों को लोगों ने पसंद किया हो, तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं। पर सवाल उठता है कि 103 निर्दलीयों में कितने कांग्रेस के होंगे? हरियाणा जनहित कांग्रेस ने भी अपनी पार्टी के चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़वाए थे। उनके अनेक उम्मीदवार भाजपा के टिकट पर लड़ रहे थे और कुछ निर्दलीय भी रहे होंगे।

कांग्रेस की जीत हुई या नहीं, पर इतना तो साफ है कि वहां विपक्षी पार्टियां साफ हो गई हैं। भाजपा शहरी पार्टी मानी जाती है, पर वहां मात्र उसके 25 उम्मीदवार ही जीते। उनमें कुछ तो हरियाणा जनहित कांग्रेस के रहे होंगे, जो भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे थे। ओमप्रकाश चैटाला की पार्टी को मात्र 16 सीटें ही मिलीं। इस तरह से विपक्ष का सफाया हो गया। ये पार्टियां कह रही थीं कि नगर निगम के ये चुनाव 2014 के फाइनल के पहले होने वाला सेमीफाइनल था। लेकिन हार के बाद अब इन पार्टियों के नेता बोल रहे हैं कि यह सेमीफाइनल मैच नहीं था, बल्कि प्रैक्टिस मैच था।

ओमप्रकाश चैटाला की गिरफ्तारी के बाद उनके दल के समर्थकों में एक किस्म का रोष था। वे चुनाव को लेकर उत्साहित थे। कहा जा रहा था कि उनका उत्साह और गिरफ्तारी के कारण उपजी सहानूभूति से इंडियन लोकदल के उम्मीदवारों को फायदा होगा और वे भारी संख्या में जीतकर आएंगे। पर वैसा हुआ नहीं। उसके मात्र 16 उम्मीदवार ही जीते।

जाहिर है, इस चुनाव के नतीजों के आधार कर आगामी चुनाव के बारे मे किसी प्रकार का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हां, इतना कहा जा सकता है कि यदि भाजपा और इंडियन नेशनल लोकदल ने मिलकर चुनाव लडा तो उन्हें फायदा हो सकता है। फिलहाल भाजपा का हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन है। भाजपा की ओर से ओमप्रकाश चैटाला के साथ गठबंधन की बातें भी जब तब चलती रही हैं। पर सुषमा स्वराज इस गठबंधन के सख्त खिलाफ हैं। पिछले विधानसभा चुनाव मे उनके कारण ही भाजपा और इंडियन लोकदल में समझौता नहंी हो सका था और जिसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिला था। दोनो में समझौता नही होने के कारण कांगेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और निर्दलीयों व दल बदल का सहारा लेकर उसने अपनी सरकार बना ली थी।(संवाद)