कांग्रेस और भाजपा की इन गतिविधियों के बीच हंडिया विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुआ और उस उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। स्माजवादी पार्टीे के उम्मीदवार प्रशांत कुमार सिंह वहां भारी मतों से जीते। उन्होंने अपने निकटतम उम्मीदवार पंकज त्रिपाठी को 26ए817 मतों से पराजित किया। श्री सिंह को 81,655 मत मिले, तो श्री त्रिपाठी को 54,838 मत मिले।

आमतौर पर उपचुनावों मंे सत्तारूढ़ पार्टी की ही जीत होती है। उत्तर प्रदेश में खासकर ऐसा ही होता है। सपा उम्मीदवार के साथ तो सहानुभूति मत भी था। यह सीट उनके पिता के निधन से खाली हुई थी। पिछले विधानसभा आमचुनाव में उनके पिता महेश नारायण सिंह विजयी हुए थे।

राजनैतिक विश्लेषक सुरेन्द्र राजपूत का कहना है कि यह कांग्रेस और भाजपा के लिए शर्म की बात है कि उनके उम्मीदवारों की न केवल जमानतें जब्त हो गईं, बल्कि वे तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों को टक्कर तक नहीं दे सके।

भारतीय जनता पार्टी के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक बात और क्या हो सकती है कि उसके उम्मीदवार विद्याकांत चैथे स्थान पर आ लुढ़के। उन्हें 3,809 मत मिले। कांग्रेस के अमृत लाल बिंद को तो उससे भी कम मात्र 2,880 मत ही मिले और वह पांचवें स्थान पर थे। प्रगतिशील मानव समाज समाज पार्टी के उम्मीदवार ने 6,460 मत प्राप्त किए और उसका उम्मीदवार तीसरे स्थान पर था।

हंडिया विधानसभा क्षेत्र में 45 फीसदी मतदाता युवा हैं। उपचुानाव के नतीजे बताते हैं कि वहां भाजपा और कांग्रेस युवाओं से जुड़ नहीं पाई है।

जाति और संप्रदाय की राजनीति भी कांग्रेस और भाजपा की सहायता नहीं कर सकी। भाजपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार खड़े किए थे। उसे उम्मीद थी कि ब्राह्मणों और अन्य अगड़ी जातियों के ज्यादातर मत उसे ही मिलेंगे। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं ने हिंदुत्व कार्ड चलाने की कोशिश भी की। लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। सुरेन्द्र राजपूत का कहना है कि जबतक पार्टी अपने आपको स्थानीय मुद्दे से जोड़कर चुनाव नहीं लड़ेगी, तबतक वह लोगों की आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरेगी।

एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने यह स्वीकार किया कि जबतक लोगों के साथ स्थानीय स्तर पर नहीं जुड़ा जाता, तबतक हिंदुत्व कार्ड को खेलने का भी कोई फायदा नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक से हिंदुत्व का मसला पार्टी को कोई फायदा नहीं पहुंचा पा रही है।

कांग्रेस ने बसपा से निकले एक व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह अपनी जाति का वोट भी प्राप्त नहीं कर पाए, दूसरी जातियों और मुसलमानों का मत पाना तो दूर की कौड़ी था। वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी को अपने किसी प्रतिबद्ध कार्यकत्र्ता को टिकट देना चाहिए था और उसे दूसरी पार्टी के भगोड़ों पर विश्वास नहीं करना चाहिए था।

कुछ लोग कह रहे थे कि बसपा द्वारा प्रोन्नति में आरक्षण की मांग के कारण अगड़ी जातियों के लोग उसके मतदाताओं को वोट नहीं देंगे। पर यह गलत साबित हो गया। अब यह स्पष्ट है कि बसपा टिकट से लड़ रहे अगड़ी जाति का उम्मीदवार अपनी जाति के मतदाताओं का मत हासिल कर सकता है।

पिछले फरवरी महीने में भटपर रानी विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुआ था। कांग्रेस उस उपचुनाव से कोई सीख नहीं ले सकी। गौरतलब है कि उसमें कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई थी और वह चैथे स्थान पर था।

कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा परेशानी का सबब यह है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष निर्मल खत्री, दिग्विजय सिंह, पी एल पुनिया और बेनी प्रसाद वर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया था, लेकिन वे अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट नहीं दिलवा सके।

कांग्रेस और भाजपा की स्थिति इतनी नाजुक है और दोनों पार्टियों के नेता प्रदेश में 40 लोकसभा सीटें पाने के सपने देख रहे हैं। (सवाद)