गुरुवार, 10 अगस्त, 2006

पाठक रपट के पहले और उसके बाद

कांग्रेस नेताओं की भूमिका पर उभरे सवाल

ज्ञान पाठक

खनिज तेल के बदले खाद्यान्न वाले संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम के तहत भारत के नेताओं, उनके सगे संबंधियों और चहेतों ने लाभ उठाया, जो स्पष्ट है। लेकिन दुखद पहलू यह है कि उनकी ऐसी जांच कभी नहीं करायी गयी जिसपर उंगलियां न उठायी जा सकें।

उल्लेखनीय है कि जब पिछले साल अक्तूबर महीने के अंतिम सप्ताह में इराक़ में सद्दाम हुसैन के शासनकाल के दौरान संयुक्त राष्ट्र के तेल के बदले अनाज कार्यक्रम में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही पॉल वोल्कर समिति ने अपनी जांच रिपोर्ट दी, तो दुनिया भर में बवाल मच गया था। भारत के अनेक नेताओं के नाम उसमें शामिल थे। आरोप लगा कि इराक के लिए देशी और विदेशी मंचों पर लाबिंग करने की कीमत अदा करने के रुप में इराक ने उन्हें उक्त अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम की आड़ में लाखों बैरल तेल आबंटित किया था।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस रिपोर्ट में कांग्रेस पार्टी और नटवर सिंह का नाम 'अनुबंध के बिना फायदा' लेने वालों की सूची में आया। कांग्रेस और श्री सिंह ने इसका खंडन किया। उस समय श्री सिंह भारत के विदेश मंत्री थे।

इसको लेकर भारत में सनसनी फैल गयी थी क्योंकि दांव पर थी देश की निरपेक्ष और स्वतंत्र विदेश नीति। अनेक सवालों में यह सवाल भी उठाया गया कि यदि धन लेकर ही किसी देश के लिए लाबिंग की जाये तो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की विश्वसनीयता क्या रह जायेगी? उस समय कांग्रेस के नेताओं और स्वयं श्री सिंह ने कहा था कि चूंकि वह वह अमेरिकी नीतियों के विरोधी रहे हैं इसलिए अमेरिकी अधिकारी वोल्कर ने ऐसी रपट दी है ताकि अमेरिकी लाबी उन्हें अपने रास्ते से हटाने में कामयाब हो जाये।

लेकिन विपक्ष इन दलीलों को मानने को तैयार नहीं था। भाजपा ने नटवर सिंह के इस्तीफ़े की मांग की। केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व मे चल रही संप्रग सरकार की प्रमुख घटक दल माकपा ने जांच की मांग की।

प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने तब अपनी कांग्रेस पार्टी और नटवर सिंह को क्लीन चिट दिया और उन्हें विदेश मंत्री पद से हटाने से भी इनकार किया। उधर श्री नटवर सिंह ने भी विदेश मंत्री पद छोड़ने से इनकार किया।

लेकिन उसके तुरंत बाद नवंबर महीने के पहले सप्ताह में ही नटवर सिंह औऱ उनके पुत्र जगत सिंह और उनके संबंधी अंदलीब सहगल का नाम सामने आया इस कांड में शामिल होने वालों की सूची में आया। विवाद बढ़ता गया और उसी सप्ताह पॉल वोल्कर ने बयान दिया कि रिपोर्ट में जिसके भी नाम हैं उन्हें जानकारी दे दी गई थी और उनसे भी स्पष्टीकरण मांगा गया था।

नटवर सिंह ने वोल्कर के बयान का खंडन किया। उसी दिन सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि निरुपम सेन को महासचिव कोफी अन्नान और वोल्कर से मिलकर सच्चाई का पता लगाने को कहा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी और अपने कैबिनेट से विचार विमर्श किया और वोल्कर मामले से जुड़े तथ्य जुटाने के लिए विशेष दूत की नियुक्ति की। भाजपा ने सीबीआई जांच की मांग की लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि तब सरकार को दंडात्मक कार्रवाई का खतरा था। फिर कम नुकसान के रास्ते खोजे जाने लगे।

उसी क्रम में नटवर सिंह से विदेश मंत्री का प्रभार छीना गया। कांग्रेस ने अन्नान को पत्र लिख कर सभी दस्तावेज मांगे। वोल्कर समिति की रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की जांच के लिए समिति के गठन की सिफारिश कैबिनेट ने कर दी। नटवर सिंह को कांग्रेस कार्यसमिति से भी निकाला गया और आर एस पाठक समिति का गठन किया गया।

अब इस माह पाठक समिति की रिपोर्ट आई और मीडिया को लीक हुई जिसमें कहा गया कि नटवर सिंह, उनके पुत्र जगत सिंह ने तेल अनुबंध दिलवाने के लिए पद का दुरुपयोग किया। नटवर सिंह को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी निलंबित किया गया है।

लेकिन तब पाठक समिति की रपट पर भी अनेक सवाल उठाये गये हैं। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस को बचाने की कोशिश में पार्टी कामयाब रही। कांग्रेस पार्टी की सदस्यता से निलंबित पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने कहा है कि वह आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं और जल्दी ही पार्टी को जवाब देंगे।

समाजवादी पार्टी नेता अमर सिंह, जद-यू नेता दिग्विजय सिंह और भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा के साथ खड़े नटवर सिंह ने सीधे सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधा और कहा कि एक भी चुनाव नहीं जीतने वाले प्रधानमंत्री उन्हें क्या सिखाएंगे?

नटवर सिंह का कहना था," प्रणव कहते हैं कि मैंने पार्टी को अपमानित किया है। मैं ये कहना चाहता हूं कि पार्टी में हत्यारे और बलात्कार के आरोपी लोग हैं। क्या उनसे पार्टी सम्मानित हो रही है?" उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर भी सीधा निशाना साधा।

लेकिन ज्यादा गंभीर सवाल उठाये हैं भाजपा नेता अरूण जेटली ने। उनका कहना है कि एक तो समिति को नियमानुसार काम नहीं करने दिया गया और दूसरे समिति ने सभी पक्षों की जांच नहीं की। कांग्रेस के सयोगी एक वाम नेता ने भी आरोप लगाया है कि लाभ प्राप्त करने वाली भारत की सबसे बड़ी निजी तेल कंपनी रिलायंस के मामले में भी जांच नहीं की गयी।

साफ है कि सर्वांगीण निष्पक्ष जांच करवाने में किसी की रुचि नहीं है।#