पहले राजनैतिक परिदृश्य को लें। पिछले 6 साल से पंजाब कांग्रेस की हालत बहुत खराब है। इसका कारण तो केन्द्र की यूपीए सरकार के खिलाफ लग रहे एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचार के आरोप हैं और उसके कारण निर्णय के स्तर पर केन्द्र सरकार का पंगु हो जाना है। दूसरा कारण प्रदेश के स्तर पर कांग्रेस के अंदर की चल रही गुटबाजी है। इसके कारण ही 2007 से कांग्रेस यहां उबर नहीं पा रही है। इसके ठीक विपरीत अकाली दल के नेताओं के हौसले बुलंद रहे हैं और उसके कारण चुनावों में भी उनको जीत मिली है।
लेकिन हाल ही में स्थिति कुछ बदल गई है। अब अकाली दल के नेता रक्षात्मक मूड में दिखाई पड़ रहे हैं। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ती देखी जा सकती हैं। इस बदलाव को समझना कठिन नहीं है।
सबसे पहले तो राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव दिखाई पड़ रहा है। पंगु दिखाई पड़ रही केन्द्र की यूपीए सरकार अब चलती हुई दिखाई दे रही है। कांग्रेस ने अब भाजपा को बाघ्य कर दिया है कि वह अब अपनी रणनीति बदलने की सोचे।
भारतीय जनता पार्टी की ओर से की जा रही गलतियों का लाभ कांग्रेस को मिलने लगा है। पहली गलती तो उसके नेता अमित शाह से की गई। उत्तर प्रदेश जाकर उन्होंने राम मन्दिर के निर्माण की बात करनी शुरू कर दी। दूसरी गलती भाजपा के संभावित प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी से हुई। उन्होंने गुजरात के दंगों मंे मारे गए लोगों की तुलना कुत्ते के बच्चों से कर दी। इसके कारण भाजपा द्वारा मुस्लिम मतों को जीतने की कोशिशों पर चोट तो पहुंची ही है, कांग्रेस को देश का राजनैतिक एजेंडा बदलने में भी इससे सहायता मिल रही है।
इसके अलावा पंजाब के परिदृश्य में भी भारी बदलाव आया है। वहां के अखबारों की सुर्खियों में प्रदेश की बढ़ती बदहाली को देखा जा सकता है। कभी खबर छपती है कि सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिल रहे हैं, तो कहीं खबर छपती है कि सरकार के पास लोक कल्याणकारी कामो के लिए पैसे नहीं है। कभी नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी कहती हैं कि उनके फोन टेप किए जा रहे हैं। कभी पंजाब सरकार की आटा दाल योजना पर ग्रहण लगते दिखाई देता है। कभी खबर छपती है कि 80 हजार दलित लड़कियों के सगुण कई महीनों से नहीं दिए गए हैं।
इन राजनैतिक परिस्थितियों के बीच सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों ने भी अकाली दल को परेशान कर रखा है। एक फैसला कहता है कि अदालत द्वारा दोषी करार किए जाने के बाद कोई व्यक्ति सांसद अथवा विधायक नहीं बना रह सकता। दूसरे फैसले के अनुसार यदि नामांकन करने के दिन कोई व्यक्ति किसी भी कारण से जेल में है, तो वह चुनाव के लिए नामांकन नहीं कर सकते। पहले फैसले के अनुसार ही सजा पाए गए व्यक्ति भी संसद अथवा विधानसभा के चुनाव नहीं लड़ सकते।
अकाली दल के लिए यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके नेता उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ भी एक मुकदमा चल रहा है, जिसका फैसला जल्द ही आने वाला है। 1999 के फरीदकोट लोकसभा में सुखबीर सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। उन पर हत्या के प्रयास का मुकदमा चल रह है। इसके अलावा उन पर डकैती का भी आरोप है। पत्रकारो के साथ मारपीट करने का मामला भी उनके खिलाफ लंबित है। अभी वह मुकदमा हाई कोर्ट के विचाराधीन है। यदि उसमें सुखबीर दोषी पाए जाते हैं, तो फिर उनके राजनैतिक भविष्य का क्या होगा, इसके बारे में तरह तरह की अटकलें जारी हैं। इन अटकलों ने अकाली दल की स्थिति खराब कर रखी है।
मुकदमा तो कैप्टन अमरीन्दर सिंह पर भी चल हा है। बीबी जागिर कौर को तो सजा भी सुनाई जा चुकी है। फिलहाल उन्होंने सजा के खिलाफ अपील दायर कर रखी है। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने पंजाब के अनेक राजनेताओं की नींद उड़ा दी है और यदि कोई दल सबसे ज्यादा सांसत में है, तो वह अकाली दल ही है। (संवाद)
पंजाब में अब पासा पलट रहा है
अदालती आदेशों के बाद अकाली दल मुसीबत में
बी के चम - 2013-07-16 14:04
चंडीगढ़ः कहीं भी स्थितियां एक सी नहीं रहती हैं। पंजाब भी इसका अपवाद नहीं है। पिछली दो घटनाओं ने यहां की स्थिति भी बदल डाली है। पहली घटना तो बदल रहा राजनैतिक परिदृश्य है और दूसरी घटना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए कुछ आदेश।