बार काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा के अनुसार न्यायपालिका में नेताओं का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।अगर नेताओं ने यहां भी दखल देना शुरू किया तो न्यायपालिका भी अन्य की भांति भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद जैसे अवगुणों से ग्रस्त हो जाएगा।
उन्होंने बताया कि देश के वकीलों ने इस नियुक्ति आयोग को पूरी तरह नापंसद किया है और इसका तब तक विरोध करने का निर्णय लिया गया है जब तक कि सरकार इस प्रस्ताव को वापस न ले ले।
ज्ञात हों कि सरकार के प्रस्तावित नियुक्ति आयोग में विधि व न्याय मंत्री,कार्यपालिका द्वारा नामित एक एक सदस्य,नेता प्रतिपक्ष,उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीश सदस्य होंगे जिनके उपर जजों की नियुक्ति,तबादला तथा गलत आचरण की जांच आदि की जिम्मेवारी होगी।
बार काउंसिल आफ इंडिया का कहना है कि सरकार एक एडवाइजरी कमेटी बना कर उसमें अपने सदस्यों को रख सकती है जो जजों की नियुक्ति करने वाली वर्तमान कोलेजियम केा अपना सलाह दे सकती है। लेकिन न्यायपालिका को नेताओं का सीधा हस्तक्षेप पंसद नहंी है।
बार काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष श्री मिश्रा के अनुसार सरकार को न्यायिक प्रणाली मे सुधार लाने के लिए सिस्टम की समस्याओं को समझ कर उसे सुलझाने के उपाय किए जाने चाहिए।
उन्होंने बताया कि देशभर में वकीलों के लिए समुचित बैठने का स्थान तक नहीं है। वकीलों के लिए फैमिली इंश्युरेंस, मेडिक्लेम,पेंशन ,आवास जैसी कोई स्कीम सरकार द्वारा नहीं बनाई गयी है।
मालूम हो कि सरकार द्वारा न्यायपालिका में सीधे हस्तक्षेप करने के उपाय निकाले जाने का प्रयास यूं ही नहीं किया जा रहा है।हाल के दिनों में न्यायपालिका के कई फैसले जैसे अपराधियों को चुनाव न लड़ने , जेल से चुनाव न लड़ने,जाति आधारित जुलूस न निकाले जाने,चुनाव में मुफत सामग्री देने का वादा न करने आदि से सरकार और राजनीति पार्टियां बौखला गयी है।इसलिए न्यायपालिका पर नकेल कसने के लिए सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति व तबादले में सीधे हस्तक्षेप चाहती है।
न्यायिक नियुक्ति आयोग के खिलाफ है बार काउंसिल आफ इंडिया
नहीं चाहता है नेताओं का हस्तक्षेप,ध्वस्त हो जाएगी न्यायपालिका
एस एन वर्मा - 2013-08-04 15:03
नई दिल्ली। केंद्र सरकार का राष्टृीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रस्ताव का विरोध शुरू हो गया है। देश के वकीलों का प्रतिनिधित्व करने वाला बार काउंसिल आफ इंडिया ने इस आयोग को पूरी तरह नकार दिया है।बार काउंसिल ने इसे संविधान के तीसरा स्तंभ न्यायपालिका की आजादी के लिए खतरा बताया है।