केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देश के 88 औद्योगिक क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध करते हुए समग्र पर्यावरण आकलन मानदंड अध्ययन जारी किए हैं। इस अध्ययन के तहत जल, भूमि और वायु प्रदूषण के आधार पर समग्र पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक तैयार किया गया। इस तरह के अध्ययन साल में दो बार किए जाते हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली और सीपीसीबी द्वारा संयुक्त रुप से किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि 10 प्रमुख औद्योगिक स्थानों पर पर्यावरण प्रदूषण गंभीर स्तर तक पहुंच गया है। ये स्थान हैं- गुजरात में अंकलेश्वर एवं वापी, उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद और सिंगरौली, छत्तीसगढ म़ें कोरबा, महाराष्ट्र में चंद्रपुर, पंजाब में लुधियाना, तमिलनाडु में वेल्लोर, राजस्थान में भिवाड़ी और उड़ीसा में अंगुल तलचर। सीपीसीबी ने पहले 24 गंभीर प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की थी। इसके अलावा उसने 36 और ऐसे ही क्षेत्रों की पहचान की है जहां बहुत अधिक औद्योगिक गतिविधियां थीं और साथ ही पर्यावरण प्रदूषण की समस्याएं है।

वायु गुणवत्ता सूचकांक, जल गुणवत्ता सूचकांक और भूमि गुणवत्ता सूचकांक रिकार्ड किया जा सकता है लेकिन उसमें हमेशा प्रविधि संबंधी त्रुटियों की गुजाइश बनी रहती है। ऐसे में इस समस्या का पश्चिमी देशों की तरह ईपीआई सूचकांक बेहतर उपाय है जहां साक्षरता, जीवन प्रत्याशा और प्रति व्यक्ति आय को शामिल किया जाता है।

अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों की समस्या बहुत गंभीर है क्योंकि वहां रातों रात उद्योगों से रातों कचरे विसर्जित कर दिये जाते हैं। गुजरात में वापी और अंकलेश्वर के प्रदूषित क्षेत्रों के गांवों में पानी काफी समय से पीने योग्य नहीं है। लोगों में अस्थमा, आखों में खुजली जैसी समस्याएं आम हैं।

सीपीसीबी ने ठोस कदम उठाने के लिए प्रदूषण की दृष्टि से समस्याग्रस्त क्षेत्रों की पहचान के लिए और राष्ट्रीय स्तर पर वायु, पानी की गुणवत्ता में सुधार एवं पारिस्थितिकीय नुकसान को दूर करने के लिए एक कार्यक्रम शुरु किया है।

सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अध्यक्षों और सदस्य सचिवों की मई 1989 में बैठक हुई थी और पानी तथा वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए 10 अति प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की गयी थी। बाद में इस सूची में 14 और क्षेत्र जोड़ दिए गए। अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्र में चिह्नित क्षेत्रों के लिए कार्ययोजना तैयार की जाएगी जिससे प्रदूषण के रोकथाम के उपाय तथा पर्यावरण की गुणवत्ता कायम करने में मदद मिलेगी।#