फिलहाल तो उनके सिरदर्द का सबसे बड़ा कारण पूर्व मुख्यमंत्री विधानसभा में विपक्ष के नेता वीएस अच्युतानंदन का वह फैसला, जिसमें उन्होंने इस मसले पर हो रही पुलिसिया जांच को हाई कोर्ट में उठाने की ठानी है। वे इस बिना पर उस पुलिस जांच को चुनौती देने जा रहे हैं कि केरल पुलिस यह जांच करने में इसलिए विफल है, क्योकि उसके हुक्मरान ही इस घोटाले में फंसे दिखाई पड़ रहे हैं।

जब सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग, जिनके हाथ में पुलिस की बागडोर है, इस घपले में शामिल हैं, तो पुलिस से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह इसकी निष्पक्ष जांच करे। लिहाजा, इसे आधार पर बनाकर अच्युतानंदन हाई कोर्ट में इस मामले का उठा रहे हैं।

अच्यतानंदन चाहते हैं कि पुलिस द्वारा इस मामले की जांच हाई कोर्ट की निगरानी में हो। पूर्व मुख्यमंत्री के इस कदम को उनकी पार्टी सीपीएम का समर्थन मिल रहा है। सीपीएम इस मसले पर प्रदेश भर में दिन और रात आंदोलन चला रही है। आंदोलन का केन्द्र उसने प्रदेश की राजधानी स्थिति राज्य सरकार के सचिवालय को ही बना रखा है।

अच्युतानंदन के इस फैसले ने यूडीएफ सरकार को हिला कर रख दिया है। इसका पता इसी से लगता है कि उनके हाई कोर्ट जाने के फैसले का पता जैसे ही लगा गृहमंत्री राधाकृष्णन ने प्रदेश के महाधिवक्ता से तुरंत संपर्क किया।

वीएस अच्युतानंद का कहना है कि पुलिस जांच की अदालती मोनिटरिंग इसलिए जरूरी है, क्योंकि सरकार इस घोटाले की जांच को निरूद्ध करने का हर संभव प्रयास कर रही है।

विपक्ष को एक और घटना से सरकार पर हमला करने का मौका मिला है। कोच्चि की आर्थिक अपराध अदालत के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने सोलर घोटाले की एक अभियुक्त सरिता नायर का बयान दर्ज करने से इनकार कर दिया था, जबकि वह खुद बयान दर्ज कराना चाह रही थीं। उस दंडाधिकारी के खिलाफ जांच का आदेश हाई कोर्ट ने जारी कर दिया है।

हाई कोर्ट का यह फैसला केरल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के सुन्दरन की एक याचिका पर आया है। याचिका के अनुसार उक्त दंडाधिकारी सरिता नायर का बयान रिकार्ड करने में विफल रही, जबकि सरिता खुद बयान देना चाहती थीं। लोगो ने माना की दंडाधिकारी उन लोगों के दबाव में आ गया था, जो यह नहीं चाहते थे कि सरिता इस घोटाले में शामिल कुछ महत्वपूर्ण लोगों का नाम उजागर करे।

इंडियन लायर्स एसोशिएन के सचिव अधिवक्ता जयशंकर ने भी इसी मरह की एक याचिका हाई कोर्ट में दाखिल कर रखी है, जिसमें उन्होंने मांग की है कि उस दंडाघिकारी को अपना कर्तव्य नहीं निभाने के लिए दंडित किया जाय। जयशंकर का कहना है कि दंडाधिकारी सरिता उसे उसके वकील और एक कोर्ट क्लर्क की उपस्थिति में मिले थे और उसका बयान भी रिकार्ड किया था, पर बाद में उन्होंने उस बयान के रिकार्ड को ही मिटा डाला।

इस तरह की शिकायतों ने विपक्ष के उस आरोप को मजबूती दी है जिसके तहत कहा गया जा रहा है कि सरिता के बयान की अनदेखी कर प्रभावशाली लोगों को बचाया जा रहा है। विपक्ष का कहना है कि सरिता की बयान को नहीं रिकार्ड कर उसे वापस पुलिस निगरानी में भेज दिया गया। वहां उस पद दबाव डालकर उसके मूल बयान को बदलवा दिया गया। उसके बाद सरिता अपने वकील को दिए 22 पेज के बयान से मुकर गई।

ये घटनाएं सत्तारूढ़ गठबंधन की समस्याओं को लगातार बढ़ा रही है। बीतते समय के बाद उन्हें इससे राहत मिलने की उम्मीद थी, पर उनकी मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। (संवाद)