उनका तर्क देखिए, ‘ जैसे घर में गलती होने से मां बाप बच्चों को डांटते हैं और स्कूल में टीचर वैसे ही प्रशासन को भी अपने अधिकारियों को डांटने का पूरा हक होता है।’ अभिभावकीय डांट और किसी अधिकारी को निलंबित करने में यदि मुख्यमंत्री को फर्क नहीं दिखता तो इसे क्या कहा जा सकता है!

बात यहीं तक सीमित नहीं हैं। सरकार ने दुर्गा शक्ति के हाथों एक लंबा चैड़ा आरोप पत्र भी थमा दिया है। सपा के थिंक टैंक एवं वरिष्ठ सांसद रामगोपाल यादव ने तो यहां तक कह दिया कि केन्द्र चाहे तो अपने सारे आईएएस अधिकारियों को बुला ले, वे प्रदेश के अधिकारियों से राज्य चला लेंगे। ऐसा बयान भी भारत में पहली बार आया है। दरअसल, संप्रग व कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने जैसे ही प्रधानमंत्री कार्यालय को यह पत्र लिखा कि निलंबित अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल के मामले में निष्पक्ष कार्रवाई सुनिश्चित हो, केन्द ने प्रदेश सरकार से इस बावत पत्र भेजकर पूछ दिया। सपा जैसी पार्टी के लिए, जो कि केन्द्र सरकार के लिए संकटमोचक बनी रही है, भले कदम नियम के तहत हों, इसे पचा पाना कठिन हो रहा है। बस, क्या था। आनन-फानन में दुर्गा को अरोप पत्र भेजे जाने के साथ निलंबन के संबंध में केंद्र सरकार को भी जवाब भेज दिया। ध्यान रखिए जवाब में एक विशेष नोट भेजा गया है। इसमें कहा गया है कि निलंबन के मामले में दुर्गा शक्ति ने राज्य सरकार से कोई अपील नहीं की है। अगर उन्होंने केंद्र से कोई अपील की है तो वो इसकी जानकारी राज्य सरकार को मुहैया कराए। सपा के मुखिया मुलायम सिंह ने कहा कि किसी दबाव में दुर्गा शक्ति का निलंबन वापस नहीं होगा। यह हमारी भारतीय राजनीति की विडम्बना है कि अपनी भूल स्वीकार कर उसका परिमार्जन करने की बजाय दल व नेता स्वयं को सर्वोच्च शक्तिमान साबित करने पर तूल जाते हैं। आपके हाथों में सत्ता है तो फिर आपको इसका लाभ भी मिलता है।

तीन पहलुओं से इसका विश्लेषण किया जा सकता है। एक, निलंबन का कारण, दो, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के साथ व्यवहार के नियम एवं तीन केन्द्र के अधिकार एवं उसकी भूमिका। दुर्गा को नोएडा के कादलपुर गांव में मस्जिद की दीवार गिराने के आरोप में निलंबित किया गया। प्रदेश सरकार का कहना है कि रमजान के महीने में ऐसा करने से तनाव बढ़ रहा था। सच यह है कि गैर कानूनी तरीके से मस्जिद का निर्माण किया जा रहा था, जमीन सरकारी थी और दुर्गा को जैसे ही सूचना मिली, अपना कर्तव्य निभाते हुए वह वहां गई और दीवार को गिरवाया। प्रायः अधिकारी स्वयं स्थल पर जाकर ऐसा नहीं करते और अपने मातहत अधिकारी-कर्मचारी को भेजकर कार्रवाई करवाते हैं। त्वरित कार्रवाई के लिए दुर्गा को पुरस्कृत किया जाना चाहिए था। क्या मस्जिद, मंदिर, गुरुद्वारा, गिरिजाघर गैर कानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर बनाई जाएगी तो उसे रोका नहीं जाएगा, या जो निर्माण हो गया है उसे ढाहा नहीं जाएगा? इसके लिए कोई मुहूर्त और तिथि देखी जाएगी? फिर कानून और व्यवस्था का अर्थ क्या है? सच यह है कि वहां सांप्रदायिक तनाव था ही नहीं। मुख्यमंत्री कहते हैं कि उन्होंने स्थानीय लोगों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह कदम उठाया। एक स्थानीय नेता का टेप भी आ गया है जो कह रहे हैं कि हमने कुछ मिनट में ही दुर्गा नागपाल को सस्पेंड करा दिया। वे नेता यहां के अवैध बालू व्यापार, भूमि व्यापार से संबद्ध हैं और दुर्गा ने जिस तरह की कार्रवाई ऐसे लोगों के खिलाफ की थी उससे सारे नाराज थे और उसे किनारे करने के लिए मौके की प्रतीक्षा में थे।

यह मानने मेें कोई हर्ज नहीं है कि संसदीय लोकतंत्र में राजनीति का स्थान सर्वोच्च है। एक अधिकारी या नौकरशाह को उसके मातहत एवं उसके निर्देश पर काम करना है। राजनीतिक नेता जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं, इसलिए उनको सर्वाधिक महत्व हमारा संविधान देता है। पर सभी के बीच दायित्वों और भूमिकाओं का एक संतुलन भी बनाया गया है। सामान्यतः अधिकारी कई बार अपनी प्रशासनिक झनक में चूर होकर आम नागरिक के विरुद्ध कदम उठाते हैं और ऐसे मामले मंें राजनीतिक दखल आवश्यक होता है। वैसे भी भारतीय सिविल सेवा के अधिकारियों की सुरक्षा के लिए जो नियम बनाए गए हैं वे सख्त लौह दीवार के समान हैं। सामान्यतः सरकारें इनसे टकराने की हिम्मत नहीं करतीं। दुर्गा के निलंबन के बाद इन अधिकारियों के संघ ने स्वयं सरकार से मिलकर इसे वापस करने की अपील की है। देश भर के केन्द्रीय सिविल सेवा के अधिकारी दुर्गा के साथ खड़े हैं। यदि किसी निचले स्तर के कर्मचारी के साथ ऐसा होता तो इस तरह यह मुद्दा बनता ही नहीं। ंिकंतु यहां तो इन सारी स्थितियों के बावजूद दुर्गा बेईमानों, माफियाओं, अपराधियों की राजनीतिक पहुंच का शिकार हुई है। सपा की सरकार आने के बाद ये तत्व जिस तरह सक्रिय होते हैं उसमें कोई अधिकारी इन्हें छूने का साहस नहीं करता। दुर्गा ने ऐसा किया है।

प्रदेश सरकार इसे अपने सम्मान का विषय बनाकर किस तरह दबंगई कर रही है उसका उदाहरण आरोप पत्र है। आरोप पत्र में कहा गया है कि दुर्गा ने गलत समय का चयन किया, उनमें समझ एवं प्रशासनिक क्षमता की कमी है और उन्होंने निर्माण गिराने में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। यानी ग्राम सभा द्वारा अतिक्रमण के लिए जो नियम हैं उनका पालन उन्होंने नहीं किया। उनसे पूछा गया है कि इस मामले में वरिष्ठ की सलाह क्यों नहीं लगी गई? उन पर बिना किसी शिकायत के कार्रवाई का भी आरोप लगा है। कोई भी समझ सकता है कि जानबूझकर अपने कदम को सही साबित करने के लिए मुख्यमंत्री उसके खिलाफ जितना कुछ हो सकता है आरोप गढ़वा रहे हैं। ये ऐसे कारण नहीं हैं जिनके आधार पर किसी अधिकारी को निलंबित किया जाए। उसमें भी रात के पौने दो बजे। दुर्गा नागपाल के खिलाफ कार्रवाई में इतनी तेजी क्यों दिखाई गई? सपा सरकार के कार्यकाल लगातार दंगे हुए लेकिन किसी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई।

राजनीतिक नेतृत्व के लिए आखं, कान, नाक, हाथ, पैर ही नहीं मस्तिष्क भी ये अधिकारी ही होते हैं। इनके द्वारा ही नेता शासन चलाने से लेकर विधि-विधान के निर्माण तक का कदम उठा पाते हैं। इसलिए उनकी भूमिका इस तरह प्रेरणा देने की है ताकि ये अधिकारी ईमानदारी और निष्ठा से एक लोकसेवक की भूमिका निभाएं। यहां सरकार की भूमिका इसके विपरीत है। 2010 बैच की एक 28 वर्षीय उत्साह से भरी नई अधिकारी को अगर इस तरह निलंबित कर देंगे तो फिर कोई अधिकारी कैसे ईमानदारी और साहस के साथ कार्रवाई कर सकेगा? मनमाने तरीके से एक ईमानदार एवं देश की सपंत्ति, पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा को अपना कर्तव्य मानने वाली अधिकारी का निलंबन राजनीतिक नेतृत्व का ऐसा अधिनायकवादी कदम है जिसके पीछे अवैध तरीके से भूमि, निर्माण, खनन का कारोबार करने की मुख्य भूमिका है। यहीं से अपराध, भ्रष्टाचार एवं राजनीति के गंदे गठजोड़ का प्रमाण मिलता है। इसलिए इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए। प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री एवं कार्मिक विभाग के प्रभारी नारायण सामी ने कहा है कि यदि दुर्गा उनके पास केन्द्रीय नियुक्ति का आवेदन करतीं हैं तो नियमों के तहत उस पर विचार किया जाएगा। नियमानुसार कोई भी केन्द्रीय सेवा का अधिकारी सीधे केन्द्र के पास अपील कर सकता है। अच्छा हो कि केन्द्र और राज्य का टकराव ऐसे मुद्दे पर न हो एवं राज्य सरकार अपना रवैया बदले व भूल सुधार करने का बड़प्पन दिखाए। वैसे भी दुर्गा नागपाल मामले में उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सख्त रुख अपनाते हुए खनन मामले में की गई संपूर्ण कार्रवाई का ब्योरा तलब किया है। पीठ ने नागपाल द्वारा अवैध खनन रोकने के लिए उठाए गए सख्त कदमों की प्रशंसा की है। साफ है कि अगर अखिलेश सरकार नहीं चेती तो न्यायालय में उसकी किरकिरी होनी तय है। (संवाद)