विहिप प्रवक्ता डा सुरेंद्र जैन ने कांग्रेस को अपने पूर्वजों के फैेसले की याद दिलाते हुए कहा कि नेहरू की सरकार ने मुस्लिमों के लिए आरक्षण व्यवस्था को यह कह कर विरोध किया था कि इससे देश में सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा मिलेगा तथा मुस्लिम अलग थलग पड़ जाएंगे।इससे मुस्लिमों को ही नुकसान होगा। उन्होंने बताया कि 1949 में ही यह मान लिया गया था कि धर्म आधारित आरक्षण समाज के लिए विघटन कारी है। उन्होंने बताया कि आंध्रपदेश की कांग्रेस की सरकार ने एक बार अपने राज्य में धर्म आधारित आरक्षण व्यवस्था लागू करने की कोशिश की थी जिसे उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद वापस ले लिया गया।

उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस पार्टी की सरकार ने केार्ट के फैसले को पलटने के लिए एक सेवानिवृत न्यायाधीश, जो कांग्रेस के तरफ से राज्यसभा का सदस्य भी रह चुका है, की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन कर दिया। और अब इसकी रिपोर्ट केा लागू करवाने की जिद पर अड़ा है।

विहिप प्रवक्ता ने रिपोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि यह न केवल भारत के पिछड़े वर्ग व अनुसूचित वर्ग के अधिकारों पर खुला डाका है बल्कि कम्युनल अवार्ड की तरह भारत के एक और विभाजन का दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यकों में सबसे ज्यादा फायदा मुसलमानों को मिलने वाला है। मुसलमानों को नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण तो मिलेगा ही,उसे अन्य अल्पसंख्यकों को मिलने वाला 5 फीसदी आरक्षण का लाभ भी मिल सकेगा अगर अन्य अल्पसंख्यकों की आरक्षित सीटें खाली रह जाती है।

उन्होंन बताया कि यह रिपोर्ट समाज में गृह युद्ध जैसी स्थिति ला सकती है,क्योंकि इसके एक अन्य प्रावधान के अनुसार धर्मांतरित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के अल्पसंख्यकों को भी इस आरक्षण का लाभ देने की बात कही गयी है। अगर ऐसा हुआ तो ईसाई और मुस्लिम वर्ग के लोग अपनी साक्षरता और राजनीतिक ताकत के बदौलत सरकारी नौकरियां अधिक हड़प लेंगे और पिछड़ा व दलित हिंदू वर्ग और पिछड़ते चले जाएंगे।

डा सुरेंद्र जैन ने बताया कि रिपोर्ट की सिफारिशें भारत के मुस्लिम व इसाई समाज में पहले से विद्यमान अलगाव की भावना को और मजबूत करेगी।#